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17 मार्च 2025 · MAR 17 , 2025

रेल हादसेः भारतीय रेल पर फिर सवाल

कुंभ के दौरान स्टेशनों पर हुई बदइंतजामी और मौतों ने रेलवे के दावों की खोली पोल, बहुत सुधार की दरकार
ये कैसा सफरः नई दिल्ली में स्टेशन पर बेकाबू हालात

संसद के बजट सत्र में कुंभ मेले को लेकर जोरदार तैयारियों पर वाहवाही बटोर रही भारतीय रेल नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर हुए हादसे के बाद फिर से आलोचना के घेरे में है। देश के सबसे सुविधा-संपन्न और सुरक्षित माने जाने वाले नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर 15 फरवरी 2025 को हुई भगदड़ में 18 मौतों के कारण रेलवे तीखे जनाक्रोश की चपेट में आई है। बजट सत्र के दूसरे चरण में रेल मंत्रालय के कामकाज पर प्रस्तावित चर्चा में स्वाभाविक है कि रेल मंत्री और आला अफसरों को कई असहज सवालों का सामना करना पड़ेगा। 15 फरवरी को नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर प्रयागराज जाने के लिए उमड़ी भारी भीड़ को संभालने में कई खामियां सामने आ चुकी हैं। घटना की जांच जारी है और रिपोर्ट आने पर बहुत से मामलों का खुलासा होगा। फिलहाल यह बात आई है कि घटना के दिन शाम को दो घंटे के बीच 2600 लोगों ने विशेष ट्रेन का टिकट खरीदा था। तभी रेलवे को सजग हो जाना था पर इसे गंभीरता से नहीं लिया गया। मृतकों के परिजनों को 10 लाख रुपये और गंभीर घायलों को 2.5 लाख रुपये तथा घायलों को एक लाख रुपये का मुआवजा देने के साथ रेलवे ने स्थिति समान्य करने के लिए कई कोशिशें की हैं।

स्टेशन पर भगदड़ में मौत का यह पहला मामला नहीं है। इसके पहले महाकुंभ 2013 के दौरान प्रयागराज रेलवे स्टेशन पर एक बड़ी भगदड़ में कई मुसाफिर जान गंवा बैठे थे। इसे ध्यान में रख कर रेलवे ने इस बार अपेक्षाकृत बड़ी तैयारी की थी। अर्द्घकुंभ 2019 के दौरान कुल 8,400 गाड़ियां चलाई गई थीं जबकि इस बार 13,450 ट्रेनें चलाने की योजना बनी। बेहतर सुरक्षा प्रबंधन के लिए 1,186 अतिरिक्त सीसीटीवी कैमरे लगाने के साथ पिछले दो साल में 5,000 करोड़ रुपये का व्यय महाकुंभ के मद्देनजर किया गया गया। रेल भवन में वॉर रूम बनाने के साथ रेलवे ने काफी कुछ नया प्रयास किया था।

सबसे सुरक्षित रेलवे स्टेशन?

नई दिल्ली रेलवे स्टेशन देश का ऐसा पहला रेलवे स्टेशन है जहां से सबसे अधिक वीआइपी समेत रोज करीब पांच लाख यात्री सफर करते हैं और 350 ट्रेनें आती-जाती हैं। यह काफी व्यस्त स्टेशन है, लिहाजा सुरक्षा के साथ बेहतर यात्री सुविधा के जरूरी इंतजाम हैं। करीब सौ साल पहले छोटे स्तर पर आरंभ नई दिल्ली रेलवे स्टेशन को 2022 में विश्वस्तरीय बनाने का फैसला भी किया गया है। आने वाले वर्षों में यह हवाई अड्डे जैसा होगा। इसके पुनर्निर्माण के साथ 9.8 लाख वर्ग फुट के वाणिज्यिक उपयोग का फैसला सरकार ले चुकी है, जिस पर करीब 5000 करोड़ रुपये की लागत आंकी गई है।

भगदड़ में घायल महिला

नई दिल्ली स्टेशन में भगदड़ में घायल महिला

अभी मौजूदा स्टेशन का उद्घाटन 16 अप्रैल 1955 को तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने किया था। 1961 में किसी रेलवे स्टेशन पर पहली एस्केलेटर (चल सीढ़ी) यहीं लगी। बाद में इसमें बहुत से विस्तार का सिलसिला जारी है। जिस इलाके में इस बार हालात बिगड़े उसका कायाकल्प ममता बनर्जी के रेल मंत्री काल में राष्ट्रमंडल खेलों के मद्देनजर किया गया था। तभी प्लेटफार्म नंबर 16 भी बना था, जिससे मुसाफिरों को काफी राहत मिली। नई दिल्ली स्टेशन जैसी भीड़ इस बार महाकुंभ में कई स्टेशनों पर दिखी और रेलवे की तमाम व्यवस्थाओं को तार-तार कर दिया गया। इसी के साथ कई सबक भी रेलवे को मिले हैं। खास तौर पर भावी मेलों और त्यौहारों के लिए प्रबंधन करते समय इसका ध्यान रखा जाना चाहिए।

स्टेशनों पर रणनीति बदलने की दरकार

इस समय भारतीय रेल पर विभिन्न श्रेणी के छोटे-बड़े स्टेशनों की संख्या 9,274 है। सबसे अधिक 1,080 स्टेशन उत्तर रेलवे के तहत हैं। राज्यवार देखें तो सबसे अधिक 1191 स्टेशन उत्तर प्रदेश में हैं, जबकि दूसरे नंबर पर 785 स्टेशनों के साथ महाराष्ट्र और 614 स्टेशनों के साथ राजस्थान तीसरे नंबर पर है। रेलवे स्टेशनों का 2017-18 में नए सिरे से श्रेणीकरण कर आय और यात्री को मानदंड बनाया गया। इसमें एनएसजी 1 से 6 श्रेणी में पहले नंबर के 21 स्टेशनों की सालाना आय 500 करोड़ रुपये से अधिक है। श्रेणी 2 में 77 स्टेशनों की आय 100 से 500 करोड़ रुपये के बीच है।

रेलवे पर संसदीय समिति ने 15वीं लोकसभा के दौरान अपने 19वें प्रतिवेदन में आय के आधार पर श्रेणीकरण का विरोध किया और 2021 में भी अपनी सिफारिश में कहा था कि स्टेशनों की भौगोलिक स्थिति, औद्योगिक केंद्र, पत्तन, कृषि या बागवानी केंद्र, शैक्षणिक संस्थान जैसे मानकों पर श्रेणीबद्ध किया जाए, स्टेशनों को गैर-उपनगरीय और उपनगरीय श्रेणी के साथ हाल्ट श्रेणी में श्रेणीबद्ध किया जाय। रेलवे ने सुझाव नहीं माना।

रेलवे का एक तबका इन बड़े और व्यस्ततम रेलवे स्टेशनों को फायदे का सौदा मानते हुए पीपीपी के माध्यम से इसके विकास पर जून 2015 से ही जोर दे रहा है। पहले ऐसे 19 स्टेशनों को विकास के लिए चुना गया था जिसकी संख्या बढ़ते हुए 50 और अब 100 कर दी गई। नई दिल्ली की घटना के बाद अब इसके सुरक्षा पहलुओं  समेत कई और सवाल उठ रहे हैं जो आने वाले समय में रेलवे का पीछा नहीं छोड़ेंगे।

बढ़ते यात्री, चरमराती सुविधाएं

प्रयागराज महाकुंभ ही नहीं, छठ, दीपावली, होली, दुर्गापूजा और दूसरे कई त्योहारों पर यह देखा गया है कि स्टेशनों पर भारी भीड़ उमड़ती है। विशेष रेलगाड़ियां चलाने के बाद भी रेलवे भीड़ संभाल नहीं पाती। रोज औसतन 13,523 सवारी गाड़ियां चलाने वाली भारतीय रेल पर यात्रियों का दबाव लगातार बढ़ता जा रहा है और सुविधाएं चरमरा रही हैं। इस लिहाज से रणनीति बनाने की जरूरत है।

फिलहाल रेलवे के पास न तो मुसाफिरों की कमी है न माल की। हाल के आकलन से पता चलता है कि बीते दशक में सबसे अधिक 10.33 फीसदी रेलयात्रियों की वृद्धि एसी-3 में हुई है, जबकि एसी-2 में 6 फीसदी और एसी-1 में 6.74 फीसदी। एसी चेयरकार में 9 फीसदी और एक्जीक्यूटिव एसी में 12 फीसदी तक सालाना यात्री वृद्धि हो रही है, पर गैर-एसी श्रेणी में सबसे लोकप्रिय स्लीपर क्लास में 4.4 फीसदी और सेकेंड क्लास में 8.76 फीसदी वृद्धि हो रही है। उपनगरीय रेलों में वृद्धि महज 2.3 फीसदी है। इन आंकड़ों से यह बात समझ में आ रही है कि ठीकठाक कमाई वाले अब अधिक सुविधाजनक एसी श्रेणी की ओर अग्रसर है, लेकिन 95 फीसदी से अधिक गरीब यात्री उपनगरीय, साधारण सवारी गाड़ी तथा मेल-एक्सप्रेस गाड़ी के अनारक्षित और गैर-वातानुकूलित डिब्बों में सफर करते हैं।

सारा जोर वंदे भारत पर

भारतीय रेल के स्वदेशी प्रयासों की उपलब्धि पहली सेमी-हाइ स्पीड ट्रेन वंदे भारत एक्सप्रेस को 15 फरवरी 2019 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विराट समारोह में नई दिल्ली से अपने संसदीय निर्वाचन क्षेत्र वाराणसी के लिए रवाना कर नई शुरुआत की थी। तबसे अब तक कुल 136 वंदे भारत गाड़ियां चलाई जा सकी हैं। अधिकतर का उद्धाटन खुद प्रधानमंत्री ने किया है। इस कारण रेलवे के अफसरों के लिए वंदे भारत ही रेलवे का पर्याय बनी हुई है। रेलवे का सारा जोर वंदे भारत की चमक-दमक पर है, भले दूसरी रेलगाड़ियां इससे प्रभावित क्यों न हों।

वंदेभारत को ही तवज्जो

वंदेभारत को ही तवज्जो

वैसे तो वंदे भारत आम तौर पर भरी हुई चल रही है और स्टेटस सिंबल बनी हुई है। जहां कमजोरी मिलती है, रेलवे उस तरफ तत्काल ध्यान देता है, पर इस पर अभी भी सीमित सवारियां चल रही हैं। रोज ऑस्ट्रेलिया की आबादी के बराबर सवारियों को ढोने वाली भारतीय रेल के वंदे भारत एक्सप्रेस से अप्रैल से दिसंबर 2024 के दौरान कुल 2.14 करोड़ मुसाफिरों ने सफर किया।   कवच प्रणाली, स्वचालित दरवाजों और अन्य ट्रेनों से बेहतर खानपान सेवाओं और कई सुविधाओं से लैस वंदे भारत लोकप्रिय है। इसके स्लीपर संस्करण का भी परीक्षण हो चुका है। अगले तीन साल में 200 वंदे भारत ट्रेन और चलेगी तो तस्वीर और बदलेगी। वंदे भारत को लेकर भारतीय रेल ने लंबा चौड़ा तानाबाना बुना है। योजना है कि 2047 तक भारतीय रेल 4500 वंदे भारत चलाएगी। यानी भारतीय रेल वंदे भारतमय हो जाएगी।

बुलेट ट्रेन लेट-लतीफी की चपेट में

हाल के वर्षों में बुलेट ट्रेन की लेट लतीफी को लेकर रेलवे की काफी आलोचना हुई है। इसे मद्देनजर रख 2024-26 में मुंबई-अहमदाबाद बुलेट ट्रेन परियोजना के लिए सरकार ने 21,000 करोड़ रुपये का आवंटन किया। पहली बुलेट ट्रेन 15 अगस्त 2022 को ही शुरू होनी थी पर अब तक 67,486 करोड़ रुपये व्यय के बाद भी इसकी कुल प्रगति 47.17 फीसदी है। 508 किमी लंबी इस परियोजना पर काफी काम अभी बाकी है जबकि इसका शिलान्यास 2017 में हुआ था। एक लाख आठ हजार करोड़ की भारी लागत की यह परियोजना भारत सरकार, गुजरात और महाराष्ट्र सरकार की संयुक्त परियोजना है। परियोजना की निगरानी के लिए नीति आयोग के उपाध्यक्ष और जापान के प्रधानमंत्री के विशेष सलाहकार की संयुक्त अध्यक्षता में एक समिति भी है।

 ओडिशा के बालासोर में दुर्घटना

ओडिशा के बालासोर में दुर्घटना 

मोदी सरकार में पहले रेल मंत्री डी.वी. सदानंद गौड़ा ने 2014-15 का बजट पेश करते समय गति विस्तार पर खासा जोर देने के साथ संसद में घोषणा की थी कि 9  रूटों दिल्ली-आगरा, दिल्ली-चंडीगढ़, दिल्ली-कानपुर, कानपुर-नागपुर, मैसूर-बेंगलूरू-चेन्नै रूट पर हाइस्पीड ट्रेनें चलेंगी जिसकी गति 160 से 200 किमी प्रतिघंटा होगी। अहमदाबाद से मुंबई के बीच बुलेट ट्रेन का ऐलान हुआ, पर परियोजना कागजों पर रह गई।

सुरेश प्रभु के रेल मंत्री काल में दावा हुआ कि 300 से 600 किमी के बीच की यात्रा दो से ढाई घंटे में पूरी हो जाएगी। इसकी तैयारी की जा रही है। रेल विकास योजना में 2047 तक 7,000 किलोमीटर हाई स्पीड रेल नेटवर्क की बात जरूर हुई लेकिन फिलहाल दुनिया के प्रमुख देशों में भारत ही ऐसा है जिसके पास एक भी हाईस्पीड कारिडोर नहीं है। दुनिया में सबसे बड़ा हाइ स्पीड नेटवर्क चीन के पास है।

रेलवे की शान राजधानी और शताब्दी उपेक्षित

भारतीय रेल पर तेज रफ्तार और समय की पाबंदी के मामले में राजधानी और शताब्दी गाड़ियों ने दशकों में खासी प्रतिष्ठा हासिल की। आज वे वंदे भारत की अनुगामिनी बन उपेक्षित हैं। पहली राजधानी नई दिल्ली-हावड़ा के बीच 1 मार्च, 1969 को स्वदेशी प्रयासों से 120 किमी प्रतिघंटे की रफ्तार से चली थी। इसने सौ साल से लगे गति प्रतिबंध को तोड़ा था। पहला एसी-3 डिब्बा भी राजधानी एक्सप्रेस में 1993 में लगा था। 1996 में मुंबई राजधानी में उपग्रह आधारित टेलीफोन सेवा शुरू हुई थी। 1988 में शताब्दी एक्सप्रेस नई दिल्ली-झांसी के बीच आरंभ हुई थी। समय के साथ कई इलाके राजधानी और शताब्दी से जुड़े। इन गाड़ियों की धूम रही थी।

तमाम प्रयासों के बाद भी भारतीय रेल की मेल एक्सप्रेस गाड़ियों की रफ्तार 51.1 किमी प्रतिघंटा है, जबकि साधारण पैसेंजर गाड़ी की रफ्तार 35.1 किमी प्रतिघंटा। माल गाड़ी की रफ्तार तो 2023-24 में केवल 23.6 किमी प्रतिघंटा थी। इस लिहाज से कहा जा सकता है कि आज भी रफ्तार में भारतीय रेल फिसड्डी है। गति के लिए भविष्य की उम्मीद डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर पर ही टिकी है, जिसके लिए जमीनी काम मूल रूप में लालू प्रसाद यादव के रेल मंत्री काल में आरंभ हुआ था।

हमारे पूर्वी और पश्चिमी दोनों डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर ही रेलवे का नक्शा बदलेंगे और दिल्ली-मुंबई के बीच कंटेनर 24 घंटे में पहुंचने लगेगा जो कई बार एक पखवाड़े में पहुंचता है। इससे मालगाड़ियों की रफ्तार 100 किमी तक हो सकेगी और यात्री गाड़ियों की रफ्तार भी बढे़गी। दिसंबर 2021 तक डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर पूरा हो जाना था, पर यह बार-बार लेटलतीफी का शिकार रहा। अब जल्दी यह साकार हो सकता है।

रेलवे विद्युतीकरण

2025-26 के दौरान भारतीय रेल के सौ फीसदी विद्युतीकरण का लक्ष्य हासिल करना भी एक बड़ी उपलब्धि माना जा सकता है। यह लक्ष्य 2021-22 तक हासिल होना था पर देरी हुई। इससे तेल आयात बिल में कमी आने के साथ रेलवे की लागत घटेगी और मिशन रफ्तार को भी गति मिलेगी। 2018-19 में रेलवे ने बड़ी लाइन के सारे रेल नेटवर्क को विद्युतीकृत करने का फैसला किया गया था और अब तक 97 फीसदी लाइन का विद्युतीकरण हो चुका है। 2014 से 2024 के दौरान 44199 मार्ग किमी का विद्युतीकरण हुआ जबकि 2014 के पहले केवल 21801 किमी विद्युतीकरण हो सका था, लेकिन भारतीय रेल ने राष्ट्रीय रेल योजना के तहत 2024 तक भीड़भाड़ वाले मार्गों का संकुचन हटाने के साथ 2024 तक 2024 मिलियन टन माल ढुलाई का जो खाका बनाया था वह सपना ही बना रहा।

चुनौतियों की भरमार

लंबित परियोजनाओं को पूरा करने के लिए रेलवे को 7.44 लाख करोड़ रुपये की भारी लागत की दरकार है। कोविड-19 के दौरान वरिष्ठ नागरिकों समेत कई श्रेणियों की रियायतें रेलवे ने समाप्त कर दी थीं, जो अब तक बहाल नहीं हुई हैं। उलटे रेलवे दावा कर रही है कि वह किराये पर भारी सब्सिडी दे रही है। 2020-21 से अक्टूबर 2024 के दौरान आरक्षित और अनारक्षित सभी श्रेणियों में रेलवे में 2230.7 करोड़ मुसाफिरों ने सफर किया। रेलवे का दावा है कि हर व्यक्ति को करीब 46 फीसदी रियायत वह दे रही है। यह अतिरंजना भरा दावा है। रेलवे का यह दावा भी गलत साबित हुआ कि मांग पर मुसाफिरों को टिकट मिलेगा। 2022-23 में रोज औसतन 96,000 मुसाफिर प्रतीक्षा सूची में थे। वहीं फ्लैक्सी फेयर तत्काल, प्रीमियम तत्काल तीन श्रेणी में रेलवे ने भारी कमाई की है।

समग्र स्थिति देखें तो रेलवे की माल भाड़े से आमदनी 2017-18  में 1.17 लाख करोड़ रुपये से बढ़ कर 2025-26 में 1.88 लाख करोड़ रुपये होने वाली है। वहीं यात्री आमदनी 2023-24 में 70,693 करोड़ रुपये से बढ़ कर 2025-26 में 92,800 करोड़ रुपये हो जाएगी, लेकिन रेलवे का परिचालन अनुपात 2025-26 में भी 98.43 फीसदी रहेगा। लिहाजा खुद सृजित धन से रेलवे विकास में खास योगदान देने की स्थिति में नहीं होगा।

मौजूदा रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव के समय में 2 जून 2023 को ओडिशा के बालेश्वर में हुए भयानक रेल हादसे में 275 से अधिक लोगों ने मौके पर ही दम तोड़ दिया था। इसके साल भर बाद कंचनजंघा ट्रेन हादसे ने सबको चौंका दिया। फिर भी रेलवे में स्वीकृत 14.74 लाख पदों की तुलना में 11.62 लाख कर्मचारी ही काम कर रहे हैं। तीन लाख से अधिक रिक्तियों में 1.22 लाख संरक्षा श्रेणी की हैं और लोको पायलटों को 10 घंटे से अधिक ड्यूटी देनी पड़ रही है।

रेलवे का सुरक्षा संरक्षा संबंधी व्यय 2016-17 में 55.9 हजार करोड़ से बढ़ कर 2024-25 में 1.08 लाख करोड़ तक पहुंच गया, लेकिन रेल पटरियों को दुरुस्त करने के काम में अपेक्षित बढ़ोतरी नहीं हुई। इससे रेलों के पटरियों से उतरने की घटनाओं में बढ़ोतरी हुई है। भारतीय रेल की 50 फीसदी लाइनें 80 फीसदी बोझ संभाल रही हैं। यही नहीं, 25 फीसदी रेल नेटवर्क पर 100 से 150 फीसदी यातायात चल रहा है। यह सब तथ्य बताते हैं कि रेलवे की दशा और दिशा ठीक करने के लिए साधनों के साथ सरकार को इच्छाशक्ति भी दिखानी होगी।

अरविंद कुमार सिंह

(वरिष्ठ पत्रकार और पूर्व सलाहकार, भारतीय रेल)

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