सानिया मिर्जा और रोहन बोपन्ना की जोड़ी ऑस्ट्रेलियन ओपन 2023 फाइनल मुकाबले में रनर-अप रही। मैच के बाद सानिया मिर्जा ने अपने ग्रैंड स्लैम करियर से संन्यास की घोषणा कर दी। सानिया मिर्जा ने कहा कि उन्हें खुशी है कि 2005 में ऑस्ट्रेलिया में मेलबर्न से टेनिस ग्रैंड स्लैम करियर की शुरुआत की और अब उसी जगह करियर को अलविदा कह रही हैं। उनका तकरीबन दो दशक तक सफल करियर रहा है भारतीय महिला टेनिस में सानिया की उपलब्धि असाधारण रही है। उनके पहले भारत में इस खेल को मूल रूप से पुरुष प्रधान समझा जाता था। रामानाथन कृष्णन और विजय अमृतराज से लेकर लिएंडर पेस और महेश भूपति तक भारतीय टेनिस के प्रमुख चेहरे पुरुष खिलाड़ी थे। लेकिन, सानिया मिर्जा ने अपनी प्रतिभा, मेहनत से टेनिस में भारतीय महिला खिलाडि़यों को लेकर बनी धारणा बदलने का काम किया। उन्होंने टेनिस के क्षेत्र में ऐसी उपलब्धियां हासिल करने में कामयाबी पाईं, जिसकी पहले कल्पना भी नहीं की जाती थी। बीते दिनों ऑस्ट्रेलियन ओपन फाइनल में रनर अप रहने तक सानिया सर्वकालिक महान भारतीय महिला टेनिस खिलाड़ियों में शुमार हो गईं। लेकिन उनके लिए शून्य से शिखर तक की यात्रा आसान नहीं थी।
मुंबई में 15 नवंबर 1986 में इमरान मिर्जा और नसीमा मिर्जा के घर जन्मीं सानिया पारंपरिक परिवार से ताल्लुक रखती हैं। उनके पिता इमरान मिर्जा को क्रिकेट खेलने का शौक था मगर माता-पिता के निधन के कारण उन पर जिम्मेदारी आ गई और वे अपना शौक पूरा न कर सके। उन्होंने खेल पत्रकार के रूप में अपना करियर बनाया और बेटी में खिलाड़ी बनने का अपना सपना जिया। सानिया के जन्म के कुछ समय बाद इमरान मिर्जा परिवार के साथ हैदराबाद आ गए। हैदराबाद में ही सानिया की प्रारंभिक शिक्षा हुई।
तकरीबन छह वर्ष की आयु में सानिया गर्मियों की छुट्टियों में तैराकी सीखने जाया करती थी। मां नसीमा चाहती थीं कि उनकी बेटी जीवन के सभी आयाम देखे। इसी सोच के कारण मां नसीमा ने सानिया को टेनिस खेलने के लिए प्रेरित किया। जब टेनिस कोच ने छह वर्ष की सानिया को देखा तो वे बहुत प्रभावित नहीं हुए। उन्हें लगा इतनी छोटी बच्ची कैसे टेनिस खेल पाएगी। लेकिन सानिया की मां अपने निर्णय पर अडिग रहीं। इस तरह सानिया का टेनिस का सफर शुरू हुआ। यह सानिया मिर्जा की प्रतिभा ही थी, जो कुछ समय बाद टेनिस कोच ने सानिया के माता-पिता को बुलाया और कहा कि उनकी बेटी में अद्भुत क्षमता है, वह टेनिस में अद्वितीय प्रदर्शन कर सकती है। इस बात ने सानिया और उनके माता-पिता को बहुत हिम्मत दी।
संन्यास के बाद भावुक सानिया
सानिया नौ वर्ष की आयु तक सभी स्थानीय और राष्ट्रीय टेनिस टूर्नामेंट में शामिल होने लगी थीं। सानिया को अपनी उम्र से बड़ी महिला टेनिस खिलाड़ियों के साथ खेलने में मजा आता था। आठ वर्ष की आयु में एक टेनिस टूर्नामेंट में वे पंद्रह वर्ष की आयु की महिला टेनिस खिलाड़ी को हरा चुकी थीं। सानिया की क्षमता, समर्पण, अनुशासन का नतीजा था कि बारह वर्ष की उम्र में वे राष्ट्रीय स्तर पर नंबर एक महिला टेनिस खिलाड़ी के रूप में उभर रही थीं। सानिया के लिए यह आसान नहीं था। वे अपनी स्कूली शिक्षा के साथ टेनिस की ट्रेनिंग कर रही थीं। टेनिस टूर्नामेंट के लिए सानिया को एक शहर से दूसरे शहर और एक राज्य से दूसरे राज्य की यात्रा करनी पड़ती थी। इस सबमें काफी पैसा खर्च होता था और तब तक सानिया को कोई खास आर्थिक मदद नहीं मिल रही थी। सानिया के माता पिता को जीतोड़ मेहनत करनी पड़ती थी, ताकि उनकी टेनिस यात्रा अनवरत जारी रहे।
सानिया के टेनिस करियर में पहली उपलब्धि तब आई, जब उन्होंने 2003 में सोलह साल की उम्र में जूनियर विंबलडन डबल्स खिताब जीता। इस मुकाम तक पहुंचने वाली सानिया पहली महिला भारतीय खिलाड़ी थीं। इस उपलब्धि के बाद सानिया ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। सानिया ने अपने करियर में छह ग्रैंड स्लैम खिताब जीते। इसमें तीन महिला डबल्स खिताब और तीन मिक्स डबल्स खिताब शामिल रहे। इसके अलावा सानिया ने अपने कैरियर में 43 महिला टेनिस संघ डबल्स (डब्लूटीए) खिताब और 1 महिला टेनिस संघ सिंगल्स खिताब जीतने में कामयाबी पाई। सानिया को उनके शुरुआती दौर में अक्सर ताने सुनने को मिलते थे। लोग उन पर हंसते हुए कहते कि वे मार्टिना हिंगिस बनने का ख्वाब छोड़ दें। बाद में सानिया ने उन्हीं मार्टिना हिंगिस के साथ मिलकर 2015 में महिला डबल्स का विंबलडन खिताब अपने नाम किया। सानिया ने हैदराबाद के गोबर से बने टेनिस कोर्ट से शुरुआत कर, विंबलडन, यूएस ओपन, ऑस्ट्रेलियन ओपन जैसे खिताब जीते।
सानिया तब आईं, जब भारत में महिला टेनिस खिलाड़ियों की कमी थी। महिलाओं के पास कोई रोल मॉडल नहीं था। तब सानिया मिर्जा ने अपने खेल और जज्बे से खुद को स्थापित किया। सानिया मिर्जा ने कॉमनवेल्थ गेम्स में रजत पदक हासिल किया। उनकी उपलब्धियों के लिए उन्हें अर्जुन अवॉर्ड, मेजर ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार, पद्मश्री और पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। इतना ही नहीं, सानिया को विश्व की प्रतिष्ठित पत्रिका टाइम ने अपने कवर पर छापा और उन्हें सबसे प्रभावशाली एशियाई व्यक्तित्व बताया।
सानिया को 2009 में कलाई की चोट के कारण 8 महीनों तक टेनिस कोर्ट से दूर रहना पड़ा। उनकी कलाई की सर्जरी हुई, जिसके कारण वे डिप्रेशन में भी रहीं। उन्हें लगने लगा कि वे कभी टेनिस नहीं खेल सकेंगी। मगर उन्होंने हौसला रखा और जबरदस्त वापसी की। सानिया ने अपनी वापसी के बाद 5 ग्रैंड स्लैम खिताब जीते और विश्व की नंबर 1 महिला डबल्स खिलाड़ी बनीं। उन्होंने 91 सप्ताह तक नंबर 1 महिला डबल्स खिलाड़ी का मुकाम अपने पास रखा। सानिया ने जब टेनिस खेलना शुरू किया तो इस्लामिक कट्टरपंथी उनके विरोध में आ गए। उनके टेनिस खेलने, उनकी ड्रेस को गैर-इस्लामिक बताया गया और उनके मुस्लिम होने पर प्रश्नचिन्ह उठाए गए। इन आरोपों से सानिया विचलित नहीं हुईं। उन्होंने खेल पर बाहरी तत्वों का असर नहीं पड़ने दिया। जब सानिया ने 2010 में पाकिस्तानी क्रिकेटर शोएब मलिक से विवाह किया तो कट्टर हिंदुत्ववादियों ने उनका विरोध किया। तब सानिया ने हर विरोध का सामना किया।
सानिया की लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि भोजपुरी में उनके नाम पर गाने बनाए जाते हैं। सानिया ने हमेशा निजी और खेल जीवन में संतुलन रखा। 2012 में जब ऑर्थराइटिस की समस्या हुई तो सानिया ने टेनिस सिंगल्स से दूरी बना ली और केवल डबल्स खेलने लगीं। जब वे विश्व में नंबर आठ खिलाड़ी थीं, तब उन्होंने मां बनने का निर्णय लिया और कुछ समय के लिए टेनिस से दूरी बना ली। मां बनने के बाद सानिया ने अपनी फिटनेस पर काम किया और कोर्ट पर वापसी की। इस तरह सानिया उन महिलाओं के लिए प्रेरणा बनीं, जो मां बनने के बाद सोच लेती हैं कि उनका प्रोफेशनल सफर खत्म हो गया है।
उनके पिता इमरान मिर्जा को महसूस होता है कि उनकी बेटी ने दुनिया में भारत का नाम रोशन किया है। वे मानते हैं कि सानिया की जीवन यात्रा, भारत की महिलाओं के लिए प्रेरणा का केंद्र है। वे कहते हैं कि उनकी बेटी ने महिलाओं को आत्मनिर्भर, साहसी बनने की प्रेरणा दी है। स्वयं सानिया का मानना है कि उनके बाद टेनिस की परंपरा खत्म नहीं होनी चाहिए। देश में प्रतिभाओं की कमी नहीं है। नई प्रतिभाओं को तराशने के लिए सानिया हैदराबाद में अपनी टेनिस ट्रेनिंग अकादमी चलाती हैं। इसके अलावा समाज के वंचित वर्ग से आने वाली प्रतिभाओं को सानिया स्पॉन्सर भी करती हैं। सानिया का खेल जीवन इस बात की मिसाल है कि व्यक्ति अपने लक्ष्य के प्रति समर्पित हो, सच्ची निष्ठा रखे तो उसे सफल होने से कोई ताकत नहीं रोक सकती है।