राधिका आप्टे गीत की तरह हैं, जो भारतीय फिल्म उद्योग और उससे भी परे विभिन्न विषयों को नई दिशा प्रदान कर रही हैं। यकीनन वे इस युग का प्रतिनिधित्व करने वाली अभिनेत्री हैं। पुणे की रहने वाली 33 वर्षीय इस लड़की ने 2005 में वाह! लाइफ हो तो ऐसी! फिल्म में छोटी सी भूमिका से अपने करिअर की शुरुआत की थी। तब से अब तक उन्होंने बहुत लंबा सफर तय कर लिया है। पिछले साल आप्टे ने पेडमैन, बाजार, सेक्रेड गेम्स, अंधाधुन और लास्ट स्टोरीज में अपने शानदार प्रदर्शन से यह यात्रा निर्बाध जारी रखी है। एक विचारशील अभिनेत्री के रूप में जानी जाने वाली राधिका आप्टे ने गिरिधर झा के साथ एक साक्षात्कार में अपने करिअर के बारे में बात की। पेश हैं अंश:
हाल के दिनों में विभिन्न प्लेटफॉर्मों पर आपकी उपस्थिति बहुत सफल रही। एक तरफ आपके पास अंधाधुन जैसी सुपरहिट फिल्म है, तो दूसरी ओर ट्रेंड सेट करने वाली वेब सीरीज सेक्रेड गेम्स भी। आपको लगता है कि भारतीय मनोरंजन उद्योग अपने सबसे अच्छे दौर से गुजर रहा है?
उम्मीद करती हूं कि यह सबसे अच्छा समय न हो। उम्मीद करती हूं कि अभी सबसे अच्छा समय आना बाकी है। हर दशक कुछ न कुछ अच्छा देता है। एक समय आता है जब अच्छी फिल्में बनाई जाती हैं और फिर, ठहराव आ जाता है। अभी इस अर्थ में बदलाव आया है कि मुख्यधारा के सिनेमा में बहुत सारी अच्छी सामग्री आ रही है। पिछले दो-ढाई दशकों में हमने जो कुछ भी किया, वह विषयवस्तु में बदलाव है। लेकिन देखते हैं अगला क्या होता है। काम में हमेशा पिछले दशक की तुलना में गुंजाइश अधिक रहती है।
आपको नहीं लगता दर्शक आज हर तरह की सामग्री स्वीकार कर रहे हैं?
दर्शकों को पारस्परिक संबंध में होना चाहिए। अगर वे ऐसी फिल्में नहीं देखेंगे तो उन्हें बनाने वाले लोग पैसा नहीं कमा पाएंगे और उन्हें अच्छे सिनेमा में अपना पैसा लगाने के लिए प्रोत्साहित नहीं किया जा सकेगा। मामले में तथ्य सिर्फ इतना है कि लोग मुख्यधारा के सिनेमा में केवल इसलिए जोखिम उठा रहे हैं क्योंकि दर्शक विभिन्न विषयों को देखना स्वीकार रहे हैं। यह दोनों तरह से काम करता है। बेशक आप एक ही तरह की कहानी नहीं दिखा सकते। आज लोग तरह-तरह की चीजें देखना चाहते हैं।
क्या हाल के वर्षों में विश्व सिनेमा तक दर्शकों की पहुंच इस बदलाव को लाने में सहायक रही है?
डिजिटल युग के आने और सर्वश्रेष्ठ विश्व सिनेमा तक दर्शकों की पहुंच से भारी बदलाव आया है। अब दर्शक दुनिया भर की सामग्री देख सकते हैं जो कुछ या कई स्तरों पर मेरे द्वारा किए जा रहे कार्यों से बहुत भिन्न है। इसने भारतीय दर्शकों को कई तरीकों से नई चीजों से रूबरू कराया है।
महिला केंद्रित सिनेमा की बॉक्स-ऑफिस सफलता ने फिल्म उद्योग की अभिनेत्रियों और उनकी क्षमता को बदल दिया है? आप कभी भेदभाव की शिकार हुई हैं?
मुझे लगता है कि अभी भी अभिनेत्रियों के लिए समान या पर्याप्त अवसर नहीं हैं। मैं और बदलाव देखना चाहती हूं लेकिन अब यह निश्चित रूप से बदल रहा है। जहां तक मेरा सवाल है, मेरे द्वारा किए गए सभी रोल हर तरह से महत्वपूर्ण और समान हैं।
पुरुष और महिला कलाकार के बीच असमानता अभी भी मौजूद है?
मुझे लगता है कि पैसों के मामले में लैंगिक असमानता है। लेकिन फिर भी, बॉक्स ऑफिस पर कौन सी फिल्में क्लिक करती हैं, यह दूसरा सवाल है। यही तय करता है कि आप कितना पैसा कमाते हैं। बहुत सारे कारक हैं, लेकिन हां वास्तव में महिला चरित्र अभिनेता और कुछ अन्य हैं जो अपने पुरुष समकक्षों के जितना पैसा नहीं पाती हैं।
पिछले साल अंधाधुन ने ठीक लक्ष्य पर निशाना साधा, जबकि कुछ बड़े बजट की फिल्में टिकट खिड़की पर औंधे मुंह गिर गईं। क्या वाह-वाह वाली स्टार प्रणाली चरमरा रही है?
मुझे नहीं लगता कि सबकुछ बदल रहा है। यह सोचकर किसी चीज पर अत्यधिक राय लेने की जरूरत है। स्टार वैल्यू आज भी बहुत मायने रखती है। यदि किसी फिल्म में बड़े सितारे हैं तो उसे अच्छी ओपनिंग मिलती है। बेशक आप खराब विषयों से दूर नहीं जा सकते। यदि आपके पास अपनी फिल्म में दिखाने के लिए नया कुछ नहीं है, तो जरूरी नहीं कि फिल्म की स्टार कास्ट के बावजूद यह चले। इसी तरह फिल्में उसके कंटेंट और लोगों की प्रशंसा की वजह से चलती हैं। लेकिन स्टार सिस्टम भी खत्म होने वाला नहीं है।
इसके अलावा, यह जरूरी नहीं है कि सभी छोटी फिल्में चलें। यह कोई नियम नहीं है। न्यूटन (2017) नहीं चल पाई। कई कारक होते हैं जो फिल्म को चलाते हैं। वास्तव में हम यह कहने के लिए कि स्थिति बदल रही है एक या दो उदाहरण नहीं ले सकते। यह धीरे-धीरे होता है।
बॉलीवुड में अब तक के अपने सफर को आप कैसे देखती हैं? आपका पिछला साल असाधारण था?
मैं पीछे देखना पसंद नहीं करती। मैं इस वक्त सिर्फ यह देख रही हूं कि अगला क्या होने वाला है। 2018 का साल इस मायने में अच्छा था कि मैंने जो भी काम किया वह बढ़िया था। सभी कामों में मुझे सफलता मिली। मैं बेहतर भूमिकाओं के लिए उत्सुक हूं।
बॉलीवुड हमेशा से अपनी पितृसत्तात्मक मानसिकता के लिए कुख्यात रहा है। क्या आपको लगता है कि हाल ही में #मीटू आंदोलन ने कोई बदलाव किया है?
मुझे लगता है कि #मीटू आंदोलन का सबसे बड़ा प्रभाव यह है कि लोग अब कुछ करने से पहले दो बार जरूर सोचेंगे। साथ ही, महिलाओं को यह भी समझ में आ गया है कि उन्हें किसी भी तरह से बोलने में शर्म नहीं करनी चाहिए। यह बहुत बड़ी बात है।
वेब-कंटेंट की सेंसरशिप पर आपके क्या विचार हैं?
मुझे नहीं लगता कि वेब शृंखला में सामग्री पर कोई सेंसरशिप होना चाहिए। यह व्यर्थ है, क्योंकि इससे लोगों का देखना रुक नहीं जाएगा। वे लोग इसे देखना बंद नहीं कर देंगे जो वास्तव में यह देखना चाहते हैं।
आपने शोर इन द सिटी (2011), पार्च्ड (2015), फोबिया (2016) और इस तरह की कई फिल्मों में दिलचस्प भूमिकाएं की हैं। कोई विशेष पसंदीदा रोल जो आपके दिल के करीब है?
हर भूमिका मेरे लिए खास है। किसी एक फिल्म को किसी एक पैरामीटर पर दूसरे के साथ तुलना करना बहुत मुश्किल है। पिछले दो वर्षों में, मैंने विभिन्न प्रकार की भूमिकाएँ की हैं।
आप एक प्रशिक्षित कथक नृत्यांगना हैं लेकिन आपने ज्यादातर गंभीर और गहन भूमिकाएं की हैं? क्या आप स्क्रीन पर अपनी इस प्रतिभा का उपयोग करने के लिए गायक और नर्तक की भूमिका करने के लिए मचल नहीं रहीं हैं?
यह सब कहानी पर निर्भर करता है। अगर कोई अच्छी कहानी होगी तो मैं जरूर करूंगी।