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उत्तर प्रदेश: हिरासत में मौत!

पूर्वांचल की राजनीति में बाहुबली के रूप में पहचान पाने वाले नेता का जाना सियासी भूचाल लाने के लिए काफी
मुख्तार अंसारी

अचानक आम चुनाव के मुहाने पर हिरासत में मौत सुर्खियां बनने को काफी है। फिर, चुनावी नजरिए से सबसे अहम उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल की राजनीति और अपराध की सांठगांठ की पैदाइश मुख्तार अंसारी की मौत हो, तो सियासी सवाल उठने भी लाजिमी है। मुख्तार की मौत 28 मार्च को बांदा जेल में जिला अस्पताल की पोस्टमार्टम के मुताबिक दिल का दौरा पड़ने से हुई। लेकिन परिवार और विपक्ष के मुताबिक यह साजिशन हत्या का मामला है। आरोप है कि मुख्तार को खाने में धीमा जहर दिया गया और पर्याप्त मेडिकल सुविधा भी मुहैया नहीं कराई गई। इस आरोप पर सत्तारूढ़ भाजपा पोस्टमार्टम रिपोर्ट का हवाला देती है।

गाजीपुर से मौजूदा बसपा सांसद तथा इस चुनाव में समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार, उनके बड़े भाई अफजाल अंसारी ने कहा, “पोस्टमार्ट रिपोर्ट में मृतक के दिल का रंग पीला बताया गया और डॉक्टरों के मुताबिक यह दिल पर जहर के असर से कोलस्ट्राल की परत चढ़ने से होता है, इसलिए हम एम्स के डॉक्टरों से पोस्टमार्टम कराने की मांग कर रहे थे।” मुख्तार के छोटे बेटे उमर अंसारी कहते हैं, “मौत से दो दिन पहले मैं उनसे मिलने गया था, लेकिन मुझे इजाजत नहीं दी गई। 19 मार्च को उन्हें डिनर में धीमा जहर दिया गया था।” इसकी शिकायत खुद मुख्तार के वकील ने अदालत में की थी। दो दिन पहले भी तबीयत बिगड़ने पर मुख्तार को अस्पताल ले जाया गया था। बहरहाल, बांदा जिले के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने मुख्तार अंसारी की मौत की न्यायिक जांच का आदेश दिया है। अदालत ने बांदा एमपी/एमएलए अदालत की न्यायाधीश गरिमा सिंह को एक महीने के भीतर रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया है।

सपा प्रमुख अखिलेश यादव मौत को ‘संदिग्ध’ बताकर सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में जांच की मांग कर चुके हैं। वे 7 अप्रैल को मुख्तार के परिवार से मिलने गाजीपुर गए। वहां उन्होंने कहा, “मौत चौंकाने वाली थी। हमें उम्मीद है सरकार सच्चाई को सामने लाएगी और उनके परिवार को न्याय मिलेगा। जब से भाजपा सरकार आई है तब से संस्थाओं पर भरोसा कम हुआ है।” एआइएमआइएम के असदुद्दीन ओवैसी भी गाजीपुर पहुंचे। बसपा प्रमुख मायावती भी सीबीआइ जांच की मांग कर चुकी हैं। मुख्तार की राजनीतिक पारी मायावती के साथ ही शुरू हुई थी।

दरअसल इस विवाद की वजह पूर्वी उत्तर प्रदेश का सामाजिक-राजनैतिक परिदृश्य है। किसी के लिए ‘गरीबों का मसीहा’ तो किसी के लिए ‘माफिया सरगना’ मुख्तार गाजीपुर के बेहद प्रतिष्ठित परिवार से थे। उनके दादा मुख्तार अहमद अंसारी 1927 में कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने गए थे और महात्मा गांधी तथा पंडित जवाहरलाल नेहरू के बेहद करीबी थे। उन्होंने मुस्लिम लीग का विरोध किया था और जिन्ना उन्हें अपने द्वि-राष्ट्र सिद्घांत में सबसे बड़ा रोड़ा मानते थे। उनके बेटे ब्रिगेडियर उस्मान 1947 में कश्मीर के नौशेरा सेक्टर में पाकिस्तानी कबायलियों से लड़ते हुए शहीद हुए थे। उन्हें 'नौशेरा का शेर' कहा गया और महावीर चक्र से सम्मानित किया गया। कहा जाता है कि उनकी बहादुरी की वजह से नौशेरा सेक्टर भारत में कायम रहा। इसके अलावा भी इस परिवार से कई प्रतिष्ठित जज, वकील, पत्रकार हो चुके हैं। पूर्व उप-राष्ट्रपति हामिद अंसारी इसी परिवार के हैं। यह परिवार अपनी तरक्कीपसंद विचार के लिए जाना जाता रहा है। अफजाल अंसारी भी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी में हुआ करते थे। अब यह समाजशास्त्रीय अध्ययन का विषय है कि ऐसे माहौल के बाद भी मुख्तार के दबंगई और अपराध जगत के झुकाव की वजहें क्या रही हैं।

न्याय की आसः गाजीपुर में मुख्तार के परिजनों से मिलते अखिलेश यादव

न्याय की आसः गाजीपुर में मुख्तार के परिजनों से मिलते अखिलेश यादव

पूर्वांचल की राजनीति में मुख्तार अंसारी की अपनी पैठ रही है। वे मऊ सदर विधानसभा सीट से पांच बार विधायक चुने गए। 2009 में बनारस से भाजपा के मुरली मनोहर जोशी के खिलाफ चुनाव लड़ा और जोशी से काफी कम अंतर से हारे। हालांकि मुख्तार का दूसरा रूप ‘अपराध सरगना’ का भी था। मुख्तार के ऊपर हत्या से लेकर जबरन वसूली के 65 आपराधिक मामले दर्ज थे। मुख्तार पर पहला मुकदमा 1978 में गाजीपुर के सैदपुर पुलिस थाने में दर्ज हुआ, जब वह महज 15 साल के थे। हालांकि, अपराध और राजनीति की दुनिया में असली एंट्री पूर्वी उत्तर प्रदेश में सरकारी ठेकों को लेकर लड़ाइयों से शुरू हुई। पूर्वांचल में 80 और 90 के दशक में माफिया सरगनाओं का उदय हुआ और ठेकों और वर्चस्व की लड़ाई को लेकर गैंगवार आम होने लगे। इसी दौर में मुख्तार अंसारी और माफिया बृजेश सिंह की अदावत शुरू हुईं।

साल 2002 के विधानसभा चुनाव में भाजपा नेता कृष्णानंद राय ने मुख्तार के भाई अफजाल अंसारी को हराकर गाजीपुर जिले के मोहम्मदाबाद निर्वाचन क्षेत्र से जीत हासिल की थी। कृष्णानंद राय को बृजेश सिंह का समर्थन हासिल था। बृजेश सिंह पर भी कई बार सुपारी लेकर मुख्तार को मारने की प्लानिंग रचने का आरोप लग चुका थी। खुद कृष्णानंद राय पर भी हत्या समेत कई मुकदमे दर्ज थे।

2002 में मुख्तार ने मऊ को अपना गढ़ बनाया। साल 2005 में दो ऐसे मामले सामने आए, जिसने मुख्तार का दबदबा फिर से कायम किया। पहला मामला 14 अक्टूबर 2005 को मऊ हिंसा और इसके ठीक एक महीने बाद दूसरा मामला, 29 नवंबर 2005 को भाजपा विधायक कृष्णानंद राय की हत्या से जुड़ा है। हालांकि दोनों मामलों के वक्त मुख्तार जेल में थे। क्रिकेट मैच का उद्घाटन करने जा रहे कृष्णानंद राय के काफिले पर गोलियां बरसाई गईं, जिसमें सात लोगों की मौत हो गई। राय की हत्या की साजिश रचने के मामले में मुख्तार बाद में बरी हो गए।

मुख्तार अंसारी का सियासी सफर 1996 के लोकसभा चुनाव में शुरू हुआ। बसपा ने उन्हें अपना उम्मीदवार बनाया। मुख्तार चुनाव हार गए, लेकिन बसपा ने उन्हें उसी साल मऊ सदर से फिर से विधानसभा चुनाव में टिकट दिया, जिसमें वे जीत गए। इसके बाद वे लगातार चार बार यानी 2002, 2007, 2012 और 2017 विधानसभा चुनाव इसी सीट से जीते। 2014 में मुख्तार ने वाराणसी में नरेंद्र मोदी के खिलाफ भी चुनाव लड़ने की इच्छा जताई, लेकिन टिकट न मिलने के बाद कांग्रेस उम्मीदवार अजय राय को समर्थन दिया।

उनके भाई अफजाल 2019 के लोकसभा चुनाव में बसपा उम्मीदवार के रूप में गाजीपुर सीट से जम्मू-कश्मीर के वर्तमान उप-राज्यपाल मनोज सिन्हा को हारकर चुनाव जीते। अफजाल 2004 के लोकसभा चुनाव में भी मनोज सिन्हा को हरा चुके हैं। इससे पहले 1985 से 2002 के बीच पांच बार उन्होंने मोहम्मदाबाद विधानसभा सीट जीती। मुख्तार के दूसरे भाई सिबगतुल्लाह भी 2007 और 2012 में मोहम्मदाबाद सीट से विधायक बन चुके हैं। मुख्तार के बेटे और भतीजे भी विधायक हैं। 1996 से लेकर 2017 तक मुख्तार को हर पार्टी की सरकार का संरक्षण प्राप्त था। मुख्तार की मुश्किलें तब शुरू हुई जब यूपी की बागडोर योगी आदित्यनाथ के हाथों में आई। मऊ दंगे के दौरान मुख्तार पर योगी आदित्यनाथ पर हमला कराने का भी आरोप लग चुका है।

मुख्तार अंसारी को पहली बार कानूनी रूप से 2022 में उत्तर प्रदेश सरकार ने पंजाब की जेल से प्रदेश में लाने के लिए सुप्रीम कोर्ट की अनुमति हासिल की। हालांकि मुख्तार अंसारी ने 2022 से पहले भी मुकदमों का सामना किया था, लेकिन उन्हें कभी दोषी नहीं ठहराया गया। सितंबर 2022 में इलाहाबाद हाइकोर्ट ने एक निचली अदालत के फैसले को पलट दिया और मुख्तार अंसारी को 2003 में एक जेलर को रिवॉल्वर से धमकाने के लिए पहली बार सात साल की सजा सुनाई। फिर, 1990 के फर्जी शस्त्र लाइसेंस मामले में वाराणसी की एक अदालत ने हाल ही में उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई। मृत्यु से पहले तक उन पर 21 मामले विचाराधीन थे।

एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म के आंकड़ों के मुताबिक 403 विधानसभा सीटों वाले यूपी के सदन में 205 विधायक दागी हैं। भले ही यूपी को अपराधिकरण से मुक्त कराने का दावा भाजपा कर रही है लेकिन हकीकत यह भी है कि यूपी के विधानसभा में चुने गए विधायकों में आधों पर हत्या और वसूली जैसे मामले दर्ज हैं। सियासी गलियारों से बात यह भी निकलकर सामने आ रही है कि गाजीपुर लोकसभा सीट से भाजपा अफजाल अंसारी के खिलाफ बृजेश सिंह को चुनाव में उतार सकती है, जो हत्या और रंगदारी के मामले में करीब 13 साल सलाखों के पीछे रह चुके हैं।

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