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13 जून 2022 · JUN 13 , 2022

मध्य प्रदेश: पंच-पार्षद क्यों नहीं भाते

आखिरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद तीन साल से टल रहे स्थानीय निकाय चुनावों का रास्ता साफ
अपने-अपने दावेः शिवराज और कमलनाथ दोनों ले रहे श्रेय

आखिर सुप्रीम कोर्ट को मध्य प्रदेश में स्थानीय निकाय और पंचायत चुनाव के लिए आदेश देना पड़ा। अब करीब तीन साल बाद ये चुनाव कराए जा रहे हैं। हालांकि इसे लेकर कितनी निराशा और नाराजगी है, इसकी झलक नगर निगम पार्षद का चुनाव लड़ने वाले एक दावेदार के शब्दों में बयां होती है। नाम न छापने की शर्त पर वे कहते हैं, “लोकसभा और विधानसभा के चुनाव तो समय से कराए जाते हैं लेकिन निकाय चुनावों पर किसी का ध्यान नहीं रहता। निकाय चुनाव तीन साल तक क्यों नहीं हुए, इसका जवाब कौन देगा?” चुनावों में देरी से स्थानीय स्तर पर भाजपा और कांग्रेस दोनों के कार्यकर्ताओं में नाराजगी है।

हाल ही सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश में पंचायत और निकाय चुनाव जल्द कराने संबंधी याचिका पर सुनवाई के दौरान देरी के लिए फटकार लगाई और आदेश दिया कि राज्य निर्वाचन आयोग सात दिनों में चुनाव की अधिसूचना जारी करे। इसके पहले अदालत ने बिना ओबीसी आरक्षण के चुनाव कराने का आदेश दिया था। अब मध्य प्रदेश सरकार की संशोधन याचिका पर ओबीसी आरक्षण के साथ चुनाव कराने का फैसला सुनाया गया है। साथ ही अदालत ने यह भी कहा कि प्रदेश में कुल आरक्षण 50 फीसदी से अधिक नहीं होना चाहिए। महत्वपूर्ण बात यह है कि पिछड़ा वर्ग कल्याण आयोग की रिपोर्ट को आधार बनाकर आरक्षण करने का आदेश दिया गया है। 

पहले बिना आरक्षण के चुनाव कराने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर भाजपा-कांग्रेस दोनों ने एक-दूसरे पर ओबीसी आरक्षण खत्म करने का आरोप लगाया था। दोनों ही दलों ने बिना आरक्षण के चुनाव होने पर ओबीसी वर्ग को साधने के लिए 27 फीसदी टिकट ओबीसी नेताओं को देने का ऐलान किया था। राज्य निर्वाचन आयोग ने दोनों चुनाव जून में कराने का ऐलान किया है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा, “अंतत: सत्य की जीत हुई। चुनाव तो पहले भी ओबीसी आरक्षण के साथ हो रहे थे। कांग्रेस के लोग ही सुप्रीम कोर्ट गए थे। इस वजह से ही फैसला हुआ था कि चुनाव बिना ओबीसी आरक्षण के साथ होंगे। हमने ओबीसी आरक्षण दिलाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी।”

दूसरी ओर पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता कमलनाथ का कहना है कि हमारी सरकार द्वारा ओबीसी आरक्षण 14 फीसदी से बढ़ाकर 27 फीसदी करने का पूरा लाभ पिछड़ा वर्ग को अब भी नहीं मिलेगा, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय में कहा है कि कुल आरक्षण 50 फीसदी से अधिक नहीं होना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने किसी भी सूरत में आरक्षण पर 50 फीसदी की सीमा लगा दी है। लेकिन प्रदेश में अनुसूचित जाति (एससी) वर्ग को 16 फीसदी तथा अनुसूचित जनजाति (एसटी) को 20 फीसदी आरक्षण मिल रहा है। इस तरह दोनों वर्गों के लिए मिला कर कुल 36 फीसदी आरक्षण है। हालांकि नगर निकाय में आरक्षण निकायवार तथा पंचायत चुनावों में जनपद पंचायतवार तय होंगे। सरकार ने ओबीसी को आरक्षण देने के लिए 2011 की जनसंख्या के आंकड़े प्रस्तुत किए थे। इसमें प्रदेश में ओबीसी की 51 प्रतिशत आबादी बताई गई है। सरकार का मानना था कि इस आधार पर आरक्षण मिलता है तो न्याय हो सकेगा। वहीं, दूसरे पक्ष की ओर से कहा गया था कि सरकार की ओर से कोई लापरवाही होती है तो भी ओबीसी को उसका संवैधानिक अधिकार (आरक्षण) मिलना चाहिए। कोर्ट ने जब बिना आरक्षण पंचायत चुनाव कराने का फरमान सुनाया था, तब कहा था कि ट्रिपल टेस्ट की निकायवार रिपोर्ट का आकलन करने के बाद ही तय किया जाएगा कि ओबीसी को आरक्षण दिया जाए या नहीं।

1994 से पंचायत चुनाव में ओबीसी आरक्षण लागू है। 2014 का आखिरी पंचायत चुनाव भी ओबीसी आरक्षण के साथ ही हुआ था। 2014 तक प्रदेश की पंचायतों में अनुसूचित जाति  की 16 प्रतिशत सीटें, अनुसूचित जनजाति की 20 प्रतिशत और ओबीसी के लिए 14 प्रतिशत सीटें आरक्षित थीं। पेंच तब फंस गया, जब 2019 में तत्कालीन कमलनाथ सरकार ने रोटेशन और परिसीमन की कार्रवाई की और भाजपा ने सत्ता में आते ही इसे खारिज कर दिया। शिवराज सरकार ने कांग्रेस सरकार में हुई रोटेशन-परिसीमन की कार्रवाई समाप्त करने के उद्देश्य से अध्यादेश जारी किया। कांग्रेस ने इसके खिलाफ जबलपुर हाइकोर्ट में याचिका लगा दी। जबलपुर हाइकोर्ट से राहत न मिलने पर कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट की शरण ली। सुप्रीम कोर्ट ने जबलपुर हाइकोर्ट को सुनवाई के लिए कहा। कांग्रेस नेता विवेक तन्खा ने सुप्रीम कोर्ट से दोबारा सुनवाई के लिए अनुरोध किया। तब सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश में ट्रिपल टेस्ट कराकर ओबीसी आरक्षण लागू करने का आदेश दे दिया। कांग्रेस प्रवक्ता सैयद जफर और जया ठाकुर ने चुनाव समय पर कराने के लिए सुप्रीम कोर्ट में एक नई याचिका दायर कर दी।

ओबीसी आरक्षण के साथ चुनाव कराने का सुप्रीम कोर्ट का फैसला भाजपा के लिए बड़ी राहत है। बिना आरक्षण चुनाव का असर न केवल निकाय और पंचायत चुनावों में देखने को मिलता, बल्कि अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों में भी इसकी आंच महसूस की जाती। मध्य प्रदेश में पिछड़ा वर्ग कुल आबादी के पचास फीसदी से भी ज्यादा है।

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