बीती 27 जनवरी को कश्मीर का प्रवेशद्वार कहे जाने वाले काजीगुंड इलाके में उत्सव जैसा माहौल था। बर्फ से ढंकी पीरपंजाल पर्वत श्रृंखला की तलहटी में दक्षिण कश्मीर के विभिन्न इलाकों से आए कांग्रेस के कार्यकर्ता और ग्रामीण राहुल गांधी का इंतजार कर रहे थे। 5 अगस्त, 2019 को अनुच्छेद 370 खत्म किए जाने के बाद यह अब तक की सबसे बड़ी राजनीतिक सभाओं में से एक थी। कांग्रेस पार्टी के झंडे लिए सभी बनिहाल-काजीगुंड सुरंग की ओर देख रहे थे। राहुल गांधी के काफिले ने जैसे ही सुरंग पार की, कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने झंडे लहराते हुए नारे लगाए। टोल प्लाजा पार करने के बाद राहुल द्वारा लोगों को संबोधित करने की उम्मीद में स्थानीय कांग्रेस नेताओं ने सड़क के बीच में एक अस्थायी मंच बनाया था, लेकिन भारत जोड़ो यात्रा का काफिला प्लेटफॉर्म पर नहीं रुका। उनका कारवां आगे बढ़ा और आधा किलोमीटर बाद रुका। जिस जगह पर राहुल गांधी रुके थे, वहां जल्द ही भीड़ उमड़ पड़ी क्योंकि हर कोई राहुल को देखने के लिए उत्सुक था। लोग उनके काफिले की तस्वीरें ले रहे थे। बच्चे कांग्रेस पार्टी के झंडे लिए हुए थे और देशभक्ति के गीत गा रहे थे।
राहुल ने वेस्सू प्रवासी शिविर की ओर चलना शुरू किया, लेकिन मुश्किल से 500 मीटर चलने के बाद उन्हें वापस जाना पड़ा क्योंकि लोग पास आ रहे थे। बाद में अनंतनाग के राजकीय कॉलेज में हुए एक संवाददाता सम्मेलन में कांग्रेस के नेताओं ने इसे एक बड़ी सुरक्षा चूक बताया और इसके लिए जम्मू-कश्मीर पुलिस को जिम्मेदार ठहराया, हालांकि पुलिस ने इस आरोप को सिरे से खारिज कर दिया। उस दिन कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने सुरक्षा उल्लंघन से संबंधित सवालों को छोड़कर किसी भी सवाल का जवाब देने से इनकार कर दिया था।
पत्रकारों को संबोधित करने से पहले उन्होंने कहा कि भारत जोड़ो यात्रा एक वैचारिक यात्रा है और पार्टी केवल यात्रा के बारे में ही पूछे गए सवालों का जवाब देना चाहेगी और किसी भी राजनीतिक सवाल का जवाब नहीं देगी, खासकर अनुच्छेद 370 पर। यह जम्मू में कांग्रेस पार्टी द्वारा जाहिर विचारों के विपरीत था। जम्मू में यात्रा के दूसरे दिन 20 जनवरी को कांग्रेस पार्टी जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल करने के समर्थन में आई और कहा था कि 5 अगस्त, 2019 को संसद द्वारा लाया गया विधेयक ‘क्रूर बहुमत’ का परिणाम था।
जयराम रमेश ने कहा था, “कांग्रेस पार्टी का मानना है कि 5 अगस्त, 2019 को लाया और पारित किया गया बिल लोकतांत्रिक नहीं था।” आश्चर्यजनक रूप से उन्होंने मिजोरम, मणिपुर, मेघालय, त्रिपुरा, हिमाचल प्रदेश, सिक्किम जैसे भारत के संविधान के तहत प्राप्त विभिन्न राज्यों के विशेष दर्जे के बारे में भी बात की और तर्क दिया कि अनुच्छेद 370 के बजाय वह अनुच्छेद 371 के बारे में बात करना पसंद करेंगे।
हालांकि, भारत जोड़ो यात्रा के घाटी में प्रवेश करने के बाद कांग्रेस ने भारत जोड़ो यात्रा पर चुप्पी साधे रखी। अनुच्छेद 370 के बारे में राहुल गांधी से कम से कम 40 बार सवाल पूछे गए लेकिन उन्होंने कुछ भी कहने से इनकार कर दिया, सिवाय इसके कि कांग्रेस की कार्यसमिति ने पहले ही अनुच्छेद 370 पर विचार कर लिया था। उन्होंने अपने विचार या पार्टी के विचार के बारे में नहीं बताया।
27 जनवरी को कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला और 28 जनवरी को पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती और उनकी बेटी इल्तिजा मुफ्ती पीडीपी समर्थकों के साथ राहुल गांधी की साथ यात्रा में शामिल हुईं।
30 जनवरी को श्रीनगर के ऐतिहासिक लाल चौक पर तिरंगा फहराने के साथ 135 दिनों तक चली भारत जोड़ो यात्रा के समापन पर राहुल गांधी ने कहा कि उन्हें जम्मू और कश्मीर दुखी और उदास लगता है। उन्होंने जोर देकर कहा कि इस यात्रा को कांग्रेस पार्टी की यात्रा नहीं माना जाना चाहिए, बल्कि भारत की यात्रा के रूप में देखा जाना चाहिए। क्योंकि कांग्रेस कार्यकर्ताओं के अलावा कई लोग यात्रा के साथ चले। उन्होंने कहा, “यात्रा ने एक वैकल्पिक दृष्टिकोण दिया है। भाजपा और आरएसएस ने जो दृष्टिकोण दिया है वह घृणा और अहंकार से भरा है। हमारा नजरिया नफरत के बाजार में मुहब्बत की दुकान जैसा है। जाहिर है, भारत के सामने अब ये दो ही विकल्प हैं।”
कश्मीर में मुख्यधारा के नेताओं का मानना है कि अनुच्छेद 370 भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की विरासत है। साथ में वे यह भी कहते हैं कि राष्ट्रीय पार्टी होने के नाते कांग्रेस की मजबूरियों को भी समझा जाना चाहिए। कांग्रेस जहां वैचारिक लड़ाई की बात करती है, वहीं अनुच्छेद 370 भाजपा की विचारधारा का मूल रहा है।
पिछले साल नवंबर में कानून मंत्री किरण रिजिजू ने कश्मीर पर जवाहरलाल नेहरू की ‘पंच भूल’ पर एक लेख लिखा था। जिसमें उन्होंने कहा था, “नेहरू ने जोर देकर कहा था कि परिग्रहण अनंतिम था; पाकिस्तान के आक्रमण के बाद गलत अनुच्छेद को संयुक्त राष्ट्र में ले जाना, जिससे पाकिस्तान आक्रमणकारी के बजाय विवाद में एक पक्ष बन गया; संयुक्त राष्ट्र द्वारा अनिवार्य जनमत संग्रह के मिथक को कायम रहने देना; और विभाजनकारी अनुच्छेद 370 का निर्माण।” इससे पहले अक्टूबर 2022 में गृह मंत्री अमित शाह ने “कश्मीर में गड़बड़ी पैदा करने” के लिए भारत के पहले प्रधानमंत्री को जिम्मेदार ठहराया और अनुच्छेद 370 को हटाकर इसे हल करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को श्रेय दिया था। शाह का कहना था कि नेहरू की गलती के कारण कश्मीर अस्त व्यस्त हो गया था क्योंकि अनुच्छेद 370 के चलते कश्मीर का देश के साथ एकीकरण नहीं हो सका था।
सत्तर साल पहले 14 नवंबर, 1952 को जब प्रजा परिषद पार्टी की शुरुआत हुई थी, तब उसका पहला ‘सत्याग्रह’ अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर को प्राप्त स्वायत्तता को समाप्त करने के लिए जम्मू में हुआ था। यहां तक कि अनुच्छेद 370 को खत्म करना भी भारतीय जनसंघ (बीजेएस) का मुख्य एजेंडा था, जो बाद में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में बदल गई।
इसके बावजूद कांग्रेस पार्टी अनुच्छेद 370 पर किसी सवाल का जवाब देने के मूड में नहीं थी। राहुल अपने परिवार के कश्मीर के साथ संबंध पर ही बात करते रहे। उन्होंने कहा, “जब मैंने पहली बार जम्मू में प्रवेश किया तो मेरे दिमाग में विचार आया कि मेरा परिवार जम्मू-कश्मीर से इलाहाबाद गया था और इस लिहाज से देखें तो मैं उलटी यात्रा कर रहा हूं। इसलिए मुझे लगा कि मैं एक तरह से अपने घर जा रहा हूं। यह भावना बहुत प्रबल थी। जम्मू-कश्मीर के लोगों के प्रति मेरा स्नेह हमेशा से था और मैं खुले दिल और खुली बांहों के साथ यहां हर संभव मदद करने के लिए आया हूं। जम्मू और कश्मीर में हमारा जो स्वागत हुआ है उससे मैं अभिभूत था।”
उन्होंने जम्मू-कश्मीर के लिए उन संभावित कदमों के बारे में भी बात की जिसकी चर्चा भाजपा कर रही है, जैसे राज्य का दर्जा देना और चुनाव। उन्होंने कहा, “मुझे लगता है कि जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा देना और लोकतांत्रिक प्रक्रिया की बहाली महत्वपूर्ण कदम है। भारत के अन्य सभी राज्यों में लोकतांत्रिक प्रक्रिया कायम है और यह जम्मू-कश्मीर में भी होना चाहिए।”
राहुल ने श्रीनगर के शेरे कश्मीर क्रिकेट स्टेडियम में बर्फबारी और कड़कड़ाती ठंड के बीच लोगों को संबोधित किया। उन्होंने “भाजपा और आरएसएस की नफरत की विचारधारा” से लड़ने के लिए भाईचारे के साझा मूल्यों और प्रेम पर बात की। उन्होंने कश्मीरियत, कश्मीर घाटी के सांप्रदायिक सद्भाव और धार्मिक समन्वय की परंपरा और इस तरह की अन्य अवधारणाओं को देश की विचारधारा का मूल बताया, जिस पर भाजपा और आरएसएस हमला कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि हमें भाजपा-आरएसएस की विचारधारा के खिलाफ खड़ा होना चाहिए।
एक स्थानीय नेता कहते हैं, “यह कांग्रेस की व्यावहारिकता को दिखाता है। जब सरकार जम्मू-कश्मीर में चुनाव कराने के मूड में भी नहीं है, ऐसे में अनुच्छेद 371 के बारे में बात करना भी इस समय एक पार्टी के लिए बहुत बड़ी चीज है।”
उन्होंने कहा, “जम्मू-कश्मीर में केवल पांच संसदीय सीटें हैं, फिर कांग्रेस पार्टी इन सीटों के लिए अपने संभावित वोट बैंक को क्यों गंवाना चाहेगी।”
कश्मीर में अनुच्छेद 370 का मुद्दा नहीं उठाने के लिए कोई भी राहुल गांधी से नाराज नहीं दिखता है। लंबे समय से कश्मीरियों के लिए यह निपट भावनात्मक मुद्दा रहा है, लेकिन लगता है, भाजपा की राजनीति ने लोगों को व्यावहारिक धरातल पर सोचने पर मजबूर कर दिया है।