भाजपा ने एक बेहद ही नाटकीय घटनाक्रम में चार माह पहले मुख्यमंत्री बने तीरथ सिंह रावत को हटाकर पुष्कर सिंह धामी को मुख्यमंत्री बना दिया। ऐसा करके भाजपा ने यह संदेश देने की कोशिश की है कि उसे युवाओं की परवाह है। धामी के सरकार का मुखिया बनने का कुछ वरिष्ठ विधायकों ने खासा विरोध किया। लेकिन गृह मंत्री अमित शाह ने उनसे बात की और कैबिनेट में तीरथ सरकार के सभी मंत्रियों ने शपथ ली। आनन-फानन में मुख्य सचिव को भी बदल दिया गया।
मार्च माह के पहले सप्ताह में भाजपा आलाकमान ने अचानक तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को हटाने का फैसला किया और सांसद तीरथ सिंह रावत को नया मुख्यमंत्री बना दिया। तीरथ ने सबसे पहले त्रिवेंद्र सरकार के कई अहम फैसलों को पलटा। यह अलग बात है कि वे अफसरशाही के चंगुल में इस तरह फंसे कि एक भी फैसला पलटने का शासनादेश जारी नहीं हो सका। महज 115 दिन के कार्यकाल में तीरथ बस अपने कुछ विवादास्पद बयानों से चर्चित हुए। इस बीच उनके विधानसभा की सदस्यता के लिए चुनाव लड़ने पर सवाल उठने लगे। उन्हें छह महीने में यानी 9 सिंतबर से पहले विधायक बनना था। लेकिन उपचुनाव में जन प्रतिनिधित्व कानून की धारा 151(1) आड़े आ गई, जिसके मुताबिक आम चुनाव में एक साल से कम का समय हो तो उपचुनाव नहीं कराए जा सकते। फिर, कोविड-19 की दूसरी लहर के दौरान चुनाव कराके चुनाव आयोग अपने हाथ जला चुका है। उत्तराखंड में गंगोत्री और हल्द्वानी की सीटें खाली हैं, लेकिन विधानसभा चुनाव मार्च 2022 में प्रस्तावित है।
लेकिन भाजपा की इस दलील में दम नहीं है कि संवैधानिक संकट से बचने के लिए मुख्यमंत्री बदला गया है। वजह यह है कि नागालैंड में इसी तरह का संकट आने पर 2017 में हाइकोर्ट ने वहां नए मुख्यमंत्री के लिए उपचुनाव कराने का आदेश दिया था। वहां फरवरी 2018 में चुनाव होना था। मुख्यमंत्री शुरहोजेली विधायक नहीं थे। उनके लिए एक विधायक ने 24 मई 2017 को सीट खाली की थी। आयोग ने 29 जून को उपचुनाव का ऐलान किया था। कांग्रेस ने चुनौती दी तो हाइकोर्ट ने उसे खारिज कर चुनाव कराने को कहा था।
भाजपा की युवा शाखा भारतीय जनता युवा मोर्चा से जुड़े रहे नए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ऊधमसिंह नगर जिले की खटीमा विधानसभा सीट से दूसरी बार विधायक हैं। वे राज्य की अंतरिम सरकार में कुछ माह तक मुख्यमंत्री रहे तथा फिलहाल महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के सियासी शिष्य हैं। धामी कोश्यारी के मुख्यमंत्री रहते उनके विशेष कार्याधिकारी भी रहे। लेकिन विधायक दल की बैठक में धामी के नाम का ऐलान होते ही कई वरिष्ठ विधायक खासे नाराज हो गए। मंत्रियों और विधायकों की लगातार बैठकें हुईं। इसी वजह से शपथ ग्रहण का कार्यक्रम शनिवार की बजाए रविवार 4 जुलाई को तय करना पड़ा। फिर इस तरह की खबरें तेज हो गईं कि कुछ वरिष्ठ विधायक मंत्री पद की शपथ ही नहीं लेंगे। मामला तूल पकड़ता देख केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को खुद कमान संभालनी पड़ी। बताया जा रहा है कि शाह ने वरिष्ठ काबीना मंत्री सतपाल महाराज और डॉ. हरक सिंह रावत से फोन पर बात की। अन्य लोगों से प्रदेश प्रभारी दुष्यंत कुमार ने वार्ता की। उसके बाद ही ये लोग शपथ के लिए तैयार हुए। अहम बात यह भी है कि धामी कैबिनेट में उन्हीं मंत्रियों को शामिल किया गया है, जो तीरथ की कैबिनेट में थे। अलबत्ता यतीश्वरानंद और रेखा आर्य को राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार से प्रमोट करके कैबिनेट मंत्री बनाया गया है।
बदले गए सिर्फ मुख्य सचिव ओमप्रकाश। उनकी जगह एनएचएआइ के चेयरमैन पद पर नियुक्त डॉ. एस.एस. संधू को नया मुख्य सचिव बनाया गया है। लेकिन क्या इस फेरबदल से राज्य में भाजपा का संकट टल जाएगा, यह तो अगते साल के शुरू में विधानसभा चुनावों में ही पता चलेगा।