नाम ही काफी है
शहर का बस नाम लेने भर से ही रेलगाड़ी में जगह मिलना आसान हो जाए, ऐसे विशिष्ट गुणों से लैस है बिहार का बेगूसराय! कुछ काम में विख्यात तो कुछ में कुख्यात। बरौनी रिफाइनरी, हर्ल-खाद कारखाना, बरौनी डेयरी, रेशम उद्योग, बरौनी थर्मल पॉवर स्टेशन और औद्योगिक प्रांगण इसे आधुनिक बनाते हैं। मुगलकालीन दरबारी साहित्यकार अबुल फजल की पुस्तक ‘आईने अकबरी’ में बेगमसराय नाम का जिक्र मिलता है। शहर के नामकरण के बारे में कहा जाता है कि शेरशाह सूरी ने प्रति 5 मील पर सराय का निर्माण कराया था। लिहाजा किसी ‘बेगू’ नामधारी व्यक्ति के नाम पर यह बेगूसराय कहलाया। बौद्ध साहित्य में ‘अंगुत्तराप’ और महाभारत काल में इस क्षेत्र को अंग का हिस्सा कहा गया है। कालांतर में यहां गुप्त, वर्धन, मौर्य और पाल वंशियों का शासन रहा। 14वीं शताब्दी में यह तुर्क, अफगान, गुलाम, खिलजी और मुगलों के अधीन रहा। शहर आधुनिक है, उतना ही प्राचीन भी।
शहर में शहर
सिमरिया घाट पर गंगा नदी के किनारे राजा जनक से जुड़े बछवारा के झमटिया घाट पर हर साल महीने भर के लिए एक और छोटा सा शहर बस जाता है। हर साल यहां कल्पवास मेला लगता है। मेले में सुदूर मिथिलांचल, अंग, मगह, असम और नेपाल से श्रद्धालु यहां आते हैं। श्रद्धालु महीने भर कांस, बांस, खर-फूस से बनाई गई पर्ण-कुटी में शाकाहारी भोजन कर सुबह-शाम भजन कीर्तन में समय बिताते हैं। अर्धकुंभ और महाकुंभ जैसे धार्मिक आयोजन के साथ दिनकर की पावन धरती सिमरिया में मोरारी बापू की रामकथा के साथ दिनकर साहित्य कुंभ भी आयोजित हो चुका है। काबर महोत्सव (मंझौल), छठ महोत्सव (भरौल) के साथ, स्थानीय दिनकर भवन में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय नाट्य समारोह भी प्रत्येक वर्ष आयोजित होते हैं। इन सबके बीच बेगूसराय की लोक-संस्कृति के तहत बहुरा गोढ़िन, जट-जटिन, आल्हा-उदल, रेशमा-चुहड़मल जैसे प्रेम आख्यान के साथ-साथ रामलीला, कीर्तन, भजन, सत्संग और यज्ञ-हवन आदि आयोजित होते रहते हैं लेकिन पुरातन बारो प्रायः लुप्त है।
पुराने पर हावी नयापन
हर शहर की तरह यहां भी पुरानी छाप धीरे-धीरे छूट रही है। जिम, रेस्टोरेंट, होटल, फोरलेन सड़कें, ढेरों ढाबे, वॉटर पार्क, स्वीमिंग पूल, पंखों से उग आए फ्लाई ओवर ने शहर की प्राचीनता को ढक लिया है। कभी कंदील की रोशनी में टिमटिमाने वाला कस्बा अब अत्याधुनिक लाइट्स की रोशनी से नहा उठा है। इनकी बदौलत शहर में रात नहीं होती। कस्बे से शहर, शहर से नगर और नगर से नगर निगम बनने का एहसास गगनचुंबई इमारतों को देख कर समझ आता है। विकास की सतत प्रक्रिया जारी है...!
बोली और खेल का संगम
शहर खामोश है पर गूंगा-बहरा नहीं है। यहां की कड़क, चोट करती दमदार बोली, “हे रे बरगाही भाय-सूझय नै छौ’’ अच्छे-अच्छों के पसीने छुड़ा देती है। न सिर्फ पुराने लोग बल्कि इस बोली-बानी का प्रयोग पढ़े-लिखे लोग भी करते मिल जाएंगे। यहां के रहवासी साहसी, बेबाक और तपाक से बोलने वाले हैं। लेकिन हैं सरल। अमन पसंद, सामाजिक सद्भाव के साथ रहने वाले लोगों का यह शहर राज्य की सांस्कृतिक राजधानी के रूप में भी चर्चित है। यह शहर फुटबॉल, वॉलीबॉल, कबड्डी, बैडमिंटन, खो-खो, ताइक्वांडो जैसे खेलों की नर्सरी भी है। राज्य स्तरीय खेल प्रतियोगिताओ में यहां के खिलाड़ियों ने कई बार सफलता के झंडे गाड़े हैं। यहां, काबर झील (रामसर साइट), नौलागढ़, जयमंगला गढ़ माई स्थान खूब प्रसिद्ध हैं। काबर एशिया की सबसे बड़ी शुद्ध पानी की झील और पक्षी अभयारण्य है। सर्दी के मौसम में 59 प्रकार के देशी पक्षी एवं 107 प्रकार के विदेशी पक्षी यहां प्रवास करते हैं।
अलुआ-सुथनी
आसपास के जिलों के नाते-रिश्तेदार इस शहर में रहने वालों को हंसी मजाक में ‘अलुआ-सुथनी’ कह कर संबोधित करते हैं। लेकिन सच तो यह है कि जब मीठे व्यंजनों की बात आती है, तो बेगुसराय के लोगों से ज्यादा मीठा पसंद आपको कोई नहीं मिलेगा। गुलाब जामुन की तरह एक मीठा व्यंजन ‘पंतुआ’, यहां की प्रसिद्ध मिठाई है और स्थानीय लोगों के बीच ‘एटम बम’ के रूप में लोकप्रिय है। खीर, मालपुआ, तिलकुट, रबड़ी, ठेकुआ, बालूशाही, खाजा, पेठा, पिरिकिया, खुरचन, परवल की मिठाई और पोस्ता दाना का हलवा सहित कई स्वादिष्ट मीठे व्यंजन भी इस क्षेत्र में प्रसिद्ध हैं। पोस्ता दाना हलवा खासतौर पर सर्दी के मौसम में बनाया जाता है। बेगुसराय में भी लिट्टी, समोसा, पकौड़ा, गोलगप्पा, झाल मुरही, दही बड़ा, तरुआ, कचौरी, दाल पूरी और चाट खूब पसंद किए जाते हैं। महावीर मिष्ठान भंडार, माखन भोग, गणेश तिलकुट की दुकान, गुप्ता मिष्ठान भंडार, न्यू वर्धमान मिष्ठान भंडार, गोकुल चैट हाउस, प्रेम शंकर स्वीट्स एंड चाट और मुस्कान स्वीट्स शहर की कुछ लोकप्रिय मिठाई की दुकानें हैं। असली बेगूसराय रहवासी दही-चूड़ा, रसगुल्ला, पान-सुपारी के अलावा पानीफल (सिंघाड़ा), गद्दा, कमलगट्टा और मछली प्रेमी होते हैं। राय मार्केट में उपेन्द्र जी की लस्सी, कपसिया के मेघन की चाय और साहेबपुर कमाल के कुरहा बाजार की सोनपापड़ी, लखमिनियां का खीरकदम यहां की विशिष्ट पहचान है।
(मुख्य कार्यालय अधीक्षक, पूर्व मध्य रेल)