‘‘सबका विश्वास’ का नारा देनेवाले ‘सब पर शक’ कर रहे हैं। जासूसी नकारात्मक राजनीति का कुरूप रूप है’’
-अखिलेश यादव, समाजवादी पार्टी अध्यक्ष
सख्ती से बिगड़ न जाए बात
विधायकों के विरोधी खेमे के लोगों से मिलने को लेकर बवाल मचा हुआ है। असल में आरोप झारखंड में सरकार गिराने की साजिश का हो तो जाहिर है, परदा डालना भी आसान नहीं है। फ्रंट पर रहने वाले कुछ साजिशकर्ता पकड़े गये और सीसीटीवी फुटेज ने भी गवाही दे दी है। मगर नेता जी एक्शन लेने के बदले इसे विरोधी नेताओं से मुलाकात का महज संयोग बता रहे हैं। नेता जी के करीबी ने कहा कि पार्टी में असंतुष्टों की संख्या बड़ी है। कठोर एक्शन से दूसरे असंतुष्ट भड़क सकते हैं। पार्टी को नुकसान होगा। इस डर से कठोर एक्शन लेने से परहेज किया जा रहा है। लेकिन देखना है कब तक।
होटल का सच
झारखंड के मंत्री जी की पत्नी का होटल चर्चा में है। परत खुल रही है तो जाहिर हो रहा है कि कानून को धता बताकर इसका संचालन हो रहा था। चुनावी हलफनामे में इसकी कीमत 75 लाख रुपये बताई गई थी। प्रशासन ने अनियमितताओं को लेकर 2.67 करोड़ रुपये का जुर्माना लगा दिया है और सील करने का आदेश जारी कर दिया है। आरोप है कि जी फाइव बना हुआ है, जबकि नक्शा जी थ्री का ही था। उसमें भी सिर्फ एक फ्लोर का ही व्यावसायिक नक्शा है लेकिन बेसमेंट में भी पार्किंग के बदले किचन और रेस्तरां चल रहा था। बाउंड्री भी नदी का अतिक्रमण करके बनाई गई है। इसे कहते हैं, सैयां भये कोतवाल तो डर काहे का। मगर अदालत के आदेश के बाद उनका पसीना छूट रहा है। अब कहीं से कोई राहत मिलती नहीं दिख रही है। लेकिन सरकार है तो कुछ तो उम्मीद पाल ही सकते हैं, भले फिलहाल कुछ इंतजार करना पड़े।
पहले घर ठीक कर लें
नई पार्टी के अध्यक्ष जी बिहार की गठबंधन सरकार में गाय-गोरू वाला विभाग संभालते हैं। पार्टी में अपेक्षाएं भी कुलाचें मार रही हैं। अक्सर वे आंखें भी दिखाते रहते हैं। उनकी पार्टी के विधायक महसूस करते हैं कि अध्यक्ष जी पशुओं की तरह विधायकों को भी हांकना चाहते हैं। पिछले सप्ताह गठबंधन की बैठक से अध्यक्ष जी नदारद हो गये, कहा कि जहां उनकी सुनी नहीं जाए, वहां जाने का क्या फायदा। इसके बाद उनके दो विधायकों ने अलग राग अलापा और कहा कि मंत्री हैं फिर बात नहीं सुनी गई इसलिए नाराज हैं। इस पर अध्यक्ष जी बिफर पड़े और साफ संदेश दे दिया कि पर्दे के पीछे राजनीति बंद हो, नहीं तो पर्दे में आग लगा देंगे।
खासमखास जो हैं
सत्ता के गलियारों में इन दिनों एक नौकरशाह की खूब चर्चा है। असल में पिछले एक साल से जिन केंद्रीय कृषि कानूनों को लेकर सड़क पर किसान और संसद में राजनीतिक दल सरकार के नाक में दम किए हुए हैं, उसे मूर्त रूप में देने में इन अधिकारी का बड़ी भूमिका रही है। कैबिनेट के नए विस्तार में बने नए विभाग की जिम्मेदारी भी इन्हीं अधिकारी को मिल गई है। इस विभाग की कमान गृह मंत्री के पास है। ऐसे में कयास यही लगाए जा रहे हैं कि अब नए मंत्रालय में क्या बड़ा होने वाला है। सो, अब नए धमाके का इंतजार है।
अब किस मुख्यमंत्री की बारी
पहले उत्तराखंड, फिर कर्नाटक में भाजपा ने मुख्यमंत्री बदला, तो मध्य प्रदेश में भी अटकलें शुरू हो गई हैं। इन अटकलों को इसलिए भी बल मिल रहा है क्योंकि प्रदेश में बड़े प्रशासनिक फेरबदल की तैयारी का मन बना चुके मुख्यमंत्री ने फिलहाल उसे ठंडे बस्ते डाल दिया है। माना जा रहा था कि प्रभारी मंत्रियों की नियुक्ति के बाद इसे कभी भी जारी कर दिया जाएगा। ऐसे में अटकलों का बाजार गरम हो गया है। चर्चा है कि मुख्यमंत्री का भी सारा ध्यान डैमेज कंट्रोल पर चला गया है।
अब जरूरत नहीं
विधायक रमाबाई को पहले कांग्रेस और उसके बाद भाजपा का समर्थन मिलता रहा। उनके आरोपी पति को लेकर दोनों ही पार्टी की सरकारों ने नरमी का रवैया रखा, लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद स्थितियां बदल गई हैं। फटकार के बाद उनके पति को सेंट्रल जेल भेज दिया गया है। मध्य प्रदेश भाजपा सरकार ने भी तय कर लिया है कि अब रमाबाई को कोई सहयोग नहीं किया जाएगा। दमोह उपचुनाव हारने के बाद वैसे भी भाजपा को अब उनकी जरूरत नहीं रही है।