किसी संस्कृति में रंगों के कितने नामों का वर्णन है, इससे भी संस्कृति की स्मृद्धि का आभास होता है। इस दृष्टि से पंजाबी संस्कृति को दुनिया की अति समृद्घि संस्कृतियों में शुमार किया जा सकता है। लेकिन खेद की बात यह है कि नई पीढ़ी के हाथों से ये रंग फिसलते जा रहे हैं। दुकानदारों के पास रंगों के पैबंद मात्र हैं या फिर उनके अंग्रेजी नाम, लेकिन हमारे रंगों के नाम हमारे चहुं ओर व्याप्त प्रकृति से आते हैं। एक पंजाबण किसी ललारी (रंगसाज) को कहती है, ‘चुन्नी रंग दे ललारिया मेरी, अलसी दे फुल्ल वरगी।’ अब ऐसे वाक्य दुर्लभ हो गए हैं। बहरहाल, एक दस्तावेज के रूप में यह कविता प्रस्तुत है। इस कविता का एक पात्र बेबे (मां) है जो पुत्र कवि को कहती है कि कितने ही रंगों के नाम वह स्वयं भूल गया है।
रंगां दी कवीशरी
लिखूं मैं कबित
सभी रंगों के नमित
सुनो सभी लगाकर चित्त
मेरी काव्य-रंग संगली
रंग रंग रंग
मेरे चारों ओर रंग
मेरी यही है उमंग
बसे दुनिया यह रंगली
ऊदीआ और उनाभी, आसमानी और अंगूरी
अंबरसीआ, अनारी, आबनूसी और संदली
सौंफिया, संधूरी, सूही, सांवला, सफेद, सावा
संतरी, सलेटी, सुरख, सरदई और शरबती
रंग रंग रंग
मेरे चारों ओर रंग
मेरी यही है उमंग
बसे दुनिया यह रंगली
सुरमई, सुनहरी, सब्ज, हिरमची, हवा प्याजी
हल्दई, हरा, गंदमी, केसू, किरमची
केसरी, करेजी, काला, कंचई, कुमैत, कका
कोका कोला, कपरा, कपाही और काशनी
रंग रंग रंग
मेरे चारों ओर रंग
मेरी यही है उमंग
बसे दुनिया यह रंगली
खाकी, खट्टा, गाजरी, गुलाबी, गोरा, गुलानारी
गेरुआ, लौकी, कपूरी, घुग्गी रंग और गाजनी
जहर महुरा, जोगीया, जंगाली, जरद, जामनी
टमाटरी और तोता वर्ण, तवाशीरी, तांबई
रंग रंग रंग
मेरे चारों ओर रंग
मेरी यही है उमंग
बसे दुनिया यह रंगली
रंग तरबूजी, दाखा, दुधिया और दालचीनी
धौला, धानी, निंबू, नसवारी, नेवी, नीला
पीला और प्याजी, पानी-पत्ता और फिरोजी, फौजी
फालसा, बसंती, बग्गा, बिस्कुटी, बलंभरी
रंग रंग रंग
मेरे चारों ओर रंग
मेरी यही है उमंग
बसे दुनिया यह रंगली
सुनकर कबित लगी मां मुझे कहने
कितने भूल गया रंग तेरी कैसी है कवीशरी
भूल गया मजीठी, सरसों के फूल और सलेटी सुच्चा
मोर पंखी, मिट्टी रंग, मुश्की और बेंगनी
रंग रंग रंग
मेरे चारों ओर रंग
मेरी यही है उमंग
बसे दुनिया यह रंगली
भूल गया बादामी, बूरा, भगवा, बिल्लौरी, भूरा
मलागिरी, मेंहदी रंग, मोतिया और मिल्ट्री
मूंगिया और मेमझाटा, रतड़ा, रसौंती, लाखा
लाजवरी, लाल और लसूड़ी, दुधिया, काशनी
रंग रंग रंग
मेरे चारों ओर रंग
मेरी यही है उमंग
बसे दुनिया यह रंगली
देखो वह दुपट्टा जिसका रंग मिठ्ठा खट्टा
देखो पगड़ी सफिआना धसमैले जैसे रंग की
बाल चांदी रंग के मेरे धूप जैसे चिट्टे
हो गया दिमाग बुड्डा ज्यादा अब याद नहीं
चांदी रंगे बालों के मैं जांऊ बलिहार
तेरे चरणों में रखूं मैं अपनी कवीशरी
लाख-लाख बार, करूं नमस्कार मैं तुझे
माता तेरे बिना रहनी थी अधूरी मेरी रंग संगली
रंग रंग रंग
मेरे चारों ओर रंग
मेरी यही है उमंग
बसे दुनिया यह रंगली
लिखूं मैं कबित
सभी रंगों के नमित
सुनो सभी लगाकर चित्त
मेरी काव्य-रंग संगली
(पंजाबी के प्रसिद्घ कवि ,लेखक पदमश्री से सम्मानित, पंजाब कला परिषद के चेयरमैन)