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3 फरवरी 2025 · FEB 03 , 2025

प्रथम दृष्टिः नई पीढ़ी के सितारे

पिछले दो-तीन दशकों में भारत में विभिन्न खेलों का टैलेंट पूल बढ़ा है
डी गुकेश ने शतरंज में नया युग शुरू किया

जब भी कोई मशहूर शख्सियत अपने करियर या कार्यक्षेत्र में असाधारण उपलब्धि हासिल कर अपने जीवन काल में ‘लिविंग लीजेंड’ की उपाधि हासिल कर लेती है, तो आम तौर पर धारणा बन जाती है कि उसके जाने के बाद उसकी जगह लेने वाला कोई अन्य शख्स भविष्य में नहीं आ सकता। उन्हें ‘इंडिस्पेंसिबल’ समझा जाता है, जिनके बगैर किसी दूसरे द्वारा वह सब हासिल नहीं किया जा सकता, जो उन्होंने अपनी लोकप्रियता के शिखर पर अपनी प्रतिभा के बल पर हासिल किया। खिलाड़ियों के संदर्भ में यह अक्सर सुना जाता है। जब भी कोई असाधारण प्रतिभा का खिलाड़ी रिटायर होता है तो अधिकतर लोग मान लेते हैं कि उसके जाने के बाद होने वाली रिक्तता को भरना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन होगा।

इसके कई उदाहरण हैं। 1987 में भारत के सलामी बल्लेबाज सुनील गावस्कर के रिटायरमेंट की घोषणा से देश के क्रिकेट-प्रेमियों के बीच मातम छा गया। चिंता थी कि टीम को संकट से अब कौन उबारेगा? लेकिन दो वर्ष के भीतर ही सचिन तेंडुलकर नाम के 16 वर्षीय युवा ने उस कमी को पूरा किया। नब्बे का दशक पूरी तरह उसके नाम रहा और रिटायरमेंट के बाद उसे ‘भारत रत्न’ से नवाजा गया, देश का सर्वश्रेष्ठ सम्मान जो गावस्कर को नहीं मिला। इसी तरह तेंडुलकर के जाने के बाद कहा गया कि उनका उत्तराधिकारी मिलना मुश्किल है, लेकिन विराट कोहली ने अपने शानदार प्रदर्शन से सचिन की कमी खलने नहीं दी। जाहिर है, प्रतिभा किसी एक पीढ़ी की मोहताज नहीं होती। हर पीढ़ी का एक ऐसा नुमाइंदा होता है, जो अपने कौशल से मैदान में जलवे बिखेरता है, जो उसकी पिछली पीढ़ी के नायकों के प्रदर्शन से कमतर नहीं होता है।

दरअसल खेल के मैदान में हर खिलाड़ी को अपना जौहर दिखाने का मौका मिलता है। उसी के बल पर वह आगे बढ़ता है। यह उन चुनिंदा क्षेत्रों में से एक है, जहां सिर्फ हुनर काम आता है। यह मायने नहीं रखता कि खिलाड़ी किस परिवार से ताल्लुक रखता है, किसकी पैरवी पर टीम में शामिल हुआ है। अगर ऐसे किसी कारण से वह मैदान में पहुंच भी जाता है, तो भी उसे अपनी काबिलियत सिद्ध करनी पड़ती है। यही वजह है कि कई नामी पूर्व खिलाड़ियों के बच्चे मौका मिलने पर भी सफलता की सीढ़ी नहीं चढ़ सके। सुनील गावस्कर का बेटा क्रिकेट में करियर बनाने में असफल रहा और सचिन तेंडुलकर का बेटा अभी भी टीम इंडिया में जगह बनाने के लिए संघर्षरत है। दोनों के पिता क्रिकेट के ‘लिविंग लीजेंड’ रहे हैं। 

इसका मुख्य कारण यह है कि देश में खेल में कभी न खत्म होने वाली प्रतिभा की खान है। सुदूर से सुदूर इलाकों में ऐसी प्रतिभाएं पनपती हैं, जिनके खेल कौशल को देखकर लोग आश्चर्य में पड़ जाते हैं। उन्हीं में से कोई महेंद्र सिंह धोनी के रूप में सामने आता है, तो कोई यशस्वी जायसवाल के रूप में। कोई डी. गुकेश जैसा विश्व विजेता बनता है, तो कोई मनु भाकर की तरह एक ही ओलंपिक में दो-दो मेडल जीत लेता है। शुरुआत में निराशा मिलने के बावजूद निकहत जरीन जैसी मुक्केबाज तब तक चैन की सांस नहीं लेती, जब तक वह अपनी मंजिल नहीं पा लेती। मैरी कॉम जब शीर्ष पर थीं तब सोचना नामुमकिन था कि उनके बाद भारत की कोई दूसरी महिला खिलाड़ी विश्व विजेता बनेगी। लेकिन, जरीन की सफलता ने विश्वास दिलाया कि किसी भी खिलाड़ी में वर्ल्ड चैंपियन बनने की काबिलियत हो सकती है, अगर उसमें सफल होने का जज्बा और जुनून हो और उसे सही मौका, मंच मिले।

विडंबना यह है कि अभी भी देश में हजारों खिलाड़ी ऐसे होंगे जिन्हें किसी न किसी वजह से सही समय पर सही मौका नहीं मिलता है। किसी जमाने में पद्माकर शिवालकर और राजेंद्र गोएल को विश्वस्तरीय स्पिनर समझा गया लेकिन उन्हें टेस्ट में देश का प्रतिनिधित्व करने का एक भी मौका सिर्फ इस वजह से नहीं मिला कि उनके समकालीन बेदी-चंद्रशेखर-प्रसन्ना-वेंकटराघवन जैसे चार बेहतरीन स्पिनर टीम में मौजूद थे। दरअसल खेल में प्रतिस्पर्धा अपने चरम पर होती है और हर खिलाड़ी को सिर्फ प्रतिभा के बल पर जगह बनानी पड़ती है। लेकिन, सिर्फ टीम में शामिल होना ही काफी नहीं। वहां बने रहने के लिए भी काफी मशक्कत करनी पड़ती है। ऐसे अनगिनत खिलाड़ी हुए जिन्हें समय पर मौका तो मिला लेकिन टीम में वह लंबे समय तक टिक नहीं सके। प्रतिभा होने के बावजूद उनमें से कई अंतरराष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में खेलने का दबाव नहीं झेल पाए। उन्होंने बाद में फिर से अपनी जगह बनाने की कोशिश की लेकिन कड़ी प्रतिस्पर्धा और नई प्रतिभाओं के उभरने के कारण कम ही खिलाड़ी कमबैक करने में सफल रहे।

पिछले दो-तीन दशकों में भारत में विभिन्न खेलों का टैलेंट पूल बढ़ा है। यह सिर्फ क्रिकेट में नहीं जहां अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेल के तीनों प्रारूपों में देश का प्रतिनिधित्व बहुत कम खिलाड़ी कर पाते हैं। आज कई खेल हैं, जहां कड़ी प्रतिस्पर्धा के बीच विश्वस्तरीय प्रतिभाएं निखर रही हैं। आउटलुक के इस अंक की आवरण कथा ऐसी ही कुछ नई प्रतिभाओं पर आधारित है, जिनमें आगे चलकर लिविंग लीजेंड बनने की संभावनाएं मौजूद हैं।

 

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