1949
13 नवंबर: अयोध्या में कब्रें खोदने का काम शुरू। इसकी सूचना अक्षय ब्रह्मचारी द्वारा सिटी मजिस्ट्रेट को धारा 145 के तहत कार्रवाई के लिए दी गई, जिसके बाद ब्रह्मचारी के घर पर हमला और लूट हुई।
22-23 दिसंबर: दरमियानी रात मस्जिद के अंदर रामलला की मूर्ति चुपके से रखी गई।
23 दिसंबर: मुकदमा संख्या 215, अपराध संख्या 167 के तहत धारा 147/295/448 के तहत एफआईआर दर्ज। अभिरामदास, शिवदर्शन, रामसुभगदास, रामसकलदास सहित पचास साठ अज्ञात लोग आरोपी बनाए गए। सुबह से ही प्रचार होने लगा कि भगवान प्रकट हुए हैं।
25 दिसंबर: स्थानीय प्रशासन ने विवादित स्थल को धारा 145 के तहत कुर्क कर लिया और मूर्ति के भोग, राग, आरती और व्यवस्था के लिए नगरपालिका फैजाबाद के अध्यक्ष बाबू प्रिया दत्त राम को रिसीवर नियुक्त किया। मामला न्यायिक विचाराधीन हो गया।
29 दिसंबर: सिटी मजिस्ट्रेट फैजाबाद ने मुकदमे के पक्षों में लिखा- सरकार बनाम जन्मभूमि (बाबरी मस्जिद)।
1950
4 जनवरीऔरपहले: बाबा राघवदास द्वारा रामजन्म भूमि पर भाषण, प्रवचन, रामचरितमानस के पच्चीस हजार नवाह्न पाठ की घोषणा।
14 जनवरी: प्रयाग प्रांत के आरएसएस के प्रचारक नानाजी देशमुख का अयोध्या आगमन।
16 जनवरी: फैजाबाद में हिंदू महासभा के नेता गोपाल सिंह विशारद ने मुंसिफ सदर के यहां बाद संख्या 2/1950 दायर किया कि रामभक्त होने के कारण उन्हें रामलला के पूजा पाठ की अनुमति दी जाए और मुसलमानों को विवादित स्थल पर जाने से रोका जाए।
1 फरवरी: आरोप पत्र दाखिल। विवेचक ने अभियुक्तों की मदद करने के इरादे से अभियोग पत्र की इबारत बदल कर लिख दिया, “अभियुक्तों ने पुराना मंदिर जानकर उसमें मूर्ति स्थापित कर दी।”इस तरह मुकदमे का स्वरूप ही बदल गया।
31 अगस्त: अयोध्या का प्रश्न विधानसभा में उठा।
14 सितंबर: मुख्यमंत्री गोविंद वल्लभ पंत का विधानसभा में अयोध्या पर विस्तृत वक्तव्य।
22 अगस्तसे 24 सितंबर: मूर्ति रखे जाने के विरोध में उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी कार्यालय लखनऊ में अक्षय ब्रह्मचारी का अनशन।
1951
24 से 25 अप्रैल: लखनऊ में अक्षय ब्रह्मचारी ने कौमी एकता सम्मेलन किया।
1959
निर्मोही अखाड़े ने विवादित जमीन पर कब्जा करने की मांग करते हुए तीसरा मुकदमा दायर किया।
1961
यूपी सुन्नी वक्फ बोर्ड ने बाबरी मस्जिद स्थल पर कब्जा करने के लिए मुकदमा दायर किया और मस्जिद से राम की मूर्तियां हटाने की मांग की।
1982
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्रीपति मिश्र ने अयोध्या में रामायण मेले की शुरुआत करवाई जिसमें अयोध्या के प्रमुख मंदिरों के महंतों को रखा गया। नृत्यगोपालदास अध्यक्ष और परमहंस रामचंद्र दास उपाध्यक्ष बनाए गए। यहीं से अयोध्या को पर्यटन के नक्शे पर लाने की सरकारी कोशिश राम की पैड़ी के निर्माण के साथ शुरू हुई।
1983
मार्च: मुजफ्फरनगर में हिंदू सम्मेलन। कांग्रेसी नेता और पूर्वमंत्री दाऊदयाल खन्ना ने राम मंदिर पर प्रस्ताव रखा जिसे उत्साह के साथ नहीं लिया गया।
20 अप्रैल: राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह का रामनवमी पर अयोध्या आगमन और रामजन्म भूमि जाने की मांग।
मई: दाऊदयाल खन्ना ने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से अयोध्या, मथुरा, काशी के मंदिरों को मुक्त कराने का प्रस्ताव दिया। वे कमलापति त्रिपाठी से भी मिले। त्रिपाठी ने कहा कि यह बारूद में चिंगारी लगाने के समान होगा, जिससे कांग्रेस के हिंदू-मुस्लिम सिद्धांत को नुकसान पहुंचेगा।
नवंबरदिसंबर: खन्ना अयोध्या में विश्व हिंदू परिषद के प्राकट्योत्सव में आए, कार्यशाला में शामिल।
विश्व हिंदू परिषद का एक प्रतिनिधिमंडल इंदिरा गांधी से मिला और उनसे रामजन्मभूमि को मुक्त कराने और मंदिर बनाने का अनुरोध किया। इंदिरा ने नवंबर 1984 में दोबारा मिलने का समय दिया।
1984
7 से 8 अप्रैल: विश्व हिंदू परिषद ने पहली बार दिल्ली के विज्ञान भवन में हुई पहली धर्म संसद के छठे प्रस्ताव के रूप में अयोध्या मुद्दे को अपनाया और काशी, मधुरा और अयोध्या को हिंदुओं को वापस करने का प्रस्ताव पारित किया।
21 जुलाई: विश्व हिंदू परिषद ने अयोध्या के वाल्मीकि भवन में रामजन्म भूमि मुक्ति यज्ञ समिति का गठन किया। हरिनामदास वेदांती की अध्यक्षता में हुए इस सम्मेलन में गोरक्षपीठाधीशवर महंत अवैद्यनाथ को समिति का अध्यक्ष, दाऊदयाल खन्ना को महामंत्री, परमहंस रामचंद्र दास और नृत्यगोपाल दास को उपाध्यक्ष बनाया गया। इसी बैठक में तय किया गया कि 7 अक्तूबर को लोग सरयू तट पर रामजन्म भूमि को मुक्त कराने का संकल्प लेंगे और 8 अक्टूबर को लखनऊ तक पदयात्रा निकाली जाएगी। फिर 14 अक्टूबर को बेगम हजरत महल पार्क में सम्मेलन होगा।
24 सितंबर: बिहार के सीतामढ़ी से रामजानकी की रथयात्रा निकाली गई, जो अयोध्या होते हुए दिल्ली पहुंची। एक महीने तक इस रथ को प्रचार करना था, इसके बाद 2 दिसंबर को हिंदू सम्मेलन प्रस्तावित था।
14 अक्तूबर: लखनऊ के सम्मेलन के बाद रामजन्म भूमि मुक्ति यज्ञ समिति के प्रतिनिधिमंडल ने मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी से मुलाकात की। रामजन्म भूमि का ताला खोलने का अनुरोध किया गया।
31 अक्तूबर: रामजानकी रथ गाजियाबाद पहुंचा, प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या। रथ के दिल्ली जाने की योजना स्थगित।
1986
21 जनवरी: अयोध्या में लगी एक लोक अदालत का उद्घाटन सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस रंगनाथ मिश्र ने किया। इसी दौरान वे हनुमानगढ़ी दर्शन के लिए गए और रामजन्म भूमि भी गए।
25 जनवरी: हिंदू पक्ष के वकील वीरेश्वर द्विवेदी के सहायक वकील उमेश चंद्र पांडे ने मुंसिफ मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रार्थना पत्र दिया जिसमें रामजन्म भूमि का ताला खोलने की अर्जी थी।
28 जनवरी: मुंसिफ सदर की अदालत ने आदेश दिया कि उक्त वाद उनके पास विचाराधीन नहीं है, इसलिए वे निर्णय नहीं दे सकते। मुंसिफ सदर के निर्णय के विरुद्ध जिला एवं सत्र न्यायालय में अपील दायर हुई।
31 जनवरी: अपील स्वीकार हुई, जिलाधिकारी और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक बयान के लिए तलब। शाम सवा चार बजे आदेश हुआ, उसी दिन विवादित स्थल के और गेट का ताला 5.19 बजे कोतवाल द्वारा हथौड़ी से तोड़ दिया गया। दूरदर्शन पर इसका प्रसारण हुआ, पूरे देश में तनाव फैल गया।
1987
7 नवंबर: रामजन्म भूमि मुक्ति यज्ञ समिति के मंत्री दाऊ दयाल खन्ना ने विभिन्न जिलों में सर्कुलर भेज कर 24 नवंबर को अयोध्या में लाखों रामभक्तों से जुटने को कहा।
4 दिसंबर: बाबरी मस्जिद और सामने की विवादित जमीन को छोड़कर साठ एकड़ जमीन के अधिग्रहण का रामकथा पार्क के लिए प्रस्ताव पारित।
27 दिसंबर: संघ के मुखपत्र पांचजन्य और ऑर्गेनाइजर में खबर छपी कि रामभक्तों की विजय हुई, कांग्रेस सरकार मंदिर बनाने को विवश।
1988
फरवरी: सरकार ने अयोध्या विशेष क्षेत्र प्राधिकरण का गठन किया।
1989
14 अगस्त: इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ बेंच की विशेष पीठ ने शिलान्यास प्रकरण पर सरकार के स्पष्टीकरण प्रार्थना पत्र पर यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया।
3 नवंबर: फैजाबाद से प्रधानमंत्री राजीव गांधी का चुनावी अभियान शुरू, कैंट के मैदान में अपनी पहली सभा में गांधी ने रामराज्य की स्थापना की घोषणा की।
7 नवंबर: यथास्थिति की अदालत द्वारा व्याख्या, शिलान्यास का मार्ग प्रशस्त।
9 नवंबर 1989: विश्व हिंदू परिषद द्वारा शिलान्यास, अगले दिन तक आयोजन जारी।
1990
25 सितंबर 1990: लालकृष्ण आडवाणी ने सोमनाथ (गुजरात) से अयोध्या (यूपी) तक रथ यात्रा शुरू की। देश में सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे।
1992
6 दिसंबर 1992: कारसेवकों की हिंसक भीड़ ने बाबरी मस्जिद को ढहा दिया।
2010
30 सितंबर 2010: उच्च न्यायालय ने अपना फैसला सुनाया, भूमि को तीन पक्षों के बीच विभाजित किया।
2019
9 नवंबर 2019: सुप्रीम कोर्ट ने मंदिर बनाने के लिए जमीन ट्रस्ट को सौंपने का आदेश दिया। नया ट्रस्ट बना। लोग पुराने ही रहे।