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बड़े शायर का विदा होना

राहत साहब मुशायरों के बादशाह थे
राहत इंदौरी

राहत साहब से मेरा करीब 20 साल का करीबी संबंध रहा है। हमने साथ में कई मुशायरे भी पढ़े। इसमें कोई दो राय नहीं कि राहत साहब बड़े शायर थे। मंच पर परफॉर्मर के तौर पर उनकी खूब ख्याति रही। वे वाकई मुशायरों के बादशाह थे। वे लोगों को अपने जादू में बांध लेते थे। उनसे बेहतर यह किसी ने नहीं किया। उनसे बेहतर शायर हो सकते हैं लेकिन वे परफॉर्मर बहुत अच्छे थे। उनके बारे में, कहा जाता है कि वे शायर उतने अच्छे नहीं थे, जितने बड़े परफार्मर थे। उनके जाने के बाद खासकर, सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है कि वे बहुत लाउड थे, कम्युनल थे। मैं इससे इत्तेफाक नहीं रखता।  उनके पास कुछ ऐसे शेर हो सकते हैं। लेकिन वे न कम्युनल थे, न सिर्फ परफॉर्मर। वे बहुत अच्छे शायर थे। उनका हाथ उठाना, आसमान की ओर देखना, खास लफ्जों पर जोर देना, कुल मिलाकर उनकी खास अदा उनको लोकप्रिय बनाती थी। वे सारे मजमे को बांध लेते थे। मुशायरे में मंच पर उनसे अच्छा परफॉर्मर शायद कोई नहीं था। लेकिन वे सिर्फ ऐसी शायरी ही पसंद करते थे, ऐसा नहीं है। मेरे जैसे धीमे लहजे के शायर, जिसकी शायरी जरा भी लाउड नहीं है, उस पर भी वे अच्छी दाद देते थे। उनकी सबसे अच्छी बात ही यही थी कि जो भी शेर उन्हें पसंद आता था वो दिल खोलकर उस पर दाद देते थे। इसके लिए जरूरी नहीं कि शायर कोई नामी हो तभी वे दाद देंगे। नए लड़कों को भी वे बराबर प्यार देते थे। उनके शेर को सराहते थे। अच्छे शेर पर दाद देने में उन्होंने कभी कंजूसी नहीं की। यह काम अच्छा शायर ही कर सकता है, परफॉर्मर नहीं कर सकता।

वे अपने फन में माहिर थे। वे जानते थे कि श्रोताओं को क्या चाहिए। यही वजह है उनके पास हर तरह के शेर हैं। हर तरह के श्रोताओं के लिए उनके पास शेर हैं, तालियां पिटवाने से लेकर दिल की गहराई में उतर जाने वाले शेर तक।

 मैं उनके एक दूसरे रूप से भी वाकिफ हूं। उनका साहित्यिक जुड़ाव जबर्दस्त था। शेर में भी जो शब्दों की गरिमा होती है, उनका निबाह उन्हें बखूबी आता था। उनके शब्दों में जादू था। मैं उन्हें म्‍यारी शायरी का शायर मानता हूं। उनके पास ऐसे मिसरे और शेर हैं, जो शानदार हैं। यह म्‍यारी तभी आ सकती है, जब आप उस शायरी में डूब जाएं। मुझे उनकी सबसे पसंदीदा गजल लगती है,

रोज तारों को नुमाइश में खलल पड़ता है

चांद पागल है अंधेरे में निकल पड़ता है

एक दीवाना मुसाफिर है मिरी आंखों में

वक्त-बे-वक्त ठहर जाता है चल पड़ता है

अपनी ताबीर के चक्कर में मिरा जागता ख्वाब

रोज सूरज की तरह घर से निकल पड़ता है

रोज पत्थर की हिमायत में गजल लिखते हैं

रोज शीशों से कोई काम निकल पड़ता है

उसकी याद आई है सांसों जरा आहिस्ते चलो

धड़कनों से भी इबादत में खलल पड़ता है।

मुझे चार-पांच साल पहले दुबई में हुआ एक मुशायरा याद आता है। उस मुशायरे में राहत साहब, मुनव्वर राणा साहब, नवाज देवबंदी साहब जैसे दिग्गज शायर थे। मैं अमूमन कम ही समय लेता हूं पढ़ने के लिए लेकिन उस दिन उनके बार-बार इसरार के बाद मैंने और शेर पढ़े। मंच पर तो वे लगातार दाद देते ही रहे। लेकिन जब मुशायरा खत्म हुआ तो उन्होंने जो कहा वह राहत साहब ही कह सकते थे। जब मैं मंच से नीचे आया तो उन्होंने मुझसे कहा, “आज तो आपने मुशायरा लूट लिया।” वो व्यक्ति जो मुशायरे का बादशाह है, आप उन्हें मुशायरे का नायक भी कह सकते हैं, वह कह रहा है कि आज आपने मुशायरा लूट लिया। यह बात उन्होंने हमेशा याद रखी। दुबई के बाद जब हम भोपाल में मिले, तो भी वे बोले, आपने तो उस दिन कमाल कर दिया था। उन्होंने मुझसे कहा कि उन्हें अच्छा लगा कि लोग ऐसी संजीदा शायरी भी सुनते हैं। यह उनका बड़प्पन था। उनके पास बेशुमार प्यार था, जो वे हमेशा लुटाते रहते थे।

उनके कई शेर और गजलें मुझे प्रिय हैं। उनमें विविधता है। विविधता ही किसी शायर को बड़ा बनाती है। वे कहते थे, मैंने जरूरत से ज्यादा शरीर से काम लिया। बाद तक आते-आते वे थोड़ा थका हुआ महसूस करने लगे थे। लेकिन उनकी शायरी की धार कम नहीं हुई थी। उनकी शायरी की चमक बराबर बनी रही।

उनका जाना शायरी की दुनिया का खाली हो जाना है। लेकिन उनके शेर हमेशा जिंदा रहेंगे। वे लोगों के दिलों में हमेशा जिंदा रहेंगे। मैं उन्हें हमेशा एक अच्छे शायर के रूप में याद रखूंगा।

(लेखक बड़े शायर हैं। हरिमोहन मिश्र से बातचीत पर आधारित)

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