कोरोनावायरस ने शिक्षा जगत के सामने बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है। देश का शायद ही कोई शिक्षण संस्थान हो जहां एकाधिक शिक्षकों की मौत न हुई हो। पहले ही शिक्षकों की कमी से जूझ रहे इन संस्थानों में जब भी सामान्य कक्षाएं शुरू होंगी, तब उन्हें उनकी भारी कमी का सामना करना पड़ सकता है। कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर की जद में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू), दिल्ली के जामिया मिल्लिया इस्लामिया, दिल्ली विश्वविद्यालय, जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय, पटना विश्वविद्यालय समेत कई जाने-माने संस्थान आ चुके हैं।
एएमयू में ही कम से कम 18 प्रोफेसर की कोरोना से मौत हो चुकी है। करीब दो दर्जन रिटायर्ड प्रोफेसर और नॉन-टीचिंग स्टाफ को भी कोविड-19 महामारी ने शिकार बनाया। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 14 मई को विश्वविद्यालय और जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज का दौरा किया तो कुलपति तारिक मंसूर ने उन्हें बताया कि अधिकांश दिवगंत प्रोफेसर और नॉन-टीचिंग स्टाफ को वैक्सीन नहीं लग पाई थी। इस प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय ने जिन प्रोफेसर को खोया है, उनमें लॉ डिपार्टमेंट के डीन डॉ. शकील शमदानी भी हैं। उनके बेटे अब्दुल्ला शमदानी बताते हैं कि उनके पिता को भी वैक्सीन नहीं लगी थी।
दूसरी लहर में कोरोना वायरस के बी.1.617 वैरिएंट ने सबसे ज्यादा कहर बरपाया। एएमयू में जब कोरोना के लक्षणों के बाद तीन दर्जन से अधिक कर्मियों की मौत हुई, तो आशंका जताई गई कि किसी दूसरे वैरिएंट की वजह से तो ऐसा नहीं हो रहा। तब संस्थान ने सैंपल एकत्रित कर जीनोम सिक्वेंसिंग के लिए भेजा। जांच में पता चला कि यहां भी वायरस के उसी वैरिएंट ने कहर बरपाया है। दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल के क्लिनिकल माइक्रोबायोलॉजी एवं इम्यूनोलॉजी विभाग के चेयरमैन और सीनियर कंसल्टेंट डॉ. चांद वाट्ल कहते हैं, “सबको टीका लेना पड़ेगा। जो टीका ले चुके हैं, वे संक्रमित तो हो सकते हैं पर उनकी मौत के मामले अपवाद हैं।”
कुछ शिक्षण संस्थानों में दर्जनों शिक्षकों की मौत हुई है, सामान्य कक्षाएं शुरू होने पर वहां शिक्षकों की भारी कमी हो सकती है
दिल्ली की जामिया मिल्लिया इस्लामिया में भी महामारी की वजह से अब तक दो दर्जन से अधिक कार्यरत और रिटायर्ड प्रोफेसर तथा नॉन-टीचिंग स्टाफ की मौत हुई है। सरोजनी नायडू सेंटर फॉर वूमन स्टडी में जेंडर स्टडीज की असिस्टेंट प्रोफेसर 38 वर्षीय नबिला सादिक की मौत 18 मई को हुई। आखिरी ट्वीट में उन्होंने एक आइसीयू बेड की मांग की थी। कुछ दिनों पहले उनकी मां की भी मौत कोविड से हो गई थी। पिता जेएनयू में प्रोफेसर हैं, जो अब परिवार में अकेले बच गए हैं। प्रो. नबिला के इलाज में दौड़-भाग करने वाले उनके छात्र मोहम्मद वकार कहते हैं, “वे टूटने वाली नहीं थीं। हम छात्रों को परिवार की तरह समझती थीं। हमेशा बच्चों के लिए खड़ी रहती थीं। ऐसे लोग जिंदगी में बड़े नसीब से मिलते हैं।”
प्रो. नबिला को भी वैक्सीन नहीं लग पाई थी। जामिया में ही इतिहास विभाग के जाने-माने प्रोफेसर डॉ. रिजवान कैसर की भी मौत कोविड से हो गई है। जामिया के पीआरओ अहमद अजीम कहते हैं, “विश्वविद्यालयों को दूसरी लहर में बड़ी क्षति हुई है। हम लगातार जाने-माने शिक्षाविदों को खोते जा रहे हैं। जामिया स्कूल के भी तीन कर्मियों की मौत हुई है। हम लगातार सबसे वैक्सीन लेने की अपील कर रहे हैं। वैक्सीन न मिलना एक बड़ी समस्या है।”
दिल्ली विश्वविद्यालय के करीब तीन दर्जन प्रोफेसरों की मौत कोरोना से हुई है। विश्वविद्यालय से संबद्ध कई कॉलेज में तो तीन-तीन प्रोफेसरों की मौत हुई है। महामारी ने दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. मानवेंद्र प्रताप सिंह, पटना यूनिवर्सिटी के पूर्व कुलपति प्रो. वाइसी सिम्हाद्री और जेएनयू के पूर्व डीन ऑफ एडमिशन और बायोटेक्नोलॉजी के प्रोफेसर दीपक गौर को भी छीन लिया।
सिर्फ उच्च शिक्षा संस्थान नहीं, बड़ी संख्या में स्कूल शिक्षकों की जान गई है। उत्तर प्रदेश में तो पंचायत चुनाव कराने भेजे गए 1,600 से ज्यादा शिक्षकों की मौत हो गई। तेलंगाना में दूसरी लहर में 225 शिक्षकों की मौत हो गई। इनमें से अनेक को चुनाव ड्यूटी पर लगाया गया था। दिल्ली में भी सरकारी स्कूलों के 100 से ज्यादा शिक्षकों की जान जा चुकी है।