लगभग दो साल पहले की बात है। ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस से बगावत करके 23 विधायकों के साथ भाजपा का दामन थामा तो कांग्रेस सरकार गिरी और भाजपा की सरकार मध्य प्रदेश में फिर से बन गई। सरकार बनाने में इस भूमिका की वजह से स्वभाविक ही था कि उनके लोगों को बड़ी संख्या में मंत्रिमंडल में शामिल किया गया। यह माना जा रहा था कि भाजपा जैसी पार्टी में धीरे-धीरे सिंधिया का दबदबा समय के साथ कम होता जाएगा, लेकिन ऐसा होता दिख नहीं रहा है। मध्य प्रदेश में हाल ही निगम-मंडलों में हुई नियुक्तियों को देखकर स्पष्ट है कि सिंधिया का कद उसी तरह बना हुआ है।
मध्य प्रदेश में हाल में विभिन्न निगम-मंडलों के 27 अध्यक्षों और उपाध्यक्षों की नियुक्तियां हुर्ईं। इसमें सबसे ज्यादा सात स्थान सिंधिया समर्थकों को दिए गए। सिंधिया के असर का अनुमान इससे भी लगाया जा सकता है कि बड़े और महत्वपूर्ण निगम सिंधिया समर्थकों को ही दिए गए हंै। इसमें एमपी एग्रो, लघु उद्योग निगम और ऊर्जा विकास निगम जैसे संस्थान शामिल हैं।
इसके अलावा उन सभी लोगों को नियुक्तियां दी गईं, जो विधानसभा उपचुनावों में हार गए थे। भाजपा में चुनाव हार जाने वाले लोगों को कोई भी पद न देने की परंपरा है लेकिन सिंधिया के दबाव की वजह से सभी हारे हुए नेताओं को पद दिए गए। दूसरी ओर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सिफारिश पर चार लोगों को स्थान दिया गया। इसके अलावा हाल के विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए लोगों को भी स्थान दिया गया लेकिन राज्य सरकार के मंत्रियों में किसी की भी नहीं सुनी गई। गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा और महासचिव कैलाश विजयवर्गीय जैसे दिग्गजों की भी कोई सुनवाई नहीं हुई। इन नियुक्तियों के स्पष्ट मायने हैं कि मध्य प्रदेश भाजपा में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के बाद सबसे बड़ा कद ज्योतिरादित्य सिंधिया का है। शिवराज ने नियुक्तियों में सिंधिया की हर बात को मानते हुए उनके सभी लोगों को पद दिया है। दूसरी ओर भाजपा के कई वरिष्ठ विधायक पद पाने का इंतजार कर रहे हैं। हालांकि इन नियुक्तियों के बाद भाजपा में अंदरूनी असंतोष बहुत ज्यादा बढ़ गया है मगर कोई खुलकर कुछ भी नहीं कह रहा है।
कांग्रेस इस असंतोष को हवा देने का कोई मौका नहीं छोड़ रही है। निगमों की नियुक्तियां होने के बाद से ही उसने भाजपा पर हमले शुरू कर दिए थे। कांग्रेस प्रवक्ता भूपेन्द्र गुप्ता कहते हैं कि जयचंदों के लिए भाजपा अपनो को भुलाती जा रही है। इसे लेकर पार्टी में भारी असंतोष पैदा हो गया है। पार्टी के लिए लंबे समय से काम करते हुए आज की स्थिति में पहुंचाने वाले लोगों को धोखेबाजों के लिए भुला दिया गया है। हालांकि भाजपा इस बात को सिरे से खारिज करती है। पार्टी प्रवक्ता रजनीश अग्रवाल कहते हैं कि भाजपा अपनी कार्य पद्धति और विचारधारा के साथ कभी समझौता नहीं करती है। यह कहना गलत है कि किसी व्यक्ति विशेष के अनुसार काम करती है। पार्टी अपनी नीतियों के अनुसार ही फैसले करती है।
भाजपा की ओर से कुछ भी कहा जाय, मगर हकीकत यही है कि सिंधिया की राज्य सरकार में काफी सुनी जा रही है। भाजपा में आने के बाद से लगातार उनकी स्थिति मजबूत ही हो रही है। राज्य के कई दिग्गजों की आज सरकार में सुनवाई नहीं हो रही है किन्तु सिंधिया को हर जगह प्राथमिकता मिल रही है। यह भी माना जा रहा है कि वास्तव में शिवराज सिंह स्वयं को मजबूत करने के लिए सिंधिया को अपने साथ लेकर चल रहे हैं। यही वजह है कि वे पार्टी संगठन पर दबाव डालकर सिंधिया समर्थकों को जगह दिलवाने में कामयाब रहे हैं। राजनीति के जानकारों का इस बारे में स्पष्ट मत है कि सिंधिया की ताकत के पीछे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का समर्थन है। संघ मध्य प्रदेश में सिंधिया को भावी मुख्यमंत्री के रूप में देख रहा है। पार्टी में उनके मुकाबले फिलहाल कोई भी चेहरा नहीं है। संघ शिवराज के बाद पार्टी की कमान किसी युवा चेहरे को सौंपना चाहता है। इसके लिए सिंधिया उसकी पहली पसंद है। यह बात शिवराज सिंह भी जानते हैं, इसी वजह से वे सिंधिया को अपने साथ लेकर चल रहे हैं।