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बिहार/जी, मंत्री जी नहीं तो लो इस्तीफा

नीतीश सरकार में मंत्री-अधिकारियों की तनातनी से सियासी हलचल
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ समाज कल्याण मंत्री मदन सहनी

नीतीश कुमार के शासनकाल में लंबे समय से मंत्रियों, सांसदों, विधायकों में बिहार के नौकरशाहों के प्रति नाराजगी रही है, लेकिन अब गुस्सा खुलकर सामने आने लगा है। समाज कल्याण मंत्री मदन सहनी ने कथित रूप से इससे आजिज होकर इस्तीफा देने कि घोषणा की है।  सहनी सत्तारूढ़ जदयू के वरिष्ठ नेता हैं, लेकिन उन्होंने यह कहकर इस्तीफा देने की घोषणा की है कि बिहार में नौकरशाहों के सामने मंत्रियों की भी नहीं चलती है। वे कहते हैं, ‘‘सचिव स्तर के अधिकारी की बात तो दूर, चपरासी भी हमारी कोई बात नहीं सुनता है।’’ सहनी के अनुसार, मंत्री के रूप में मिला बड़ा बंगला और बड़ी गाडि़यां उनके किस काम की, अगर वे गरीब जनता की सेवा न कर सकें। दरअसल, सहनी इस बात खफा हैं कि विभागीय सचिव ने तबादलों के मामलों में उनकी अनसुनी की है। हालांकि यह तात्कालिक कारण मात्र हो सकता है, क्योंकि पहले भी मंत्रियों और विभागीय सचिवों में तनातनी की खबरें आती रही हैं। छह वर्षों से मंत्री सहनी का आरोप यह भी है कि उनके पिछले मंत्रालय में भी सचिव का रवैया असहयोगात्मक था, लेकिन अब पानी सिर से ऊपर जाने लगा है।

सहनी जोर देकर कहते हैं कि उनका जदयू छोड़ने का कोई इरादा नहीं है और वे विधायक के रूप में दरभंगा में अपने क्षेत्र में कार्य करते रहेंगे। लेकिन सियासी हलकों में चर्चा है कि वे राजद का दामन थाम सकते हैं। ऐसी भी खबरें हैं कि वे दिल्ली जाकर इस सिलसिले में लालू प्रसाद से भेंट कर सकते हैं।

जदयू इसे पार्टी का अंदरूनी मामला बता रही है, लेकिन राजनैतिक टिप्पणीकार इसे नीतीश के खिलाफ खुला विद्रोह मान रहे हैं। पिछले पंद्रह वर्षों में पहली बार किसी मंत्री ने अफसरों के रवैये के कारण इस्तीफा देने का ऐलान किया है। गौरतलब है, सहनी के इस कदम के बाद सत्तारूढ़ एनडीए के कई नेता खुलकर उनके पक्ष में आ गए हैं। हिंदुतानी अवाम मोर्चा-सेक्युलर के नेता तथा पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी के अलावा कई जदयू और भाजपा नेताओं ने उनके आरोपों की पुष्टि की है। भाजपा के पीएचईडी मंत्री रामप्रीत पासवान का कहना है कि इस बात से नकारा नहीं जा सकता है कि कुछ अधिकारी मनमानी करते हैं। वे कहते हैं, ‘‘हम शुरू से ही कहते रहे हैं कि मंत्री बड़ा होता है न कि सचिव।’’

अतीत में नीतीश के शासनकाल के दौरान कई बार ऐसे विवाद हुए जब जदयू और भाजपा के मंत्रियों सहित विधायकों ने नौकरशाहों के खिलाफ न सिर्फ मुख्यमंत्री से शिकायत की, बल्कि मामला विधानसभा में भी गूंजा। उनका आरोप रहा है कि नौकरशाह सिवाय मुख्यमंत्री के किसी की नहीं सुनते। विपक्ष का कहना है कि नीतीश ने ही अफसरों को शह दे रखी है। वे अपनी पार्टी या गठबंधन के नेताओं से ज्यादा अपने विश्वासपात्र अधिकारियों की ही बात सुनते हैं। हाल ही परबत्ता के जदयू विधायक संजीव कुमार ने खगडि़या के पुलिस अधीक्षक पर यह कहते हुए मोर्चा खोल दिया था कि उनकी अपराधियों से सांठगांठ है, जिससे उनकी जान को खतरा है। उनका भी कहना है कि अगर अधिकारी जनप्रतिनिधि की बात नहीं सुनते हैं तो फिर लोकतंत्र का क्या मतलब रहेगा?

हालांकि समय-समय पर नीतीश कुमार ने सरकारी सर्कुलर के जरिए नेताओं की शिकायतें दूर करने की कोशिश है, जिसमें नौकरशाहों को जनप्रतिनिधियों को समुचित सम्मान देने को कहा गया है। 2006 में एक सरकारी आदेश के जरिए सभी प्रमुख सचिवों, आयुक्तों, जिलाधिकारियों और सभी आला पुलिस अधिकारियों को केंद्र सरकार के कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग के दिशानिर्देशों का पालन करने की हिदायत दी गई। 2013 में भी एक अन्य सर्कुलर के जरिए निर्देश दिया गया कि उन्हें सांसद, विधायक और अन्य जनप्रतिनिधि के आगमन पर उनके सम्मान में अपनी कुर्सी से उठकर स्वागत करना है। वे ऐसे जनप्रतिनिधि के किसी मिस्ड कॉल या संदेश पर यथोचित कार्रवाई करें। इसके अलावा, वे अपने क्षेत्रों में स्थानीय जनप्रतिनिधियों के साथ कम से कम एक बार संवाद स्थापित करें। लेकिन, जैसा कि सहनी प्रकरण से स्पष्ट है, ये सर्कुलर महज प्रशासनिक खानापूर्ति हैं, अधिकारी उन्हें कभी गंभीरता से नहीं लेते।

इधर, नीतीश सरकार के एक अति पिछड़े समाज के मंत्री सहनी के इस कदम से विपक्ष के हौसले बुलंद हैं। राजद नेता तेजस्वी प्रसाद यादव ने कहा है कि नीतीश सरकार दो-तीन महीने में गिर जाएगी। हालांकि, सत्तारूढ़ गठबंधन ने इसे उनका दिवास्वप्न करार दिया और कहा कि सरकार पांच वर्ष के कार्यकाल को पूरा करेगी।

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