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20 फरवरी 2023 · FEB 20 , 2023

आवरण कथा/नजरिया: नौकरी छूटने का दर्द

भारत में भी नौकरियों की निश्चितता का मध्य वर्ग का ख्वाब टूटने लगा है
नौकरी जाने से दुखद कुछ नहीं

सिलिकॉन वैली में अचानक नौकरी चले जाने का पहला अनुभव मुझे सन 2000 में डॉटकॉम घटनाक्रम से पहले हुआ था। 1995 में इंटेल कंपनी पेंटियम का नया चिप एमएमएक्स निकालने वाली थी। मेरी कंपनी व्याकेरीयस कम्युनिकेशन्स को इंटेल कंपनी ने उस चिप पर वीडियो क्लिप सहित विश्वकोश बनाने के लिए 50 लाख डॉलर दिया था। एमएमएक्स चिप के पहले कंप्यूटर पर वीडियो चलाना काफी मुश्किल था। इंटेल के अधिकारी हमारी कंपनी में आकर हमारा काम देखना चाहते थे। उनके आने के पहले एक हफ्ते तक हम सभी ने रोजाना बारह-बारह घंटे काम किया। हमने इंटेल के अधिकारियों के सामने विश्वकोश का सफल प्रदर्शन किया। सभी प्रभावित थे, लेकिन इंटेल ने हमें बताया कि एमएमएक्स चिप को मार्केट में लाने में देर हो रही थी और इंटेल हमारी कंपनी को और रकम नहीं दे सकती थी। व्याकेरीयस कम्युनिकेशन्स उसी दिन बंद हो गई और सारे कर्मचारियों की छुट्टी हो गई। यह अमेरिका में नौकरी की अनिश्चितता के साथ मेरा पहला साक्षात्कार था। 

मैं 1988 में आइआइटी, कानपुर से पढ़ाई करने के बाद कुछ वर्षों तक टाटा स्टील में काम कर रहा था। उस वक्त भारत की अर्थव्यवस्था का वैश्वीकरण हो रहा था। सरकारी कंपनी ‘सेल’ के मुकाबले टाटा स्टील अच्छा कर रही थी, लेकिन कोरिया और चीन की तुलना में टाटा स्टील का हर टन स्टील पर खर्च बहुत ज्यादा था। खर्च का सबसे बड़ा हिस्सा था श्रमिकों की तनख्वाह। टाटा स्टील ने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति योजना (वीआरएस) की शुरुआत की ताकि श्रमिकों की संख्या कम हो सके। मुझे याद है कि टाटा स्टील के अधिकारी श्रमिकों के सामने हाथ जोड़कर वीआरएस लेने की विनती कर रहे थे। टाटा स्टील के मानव संसाधन के लोग बता रहे थे कि कुछ श्रमिक वीआरएस की बात सुनकर पिघले हुए लोहे की बाल्टी में कूदने की धमकी दे रहे थे।

टाटा स्टील के बाद कैलिफोर्निया में अकस्मात छंटनी का अनुभव काफी झटके वाला था। उस घटना के बाद मेरे लिए पिछले 28 साल में ऐसी घटनाएं आम हो गई हैं। 1998 में मैंने अपनी कंपनी खोली और मैंने भी आर्थिक दबाव में लोगों को प्रोजेक्ट खत्म होने पर नौकरी से हटाया है। एक भारतीय के लिए अमेरिका की नौकरी आने-जाने का चलन अजीब लग सकता है। भारत में भले ही बेरोजगारी हो, नौकरी लगने के बाद स्थायित्व की आशा रहती है। हमारी पीढ़ी में सरकार और बैंक नौकरी देने वाली दो बड़ी इकाइयां थीं। दोनों में एक बार नौकरी लगने के बाद लोग उसी से सेवानिवृत्ति की सोचते थे। अमेरिका में वह स्थायित्व 1970 के आसपास गायब हो गया।

नौकरी छूटना काफी कठिन अनुभव है। अभी मैं एक आलेख पढ़ रहा था जिसमें लेखक ने नौकरी छूटने को तलाक से ज्यादा दुखदायी घटना बताया था। भारतीय लोग जो अमेरिका में नौकरी के संयुक्त वीसा पर हैं, उनके लिए नौकरी छूटने का मतलब है अमेरिका से वापसी।

अकस्मात नौकरी चले जाना निश्चय ही दुखद है, लेकिन अगर आप अमेरिकी अर्थव्यवस्था समझते हैं तो विशेष करके टेक्नोलॉजी सेक्टर में नौकरी में आपको कुछ और पहलू दिखेंगे। सबसे पहला तो यह कि नौकरी के अवसर इतने ज्यादा होते हैं कि गूगल और फेसबुक के पूर्व कर्मचारी जल्दी ही कहीं और नौकरी ढूंढ लेते हैं। मैंने अपनी कंपनी में जिस किसी की भी सेवा समाप्त की, उसे दो हफ्ते के अंदर हमेशा नया प्रोजेक्ट मिलते हुए देखा है। मेरे विचार में नौकरी के अवसर होने के कारण कंपनियों और कर्मचारियों, दोनों को ही नौकरी छोड़ने में ज्यादा सोच-विचार नहीं करना होता है। वैसे, यह सत्य है कि हमारे भारतीय बंधु जो कामकाजी वीसा पर अमेरिका में नौकरी कर रहे हैं, उनके लिए नई नौकरी ढूंढने में समय लगता है। दूसरा बड़ा झटका तब लगता है जब कर्मचारी का मेडिकल बीमा नौकरी के साथ जुड़ा हुआ हो। नौकरी जाने के साथ मेडिकल बीमा भी खत्म हो सकता है, जो अमेरिका में बहुत महंगा है। पूर्व राष्ट्रपति ओबामा के कारण मेडिकल बीमा सबको मिलना आसान हो गया है, लेकिन नौकरी के साथ वाला मेडिकल बीमा अक्सर सस्ता होता है। अमेरिका में मानव संसाधन या कर्मचारियों को मशीन या खनिज पदार्थ (कच्चा माल) की श्रेणी में ही रखा जाता है।

मसलन, अगर किसी कंपनी को आर्डर मिलने लगें तो वह कुछ मशीन कम कर देगी और खनिज पदार्थ कम मात्रा में खरीदेगी। दुर्भाग्य से, अमेरिका में मानव संसाधन को भी वैसे ही देखने की प्रवृत्ति है। स्टॉक मार्केट हर बड़ी कंपनी के सिर पर सवार रहता है कि हर चार महीने का लाभ पिछले चार महीने के लाभ से ज्यादा हो। इस कारण से गूगल जैसी कंपनी जिसके पास नकदी का भंडार है, वह भी मुनाफा बनाए रखने के लिए अपने कर्मचारियों को झटके से हटाने के पहले कुछ नहीं सोचती है। एक वक्त ऐसा था, जब भारतीय लोग सिर्फ कर्मचारी होते थे और प्रबंधन में सिर्फ अमेरिकी होते थे। आज सिलिकॉन वैली में भारतीय लोग ऊंचे पदों पर हैं और मुनाफा कम होते ही भारतीय कर्मचारियों को बड़ी संख्या में हटाने का भी निर्णय भारतीय प्रबंधक ही लेते हैं। अब ऐसी घटनाओं को नस्लवाद नहीं करार दे सकते हैं। 

भारत में भी नौकरी की निश्चितता सिर्फ मध्यम वर्ग की नौकरियों तक सीमित है। मैं पिछले छह महीने से बिहार के कटिहार जिले में स्कूल का निर्माण करवा रहा हूं। मेरा स्टाफ मेरे साथ वर्षों से जुड़ा हुआ है, लेकिन हर दिन मेहनताना लेने वाले लगभग 20 श्रमिकों की नौकरी की कोई निश्चितता नहीं है, बिलकुल अमेरिका की टेक्नोलॉजी नौकरी की तरह।

रवि वर्मा

(रवि वर्मा आइआइटी, कानपुर से पढ़ाई समाप्त कर कुछ वर्ष टाटा स्टील, जमशेदपुर में कार्य करने के बाद कैलिफोर्निया, अमेरिका चले गए। 1998 में उन्होंने एचक्यू सॉफ्टवेर कंसल्टिंग की स्थापना की, जो कैलिफोर्निया राज्य सरकार के लिए सॉफ्टवेयर बनाती है।)

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