पिछली सदी में स्वतंत्रता, मानवाधिकार और निजता पर व्यापक चिंतन के दौर में स्त्री विमर्श में नए मानक स्थापित हुए। लेकिन नए दौर में नए सिरे से प्रतिगामी शक्तियों के उभार से अब तक हासिल की गई आजादियों पर नई चुनौती खड़ी हो गई है। ऐसे दौर में स्त्री लेखन में एक मायने में विस्फोट जैसा दिख रहा है। इसी दौरान कई लेखिकाओं ने स्त्री लेखन पर शोध के जरिए बताया कि पिछली सदी या उससे पहले स्त्री विमर्श में महत्वपूर्ण हस्तक्षेप करने वाली लेखिकाओं पर चर्चा हुई। इसलिए इसे स्त्री-नवजागरण का दौर कहा जा रहा है। द्वैमासिक पत्रिका परिंदे का अगस्त-सितंबर 2021 अंक इसी पर केंद्रित है। इसमें स्त्री नवजागरण और स्त्री विमर्श के पहलुओं पर कई लेख और साक्षात्कार हैं।
अंक के अतिथि संपादक कवि-पत्रकार विमल कुमार कहते हैं, हाल के दौर में अनेक लेखिकाएं लेखन और सामाजिक विमर्श में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। परिंदे के अंक में उन 25 कवयित्रियों को शामिल किया गया है, जो मुख्य रूप से 2000 के बाद कविता के परिदृश्य में सक्रिय हुई हैं।
गंभीर आलोचक सविता सिंह स्त्री कविता के नए रंग, नई छवियों पर रोशनी डालती हैं, तो युवा मनीषा झा हिंदी कविता में स्त्रियों की नई आवाजों का जिक्र करती हैं। प्रियदर्शन, मदन कश्यप की टिप्पणियां स्त्री अस्मिता और स्त्री चेतना के विस्तार के बारे में बताती हैं। श्रीविलास सिंह समकालीन अफ्रीकी कविता में स्त्री स्वर पर रोशनी डालते हैं।
अंक वाकई खास बन गया है और इससे नए विमर्श के पैदा होने की पूरी संभावना है। जैसा कि विमल कुमार कहते हैं, “स्त्री की नजर से दुनिया को देखना एक अलग अनुभव है।” लेकिन आज के दौर में प्रतिगामी शक्तियों के उभार के समय क्या स्त्री विमर्श में मौजूदा चुनौतियों की चर्चा है? यह सबसे अहम सवाल है।
बहरहाल, अशोक वाजपेयी, नरेश सक्सेना जैसे वरिष्ठ साहित्यकारों से यह जानना खास है कि आखिर क्यों पहले हिंदी में स्त्री लेखन की खास चर्चा नहीं हुई और इसे इस लायक नहीं समझा गया। बेशक, अंक पठनीय और संग्रहणीय है।
परिंदे
अगस्त-सितंबर, 2021
इक्कीसवीं सदी: स्त्री कविता अंक
कार्यकारी संपादक|ठाकुर प्रसाद चौबे
अतिथि संपादक| विमल कुमार
मूल्य |150 रुपये