आप दो साल पहले पला में किसी वोटर से ‘लव जिहाद’ के बारे में पूछते तो उसका चेहरा फक्क हो जाता। जंगल से घिरे इस इलाके में यह राजनैतिक बोलचाल का हिस्सा नहीं बन पाया था। पला केरल के दक्षिण-मध्य जिले कोट्टयम में एक छोटा-सा कस्बा है, जहां धीमी, लोचदार बोली और ईमानदार-मेहनती रवायत का बोलबाला है। आप कह सकते हैं कि यह सीरियाई ईसाई केरल का केंद्र-विंदु है। ऐसा नहीं कि केरल में समुदायों के बीच बस प्रेम ही प्रेम पसरा है। हर जगह की तरह एक-दूसरे के बारे में थोड़ी नुक्ता-चीनी, थोड़े शक-शुबहे और थोड़ी दुश्मनी यहां भी है। लेकिन यहां राजनीति समुदायों के बीच भाईचारे पर ही अधिक, प्रतिद्वंद्विता पर कम घूमती रही है। यहां सामाजिक ताकतों के बीच एक तरह का संतुलन बना रहा है, जिससे केरल में स्थायित्व और सामंजस्य कायम रहा है। समाज में साझापन भी ऐसा रहा है कि हर कोई उसमें समाता गया। इसलिए एक-दूसरे के प्रति वह नफरत का भाव यहां सिक्का नहीं जमा पाता, जैसा उत्तर भारत में देखने को मिलता है। और इसे हवा देने वाले लव जिहाद जैसे नारे यहां जड़ नहीं जमा पाते।
फिर भी कई तरह की पेचदगियां हैं। एक तो, दुनियावी राजनीति में प्रचलित बड़े अफसानों की गूंज भी सुनाई पड़ती है। आधुनिक दौर में इस्लामोफोबिया भले पश्चिमी दुनिया से आयातित मुहावरा है, मगर उसे भारत के अतीत में जमीन उपलब्ध हो जाती है। पश्चिमी दुनिया मोटे तौर पर ईसाई मानी जाती है, इसलिए उसकी स्वाभाविक गूंज केरल और पला में सुनाई पड़ती है। कोई जानकार यह बता सकता है कि लव जिहाद तो केरल से ही बाहर आया, जो हमेशा निचली परतों में छुपा रहा है। उत्तर भारतीय राजनीति की आक्रामक पैरोकार भाजपा उसे सतह पर उतार लाई। अब वह डर ऊपर दिखने लगा है और ईसाई समुदाय में ज्यादा तेज असर पैदा कर रहा है।
यह सब पला से केरल कांग्रेस (मणि) के उम्मीदवार जोस के. मणि के ईसाई समुदाय के बीच लव जिहाद की बढ़ती घटनाओं पर चिंता व्यक्त करने के बाद शुरू हुआ। विधानसभा चुनाव के लिए जब केवल कुछ ही समय बचा है, उनकी टिप्पणी माकपा के नेतृत्व वाले वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (एलडीएफ) के लिए झेंप साबित हुई, जिसने पिछले साल केसी (एम) के साथ गठबंधन किया था।
माकपा लव जिहाद कानूनों का विरोध करती रही है। उसके लिए राज्य के भाजपा नेताओं की मांग बड़ी चुनौती की तरह खड़ी हो गई, क्योंकि लव जेहाद कानून भाजपा के कई राज्यों में मूर्त रूप ले चुका है। जोस के. मणि को केरल कैथोलिक बिशप काउंसिल (केसीबीसी) का समर्थन मिलने के बाद राज्य में राजनीतिक परिदृश्य उबाल पर है। हालांकि मणि ने अपना बयान अगले दिन वापस ले लिया, लेकिन यह चुनाव से पहले धार्मिक आधार पर अल्पसंख्यक समुदायों के बीच गहरे ध्रुवीकरण को दर्शाता है। इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आइयूएमएल) जैसी अन्य पार्टियां भी विवाद में घिर रही हैं। ऐसे में केरल का राजनैतिक परिदृश्य ध्रुवीकरण के फलने-फूलने के लिए तैयार होता दिख रहा है।
इस मसले पर आइयूएमएल नेता एम.के. मुनीर ने आउटलुक को बताया कि चर्च की आशंकाएं निराधार हैं और सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में देश में कहीं भी लव जेहाद से इनकार किया है। उन्होंने कहा, “हमने बिशप से बात की और उनके डर को दूर करने की कोशिश की। यह केरल या भारत में नहीं हो रहा है।”
कालीकट के एक वरिष्ठ पत्रकार का कहना है, “अगर ईसाई अपने अधिकारों के लिए एकजुट हो रहे हैं, तो मुसलमान केंद्र सरकार की मुस्लिम विरोधी नीतियों को लेकर असुरक्षित हैं।” उनका कहना है कि जाति और धर्म हर चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, लेकिन इस बार सभी राजनैतिक मोर्चे- माकपा के नेतृत्व वाले एलडीएफ, कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूडीएफ और भाजपा ने अपने उम्मीदवारों को इन विचारों के आधार पर मैदान में उतारा है। उत्तरी केरल में मुसलमानों को लुभाने के लिए माकपा ने भी अपनी रणनीति बदल दी है और ज्यादा मुस्लिम उम्मीदवारों को चुनाव में उतारा है। यहां तक कि माकपा ने दो दिनों के चुनाव प्रचार के बाद एक उम्मीदवार को बदलने का फैसला कर लिया।
केसीबीसी के किबू इरिम्बिनिकल का कहना है कि उन्होंने अपने जीवन में ऐसा ध्रुवीकरण वाला चुनाव पहले कभी नहीं देखा है। वे कहते हैं, “पहले भी राजनीतिक दल चुनाव के दौरान हमसे सलाह लेते थे, लेकिन इस बार यह अलग स्तर पर चला गया है। राजनीतिक दलों ने यह मान लिया है कि वे पार्टी विचारधारा के आधार पर नहीं, बल्कि धर्म के आधार पर चुनाव लड़ रहे हैं।”
भाजपा हिंदू और ईसाई मतदाताओं को लुभाने के लिए लव जिहाद का इस्तेमाल कर रही है। अपने चुनावी घोषणापत्र में उसने उत्तर प्रदेश और अन्य भाजपा शासित राज्यों की तरह लव जिहाद के खिलाफ कानून बनाने का वादा किया है। इरिम्बिनिकल कहते हैं, “भाजपा लव जिहाद कानून का इस्तेमाल मुसलमानों को परेशान करने के लिए करेगी। हमें याद रखना चाहिए कि उन्होंने ट्रेन में नन पर हमला करने के लिए लव जेहाद कानून का इस्तेमाल किया था।”
भाजपा ने मुसलमानों के प्रति सरकार की कथित तुष्टीकरण नीति और यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (यूडीएफ) के भीतर इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के बढ़ते असर से चर्च के गुस्से को भुनाने की कोशिश शुरू कर दी है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष के. सुरेंद्रन ने कहा, “इस्लामी कट्टरपंथ को चर्च ईसाई धर्म के लिए खतरा मानता हैं। उसे लगता है कि भाजपा ही इस्लाम के आतंक का विरोध कर सकती है।” ईसाई समुदाय का मानना है कि यूडीएफ और एलडीएफ एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।
ध्रुवीकरण की वजह से एलडीएफ को मुसलमानों और ईसाइयों के बीच पैठ बनाने में मदद मिल रही है। प्रदेश में मुस्लिम आबादी 27 फीसदी और ईसाई आबादी 19 फीसदी है। इसका असर केरल के उत्तरी जिलों में महसूस किया जा रहा है, जहां मुस्लिम बहुसंख्यक हैं। कई चुनाव पूर्व सर्वेक्षण भी मुस्लिम वोटों को एलडीएफ के पाले में जाने की भविष्यवाणी कर रहे हैं। चुनाव पूर्व कई सर्वेक्षणों के साथ, कोच्चि स्थित एक वरिष्ठ पत्रकार पिनराई विजयन सरकार की वापसी का संकेत देते हुए कहते हैं कि चर्च एलडीएफ के लिए अनुकूल रुख अपना सकते हैं।
माकपा उम्मीदवार एम.बी. राजेश का कहना है, “अल्पसंख्यक समुदायों को अच्छी तरह पता है कि भाजपा उनके साथ उत्तर भारत में कैसा व्यवहार करती है।” उत्तर प्रदेश में एक ट्रेन पर दो ननों पर हमले की हाल की घटना ईसाई वोट बटोरने की भाजपा की उम्मीदों पर पर पानी फेर सकता है। सीरो-मालाबार चर्च के पूर्व प्रवक्ता फादर पॉल थेलकट का कहना है, “भाजपा और आरएसएस हमेशा ईसाई धर्म के विरोधी रहे हैं। चर्च में कुछ लोग हैं जो मानते हैं कि सीरियाई ईसाई उच्च जाति के हैं। हिंदुत्ववादी ताकतें उन्हें स्वीकार करने को तैयार हैं।”
यूडीएफ की उम्मीदों पर कालीकट के फारूक कॉलेज के प्रोफेसर डॉ. हमीद सी. कहते हैं कि मुस्लिम लीग के वोट बैंक में बहुत गिरावट नहीं आएगी। वे कहते हैं, "आइयूएमएल अपना वोट बैंक बनाए रख सकता है, लेकिन यूडीएफ के लिए लोकसभा चुनाव जैसा एकतरफा समर्थन नहीं दिखेगा। आइयूएमएल नेता एम.के. मुनीर का कहना है, “माकपा ने भ्रम फैलाने की कोशिश की है कि मुस्लिम लीग राज्य में शासन करेगी और यूडीएफ में उसका असर रहेगा। यह अन्य समुदायों के बीच असुरक्षा का कारण बन गया है।”
आइयूएमएल की चिंताओं के बीच माकपा ने सुन्नी मुस्लिमों के साथ अपने रिश्ते बेहतर बना लिए हैं, जो इस क्षेत्र का एक प्रभावशाली वर्ग है। एलडीएफ सरकार ने अगड़े समुदायों के बीच आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) के लिए 10 प्रतिशत कोटा लागू करने की भी घोषणा की है।
सबरीमला मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं के प्रवेश का मुद्दा एक और विवादास्पद मुद्दा है जिसने चुनाव में ध्रुवीकरण को बढ़ाया है। हिंदू समुदाय के वोटों पर नजर रखने वालों के एजेंडे में यह सबसे ऊपर है। कांग्रेस और भाजपा ने अपने घोषणापत्र में मासिक धर्म वाली महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाने के लिए कानून बनाने की बात कही है। नायर समुदाय का रुख सभी राजनीतिक मोर्चों के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि नायर सर्विस सोसायटी (एनएसएस) ने सबरीमला और अन्य मुद्दों पर सरकार के साथ रहने का फैसला किया है। एनएसएस के महासचिव जी सुकुमारन नायर ने कहा कि वे सभी राजनीतिक दलों से समान दूरी रखेंगे। उनका कहना है, “हमारे मुद्दों को राजनैतिक नजरिए से नहीं देखा जाना चाहिए। हमारी मांग है कि सबरीमला में महिलाओं के प्रवेश पर रोक लगाई जाए जाए।”
नायर समुदाय की आबादी करीब 15 प्रतिशत और प्रभावशाली एझावा समुदाय की 23 प्रतिशत है। चुनाव के नतीजे तय करने में उनकी अहम भूमिका है। उनके नेता और श्री नारायण धर्म परिपालन (एसएनडीपी) योगम के महासचिव वेलापल्ली नतेसन कहते हैं, “एलडीएफ सरकार ने स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय काम किया है। हम उस पार्टी का समर्थन करेंगे जिसने संकट में हमारी मदद की है। भाजपा उच्च जातियों वाली पार्टी है जो 100 साल में भी केरल में कुछ नहीं कर पाएगी।” मजेदार बात यह है कि उनके सहयोगी संगठन भारत धर्म जन सेना (बीडीजेएस) के प्रमुख तुषार वेलापल्ली, केरल में भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए के सहयोगी के बेटे हैं।
“चांदी के कुछ टुकड़ों के लिए जूडस ने जैसे क्राइस्ट को धोखा दिया...सोने के कुछ टुकड़ों के लिए ठीक वैसा धोखा एलडीएफ ने केरल को दिया
पलक्कड़ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
“मैंने अपने जीवन में ऐसा ध्रुवीकरण वाला चुनाव नहीं देखा है। पहले भी राजनीतिक दल चुनाव के दौरान हमसे सलाह लेते थे, लेकिन इस बार यह अलग स्तर पर चला गया है”
किबू इरिम्बिनिकल, केसीबीसी
“हम गाय का दूध पीते हैं, इसलिए गाय हमारी मां के समान है और इसे नहीं मारा जाना चाहिए”
अभिनेता कृष्ण कुमार, (भाजपा प्रत्याशी) तिरुवनंतपुरम