सड़क से लेकर संसद और फिर सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा नीट-यूजी परीक्षा में धांधली का मुद्दा शांत भी नहीं हुआ था कि देश की सबसे प्रतिष्ठित प्रतियोगी परीक्षा आयोजित कराने वाली संस्था संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) सवालों के घेरे में आ गई। यूपीएससी के दामन पर अब तक इस तरह का दाग नहीं लगा था। महाराष्ट्र काडर की प्रशिक्षु आइएएस अधिकारी पूजा खेड़ेकर के मामले ने इसकी साख पर बट्टा लगा दिया। क्या अब देश में ऐसी कोई परीक्षा बची है, जो ‘फुलप्रूफ’ हो? संघ लोकसेवा आयोग ने कड़ा फैसला लेते हुए पूजा खेड़ेकर का आइएएस का सिलेक्शन रद्द कर दिया है। भविष्य में वे अब यूपीएससी की किसी परीक्षा में नहीं बैठ पाएंगी।
पूजा पर ओबीसी और दिव्यांगता के फर्जी प्रमाण पत्र के जरिए सिविल सेवा परीक्षा पास करने का आरोप है। पूजा के पिता दिलीप खेड़ेकर सरकारी अधिकारी रहे हैं और वे 2024 में वंचित बहुजन अघाड़ी के टिकट पर चुनाव भी लड़े थे। उनके हलफनामे के मुताबिक उनके पास 110 एकड़
कृषि भूमि, 45 करोड़ रुपये की चल संपत्ति, 7 फ्लैट, 900 ग्राम सोना और चार कारें हैं।
इसके बाद भी पूजा ने ओबीसी नॉन क्रीमी-लेयर सर्टिफिकेट के साथ यूपीएससी की परीक्षा दी। नियमों के मुताबिक परिवार की आय 8 लाख रुपये से ज्यादा है, तो व्यक्ति ओबीसी आरक्षण का हकदार नहीं होता।
दूसरा मुद्दा यह है कि 22 अप्रैल 2022 से 2 सितंबर 2022 के बीच छह बार बुलाए जाने के बावजूद पूजा अपनी दिव्यांगता प्रमाणित कराने एम्स नहीं पहुंच पाईं। बाद में पूजा ने निजी क्लिनिक से जारी दिव्यांगता प्रमाण पत्र यूपीएससी को सौंपा, जिसे स्वीकार कर लिया गया। नियम के मुताबिक यूपीएससी से अधिकृत अस्पताल में ही विकलांगता परीक्षण हो सकता है।
यूपीएससी की जांच में पता चला है कि पूजा ने परीक्षा में दो बार बैठने के लिए नाम सहित, फोटो और अन्य जानकारियां बदलकर अपनी फर्जी पहचान बनाई थी। पूजा की नियुक्ति में सामने आ रहीं अनियमितताओं के खुलासे से यूपीएससी भी कटघरे में है। अब यूपीएससी ने पूरी परीक्षा प्रणाली में बदलाव का नोटिफिकेशन निकालकर हलचल बढ़ा दी है। परीक्षा में धांधली रोकने के लिए यूपीएससी टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करेगा, जिसमें आधार आधारित फिंगरप्रिंट प्रमाणीकरण, उम्मीदवारों के चेहरे की पहचान और लाइव आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित सीसीटीवी निगरानी शामिल होगी। लेकिन सवाल अब तक उसकी कार्यप्रणाली पर उठ रहा है।
मामला बढ़ता देख प्रधानमंत्री कार्यालय ने पुणे कलेक्टर से विस्तृत रिपोर्ट मांगी है। लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी (लबासना) ने पूजा का पुणे में जिला प्रशिक्षण कार्यक्रम स्थगित कर दिया है। इस बीच डिपार्टमेंट ऑफ पर्सनल ऐंड ट्रेनिंग (डीओपीटी) ने पूजा को 26 जुलाई को कारण बताओ नोटिस भेज कर दो अगस्त तक खुद पर लगे इल्जाम का जवाब देने को कहा है। अगर तय समय सीमा के भीतर पूजा जवाब नहीं देती हैं तो संभव है कि उन्हें टर्मिनेट कर दिया जाए।
यूपीएससी ने भी पूजा खेड़ेकर के खिलाफ पुलिस में प्राथमिकी दर्ज कराई है और उनकी नियुक्ति रद्द करने के लिए कारण बताओ नोटिस भेजा है। यूपीएससी की एक सदस्यीय जांच कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने पूजा के विरुद्ध आपराधिक मामला दर्ज किया है। इसमें जालसाजी, धोखाधड़ी और आइटी एक्ट की धाराओं में इल्जाम शामिल हैं। इनमें कई धाराएं गैर-जमानती हैं। गिरफ्तारी से बचने के लिए पूजा ने दिल्ली हाइकोर्ट में अंतरिम जमानत की अर्जी लगाई है।
कैसे हुआ शक
आरटीआइ कार्यकर्ता विजय कुंभार ने पूजा खेड़ेकर के ओबीसी और दिव्यांगता प्रमाण पत्र पर सवाल उठाए थे। पूजा की नियुक्ति पर शक के बारे में विजय ने आउटलुक से कहा, ‘‘ट्रेनिंग के दौरान उन्होंने निजी ऑडी कार पर लाल बत्ती, वीआइपी नंबर प्लेट, अलग कार्यालय और नौकर की मांग की। उन पर साथी अधिकारियों के साथ अनुचित व्यवहार का भी आरोप लगा। फिर पूजा का तबादला पुणे से वाशिम एडिशनल असिस्टेंट कलेक्टर के पद पर कर दिया गया। मामला मेरे संज्ञान में आया, तो मुझे लगा इसमें और अनियमितताएं हो सकती हैं। जांच के बाद पता चला कि उन्होंने सिविल सर्विस परीक्षा में फर्जी जाति और मेडिकल प्रमाण पत्र का इस्तेमाल किया था।’’
पूजा ने यूपीएससी को बताया था कि वे ओबीसी हैं और नॉन क्रीमी लेयर के दायरे में आती हैं क्योंकि उनके माता-पिता का तलाक हो चुका है। विजय कहते हैं, ‘‘मैंने पाया कि तलाक नहीं हुआ है। पिता ने अपने चुनावी हलफनामे में खुद को तलाकशुदा नहीं बताया था। उनकी मां ने भी लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए पर्चा भरा था, लेकिन बाद में अपना नामांकन वापस ले लिया।’’ विजय के मुताबिक, ‘‘पूजा ने यूपीएससी परीक्षा में दृष्टिबाधित और मानसिक रूप से अस्वस्थ होने के बारे में बताया था। शक गहराने पर मैंने दिव्यांगता प्रमाण पत्र की जांच की। इसमें भी कई अनियमितताएं थीं। उन्होंने 23 अगस्त 2022 को दो जगहों औंध और पिंपरी-चिंचवड़ में दिव्यांगता प्रमाण पत्र के लिए आवेदन किया था। एक जगह उन्होंने सदर अस्पताल में इलाज चलने की बात कही थी, जबकि दूसरी जगह वाईसीआर अस्पताल का नाम था। कोई व्यक्ति एक साथ दो जगहों पर इलाज कैसे करा सकता है?’’
पूजा ने जाति और दिव्यांगता प्रमाणपत्र के साथ नाम और पते के साथ भी छेड़छाड़ की है। संस्कृति आईएएस ऑनलाइन फैकल्टी में पढ़ाने वाले मनीष भारती आउटलुक को बताते हैं, ‘‘यूपीएसी नियमों के अनुसार, सामान्य वर्ग के उम्मीदवार अधिकतम छह बार, ओबीसी और बेंचमार्क विकलांग व्यक्ति (पीडब्ल्यूबीडी) नौ बार परीक्षा में शामिल हो सकते हैं। 2020-21 तक, पूजा ओबीसी कोटे के तहत पूजा दिलीपराव खेड़ेकर नाम से परीक्षा में शामिल हुई थीं। 2021-22 में, सभी प्रयास समाप्त होने के बाद, आरोप है कि वह ओबीसी और दिव्यांगता कोटे के तहत पूजा मनोरमा दिलीप खेड़ेकर नाम से परीक्षा में शामिल हुईं। तब उन्होंने 821 रैंक के साथ परीक्षा पास की। उन्हें आईएसस मिला क्योंकि उन्होंने दिव्यांग उम्मीदवारों के लिए कोटे के तहत परीक्षा पास की थी।’’
आउटलुक ने पूजा का पक्ष जानने के लिए कई बार संपर्क साधने की कोशिश की। लेकिन उनकी ओर से किसी भी सवाल का कोई जवाब नहीं आया। बाद में मीडिया से बातचीत में उन्होंने कहा, ‘‘जब तक दोष साबित नहीं होता, व्यक्ति निर्दोष होता है। इसलिए मीडिया ट्रायल के जरिए मुझे दोषी साबित करना गलत है। मैं समिति के समक्ष गवाही दूंगी। समिति जो भी निर्णय लेगी, वह सभी को स्वीकार्य होना चाहिए।’’
सबसे बड़ा सवाल है कि क्या यूपीएससी इतनी अक्षम है कि वह किसी अभ्यर्थी का नाम, उम्र, पता, दिव्यांगता और जाति प्रमाण पत्र के दुरुपयोग के बारे में जान न सके। तब क्या ऐसे और भी उम्मीदवार हैं, जो फर्जी जाति और दिव्यांगता प्रमाण पत्र के जरिए सफल रहे हैं?
पूरे कुएं में भांग
पहली बार नहीं है, जब यूपीएससी में दिव्यांग प्रमाण पत्र के गलत इस्तेमाल को लेकर विवाद हुआ है। बस पहली बार इसे लेकर इतनी चर्चा हो रही है। संभव है पूजा अपने लिए वीआईपी ट्रीटमेंट न मांगती, तो शायद उनका नाम कभी सामने नहीं आता। ऐसा ही एक मामला 2011 बैच के नौकरशाह से अभिनेता बने अभिषेक सिंह का है। लोकोमोटर दिव्यांगता (एलडी) श्रेणी के तहत यूपीएससी क्लियर करने वाले सिंह की सोशल मीडिया पर कई ऐसे वीडियो वायरल हैं, जिसमें उन्हें जिम में कसरत करते और नाचते हुए देखा जा सकता है। इसके बाद सोशल मीडिया पर दर्जनों ऐसे आईएसस के नाम सामने आ रहे हैं, जिन पर फर्जी जाति और मेडिकल सर्टिफिकेट का इस्तेमाल कर नौकरी हासिल करने का संदेह है।
मनीष भारती आउटलुक से कहते हैं, ‘‘मैं ऐसे कई लोगों को जानता हूं, जो फर्जी ईडब्लूएस या ओबीसी सर्टिफिकेट का इस्तेमाल कर बड़े ओहदे पर हैं।’’ विजय कुंभार कहते हैं, ‘‘चंद रुपये देकर किसी भी तरह का सर्टिफिकेट आसानी से हासिल किया जा सकता है। देश में बड़े स्तर पर इसका रैकेट चल रहा है।’’
गरमाई राजनीति
नीट-यूजी मामले के बाद विपक्ष को सरकार को घेरने के लिए एक और मुद्दा मिल गया है। इसमें यूपीएससी चेयरमैन मनोज सोनी के इस्तीफे ने आग में घी का काम किया है। सोनी के इस्तीफे के बाद सरकार की आलोचना करते हुए कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने आरोप लगाया कि 2014 में भाजपा के सत्ता में आने के बाद से सभी संवैधानिक निकायों को कमजोर किया गया है। रमेश ने कहा, मोदी ने 2017 में गुजरात से अपने पसंदीदा ‘शिक्षाविदों’ में से एक को यूपीएससी सदस्य के रूप में लाए और छह साल के कार्यकाल के लिए उन्हें 2023 में अध्यक्ष बनाया। लेकिन इस सज्जन ने कार्यकाल की समाप्ति से पहले ही इस्तीफा दे दिया है।
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे का कहना है कि भाजपा-आरएसएस भारत के संवैधानिक निकायों पर कब्जा करने में मशगूल है। इससे संस्थाओं की प्रतिष्ठा, अखंडता और स्वायत्तता को नुकसान पहुंच रहा है। यूपीएससी घोटाला चिंता का विषय है। यह लाखों उम्मीदवारों का अपमान है, जो सिविल सेवा परीक्षाओं की तैयारी में कड़ी मेहनत करते हैं।’’