धर्म की रक्षा के लिए पंजाब की जिस धरती पर गुरु गोविंद सिंह ने अपने साहिबजादों की शहादत दी, इस बार उनके ही शहीदी दिवस पर धर्म परिवर्तन की घटनाओं से कट्टरपंथी सिखों में भारी रोष है। इससे कानून-व्यवस्था बिगड़ने के खतरे भी उभरने लगे हैं। चंडीगढ़ से अमृतसर और गुरदासपुर के रास्ते के कई शहर और गांव ईसाई पादरियों के क्रिसमस और नए साल के बधाई संदेशों के पोस्टर और होर्डिंग से पटे पड़े हैं। पाकिस्तान से लगने वाले पंजाब के इलाकों में ईसाई धर्म के प्रभाव का अंदाजा यहां के गांवों में बने चर्चों से लगाया जा सकता है। इनमें से अधिकांश नए चर्च निजी तौर पर प्रचार करने वाले पगड़ीधारी पादरी स्थापित कर रहे हैं। कई जगहों पर ईसाई धर्म मानने वाले लोगों ने अपने घरों में भी चर्च बना लिए हैं। क्रिसमस के मौके पर सिखों को ईसाई धर्म स्वीकार करने से रोकने के लिए सिख संगठनों और विपक्षी दलों ने उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा जैसे राज्यों की तर्ज पर धर्मांतरण पर रोक के लिए पंजाब में भी कानून बनाए जाने की मांग की है।
पंजाब ईसाइयों के लिए धर्मांतरण की कोई नई प्रयोगशाला नहीं है, लेकिन अब पंजाब में स्थानीय सैकड़ों पगड़ीधारी ही पादरी बन गए हैं। इन पादरियों में दलितों से लेकर जट्ट सिख और हिंदू चेहरे भी हैं। सोशल मीडिया पर चर्चा में आए इन चेहरों में गुरनाम सिंह खेड़ा, हरजीत सिंह, हरप्रीत देओल, राजेंद्र सिंह, सुखपाल राणा, अमृत संधू, अंकुर नरूला, कंचन मित्तल, रमन हंस, फारिस मसीह जैसे कुछेक बड़े नाम हैं, जिन पर धर्मांतरण कराने के आरोप हैं। सोशल मीडिया पर उनके लाखों फॉलोअर हैं जो ऑनलाइन प्रचार को आगे बढ़ा रहे हैं। अंकुर नरूला के यू-टयूब पर 13 लाख से अधिक फॉलोअर हैं। कपूरथला के खोजेवाल गांव में बने चर्च के पादरी हरप्रीत देओल जट्ट सिख हैं। बटाला के हरपुरा गांव के सर्जन-पादरी गुरनाम सिंह खेड़ा भी जट्ट सिख हैं। पटियाला के बनूड़ में चर्च ऑफ पीस के पादरी कंचन मित्तल हैं। चमकौर साहिब के रमन हंस दलित मजबी सिख हैं।
पंजाब कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पूर्व गृह मंत्री सुखजिंदर सिंह रंधावा की मानें तो पाकिस्तान की सीमा से लगे जिले गुरदासपुर के कई गांवों के घरों में ही छोटे-छोटे चर्च बन गए हैं। इन सीमावर्ती इलाकों में रहने वाले मजबी सिख और वाल्मीकि हिंदू समुदायों के कई दलितों ने ईसाई धर्म अपना लिया है। धर्म परिवर्तन का असर यह है कि प्रदेश में ईसाइयों के चर्च की संख्या बढ़ती जा रही है। यूनाइटेड क्रिश्चियन फ्रंट के मुताबिक पंजाब के सभी 23 जिलों और 13,400 गांव और ढाणियों में करीब 8,000 गांवों में ईसाई धर्म प्रचार समितियां सक्रिय हैं। ये मिशनरियां माझा और दोआबा क्षेत्र के अलावा मालवा में फिरोजपुर और फाजिल्का के सीमावर्ती इलाकों में सबसे ज्यादा सक्रिय हैं। अमृतसर और गुरदासपुर जिलों में 150 से अधिक चर्च बन चुके हैं। इनमें से 70 फीसदी से अधिक पिछले पांच वर्षों में ही बने हैं। पाकिस्तानी सीमा से लगे दुजोवाल गांव में 30 फीसदी से अधिक लोग धर्मांतरण के बाद ईसाई बन गए हैं। गांव में दो गुरुद्वारे हैं और दो ही चर्च हैं। चर्च में ईसाई धर्म का प्रचार करने वाले भी पगड़ीधारी पादरी हैं जो पहले सिख थे।
पहले डेरा सच्चा सौदा, राधास्वामी ब्यास, निरंकारी, भनियारावालां और नूरमहल जैसे डेरों में लोग जाया करते थे। अब डेरों से ईसाई धर्मांतरण की ओर बढ़ते सिखों का मुद्दा गरमा गया है। धर्मांतरण से ईसाई बने पगड़ीधारी पादरी ही पंजाब में ईसाइयों की गिनती बढ़ा रहे हैं। 16 दिसंबर को चमकौर साहिब (दो साहिबजादों का शहादत स्थल) में बड़े पैमाने पर कथित धर्मांतरण रोकने के लिए निहंग सिखों के विरोध प्रदर्शन से स्थिति तनावपूर्ण हो गई। आरोप है कि गत 16 दिसंबर को एक ईसाई मिशनरी ने एक सभा में स्वयं के अंदर ईसा मसीह की आत्मा आने का स्वांग रचा और गरीब-अशिक्षित लोगों को बहला-फुसलाकर ईसाई धर्म अपनाने के लिए प्रेरित किया। ऐसी घटना पर आम आदमी पार्टी की भगवंत सरकार को घेरते हुए भाजपा ने इस मामले पर सरकार की चुपी पर सवाल उठाए हैं।
भाजपा के प्रवक्ता एवं दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के पूर्व अध्यक्ष मनजिंदर सिंह सिरसा ने आउटलुक से कहा, “पंजाब में गरीब हिंदुओं-सिखों को धर्मांतरण करा कर ईसाई बनाया जा रहा है। इसके लिए ईसाई मिशनरी तरह-तरह के ढोंग के जरिये लोगों को ईसाई धर्म अपनाने के लिए प्रेरित करती हैं। चमकौर साहिब, जहां दशम गुरु गोविंद सिंह ने अपने दो साहिबजादों को धर्म की रक्षा करने के लिए शहीद करवा दिया। उसी धरती पर सिखों को बड़े पैमाने पर ईसाई बनाने का खेल चलाया गया। इस अवैध धर्मांतरण को रोकने के लिए राज्य सरकार कोई प्रयास नहीं कर रही।”
सचखंड दरबार साहिब अमृतसर के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने कहा, “धार्मिक रूप से कमजोर करने के लिए पंजाब में बहुत जोर-शोर से ईसाई धर्म का प्रचार किया जा रहा है। इसके लिए विभिन्न जगहों पर चर्च बन रहे हैं, जो हमारे लिए चिंता का विषय है। पंजाब के सिखों और हिंदुओं को गुमराह कर उन्हें ईसाई बनाने के प्रयास रोकने के लिए सरकार कुछ नहीं कर रही।”
2016 में पंजाब के कई इलाकों में गुरुग्रंथ साहिब की बेअदबी की घटनाओं के विवादों में घिरे डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख गुरमीत राम रहीम को 2017 में साध्वियों के बलात्कार और पत्रकार की हत्या के आरोपों में उम्रकैद की सजा के बाद से इस डेरा से दूर होते बहुत से लोगों ने ईसाई धर्म अपनाया। ऐसे में पिछले कुछ समय से गिरजाघरों की संख्या बढ़ी है। विशेषकर पाकिस्तान से सटे इलाकों गुरदासपुर, पठानकोट, तरनतारन, अमृतसर आदि में ईसाइयों के गिरजाघर बनाए जा रहे हैं। यहां आने वाले लोगों की संख्या भी बढ़ती जा रही है। दीवारों पर ईसाई धर्म को बढ़ावा देने वाले संदेश भी लिखे गए हैं।
कथित धर्मांतरण का सबसे ज्यादा विरोध इसके तरीकों को लेकर किया जा रहा है। आरोप हैं कि मिशनरी वाले मंच पर खड़े होकर अपने अंदर ईसा मसीह की आत्मा आने की बात कहते हैं। वे तरह-तरह के स्वांग रचकर गरीब-अशिक्षित लोगों को ईसाई धर्म अपनाने के लिए कहते हैं। वे चमत्कारिक तरीके से लंबे समय से बीमार चल रहे लोगों को ठीक करने का दावा करते हैं। वे उन बीमार लोगों का भी पल भर में इलाज करने का दावा करते हैं जिन बीमारियों का इलाज संभव नहीं है। कुछ इस दावे की पुष्टि भी करते हैं और मंच से इस बात का दावा करते हैं कि उनकी कैंसर जैसी गंभीर बीमारी लंबे समय से ठीक नहीं हो रही थी, लेकिन जैसे ही उन्होंने ईसाई धर्म स्वीकार किया बीमारी ठीक हो गई।
हरियाणा के एडवोकेट जनरल बलदेव राज महाजन के मुताबिक, “धर्म परिवर्तन के दो तरीके हैं। पहला कानूनी प्रक्रिया का पालन करते हुए और दूसरा धार्मिक स्थल पर जाकर उनके निर्धारित शिष्टाचार का पालन करते हुए। अगर कोई अपना धर्म बदलना चाहता है तो उसे अपने जिले के कलेक्टर या किसी अन्य संबंधित अधिकारी को नोटिस देना होगा। नोटिस देने के 30 से 60 दिनों के अंदर धर्म परिवर्तन कराया जाएगा। इसके लिए आपको कोर्ट या किसी वकील से एक हलफनामा बनवाना होगा और अपनी सारी जानकारी देनी होगी। जैसे, नाम, पता और कौन सा धर्म अपना रहे हैं आदि। धर्म बदलने के बाद धर्म गजट कार्यालय में अपना नया नाम और धर्म दर्ज कराना होता है।”
भारतीय संविधान के (अनुच्छेद 25-28) अनुसार व्यक्ति अपनी पसंद से कोई भी धर्म चुन सकता है, उसका प्रचार-प्रसार कर सकता है, लेकिन जबरन या लालच देकर धर्म परिवर्तन नहीं कराया जा सकता। भारतीय दंड संहिता की धारा 295-ए और 298 के अनुसार यह दंडनीय अपराध है। भारत के 10 राज्यों में धर्मांतरण विरोधी कानून मौजूद हैं। पहली बार 1967 में ओडिशा में यह कानून बनाया गया। इसके बाद उत्तर प्रदेश, गुजरात, मध्य प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश और अब हरियाणा में इसे लागू किया गया। गलत सूचना देकर सामूहिक तौर पर धर्म परिवर्तन करवाने वाले व्यक्ति को पांच से दस साल जेल की सजा और चार लाख रुपये जुर्माने का प्रावधान है, लेकिन हकीकत यही है कि धर्मांतरण पर रोक के लिए कानून भी कारगर नहीं है।