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अंदरखाने

सियासी दुनिया की हलचल
प्रशांत किशोर

“मैं तीसरे या चौथे मोर्चे में विश्वास नहीं करता, मुझे यकीन नहीं कि ऐसा कोई मोर्चा भाजपा को सफलतापूर्वक चुनौती दे सकता है”, प्रशांत किशोर, चुनाव रणनीतिकार और आइ-पैक के संस्थापक

पहली लड़ाई कौन जीता

उत्तर प्रदेश की राजनीति में पिछले कुछ दिनों से सबसे ज्यादा इन्हीं की चर्चा थी। जनवरी में नौकरशाह से नेता बनने के बाद बड़ा पद मिलने के कयास लगाए जा रहे थे। सत्ता में दिल्ली के निर्देश पर सीधे एंट्री होने का पूरा भरोसा था। लेकिन सब पर पानी फिर गया है। अब उन्हें संगठन में भेज दिया गया है और वहां अपनी कुशलता दिखाने को कहा गया है। साहेब के मंत्री नहीं बन पाने से कई लोगों को राजनैतिक संदेश साफ तौर पर मिल गया है कि आने वाले विधानसभा चुनाव की रणनीति किसके इर्द-गिर्द घूमेगी। भले इस बीच कुछ लोग पार्टी की परंपरा याद दिलाना नहीं भूल रहे हैं।

नौकरियों की बंदरबांट का राज     

पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह की हालत इन दिनों ‘आसमान से गिरा खजूर पर अटका’ जैसी है। पहले सरकार और पार्टी की भीतरी कलह और अब पार्टी के विधायकों के बेटे-बेटियों को अनुकंपा के आधार पर प्रदेश में शीर्ष पदों पर नौकरी देने के मामले में वे घिर गए हैं। कैप्टन के करीबी लोग भी उन्हें घेर रहे हैं। करोड़पति कांग्रेसी नेताओं के बेटे-बेटियों को सरकारी नौकरी उस कोटे से दी जा रही हैं, जिसमें उल्लेखनीय काम करने या सरकारी नौकरी में रहते परिवार के एकमात्र कमाऊ मुखिया की आकस्मिक मौत के बाद नौकरी दिए जाने का प्रावधान है। कांग्रेसी हलकों में दबी जुबान में चर्चा जोरों पर है कि कैप्टन ने 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले अपने पाले में अधिक से अधिक विधायकों को करने के लिए उनके बेटे-बेटियों को सरकारी नौकरियों की बंदरबांट की है।

ईमानदार अधिकारी बनीं मुसीबत

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने इस बार की नई पारी में छवि बदलने के लिए ईमानदार अधिकारियों को महत्वपूर्ण विभागों की जिम्मेदारी सौंपी है। ऐसी ही एक महिला आइएएस आबकारी विभाग की प्रमुख सचिव बनाई गई हैं। जब उनके काम की आंच भाजपा से जुड़े नेताओं के कारोबार पर पड़ने लगी तो मुख्यमंत्री की परेशानी भी बढ़ने लगी। अब मुख्यमंत्री असमंजस में पड़ गए हैं कि आगे क्या करें। अगर अधिकारी को हटाते हैं तो संदेश गलत जाएगा और नहीं हटाते हैं अपनी ही पार्टी के नेताओं को खुश रखना मुश्किल होगा। खैर मुख्यमंत्री की इस असमंजस को कुछ समय के लिए अधिकारी ने ही दूर कर दिया है। वे लंबी छुट्टी पर चली गई हैं। अब भले ही सीधे मुख्यमंत्री पर बात नहीं आई, लेकिन सवाल तो उठने ही लगे हैं।

चुनावी सौदा

मध्य प्रदेश में जल्द ही लोकसभा और विधानसभा उपचुनाव होने वाले हैं। ऐसे में, कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष को लंबे समय से नाराज दो नेताओं की याद आई जिनके असर वाले क्षेत्रों में उपचुनाव होना है। सो, प्रदेश अध्यक्ष ने अपने विश्वासपात्र लोगों को उनके पास नाराजगी दूर करने के लिए भेजा। संकेतों से ऐसा लग रहा है कि उनको सफलता मिल गई है और वे चुनाव में जोर लगाने के ल‌िए तैयार हो गए गए हैं। लेकिन नाराजगी दूर करने के लिए क्या सौदा हुआ है, इसका अभी खुलासा नहीं हो पाया है। दोनों नेताओं के ट्रैक रिकॉर्ड को देखते हुए यह तो साफ है कि सौदा सस्ता नहीं रहा होगा।

बहन के लिए सीबीआइ क्यों नहीं

विधायक मैडम राज परिवार से आती हैं। सरकार भी उन्हीं की पार्टी की है। एक महिला दारोगा की मौत पर झारखंड की राजनीति गरमाई हुई है। विपक्ष सीबीआइ से जांच की मांग को लेकर अड़ा हुआ है। बढ़ते दबाव के बीच राजा साहब ने हाइकोर्ट के अवकाशप्राप्त मुख्य न्यायाधीश से जांच के लिए एक आयोग का गठन कर दिया है। मगर भाभी ने ट्वीट कर देवर से कहा न्यायिक जांच का आदेश नाकाफी है। आपने महिला दरोगा को बहन माना है तो उसे इनसाफ दिलाने के लिए सीबीआइ जांच क्यों नहीं?

अब सिंधिया बुरे नहीं

बजरंग दल से नाता रखने वाले मध्य प्रदेश के एक नेता के लिए अब ज्योतिरादित्य सिंधिया बुरे नहीं रहे गए हैं। पहले वे सिंधिया घराने के कट्टर विरोधी हुआ करते थे। हर साल 18 जून को लक्ष्मीबाई की समाधि पर बड़ा कार्यक्रम करते और सिंधिया घराने को दगाबाजी के लिए कोसते रहे हैं। लेकिन अब सिंधिया भाजपा में हैं तो वे बुरे कैसे हो सकते हैं! सो, इस बार कुछ भी नहीं किया। यह संयोग है कि इसी माह सिंधिया उनसे मिलने उनके घर भी पहुंचे। उसके बाद तो नाराजगी कहां बचेगी।

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