खदान में जीवन
ओडिशा राज्य के झारसुगुड़ा जिले में बसा औद्योगिक क्षेत्र है बेलपहाड़, जहां कोयला खदानों की कोई कमी नहीं। संबलपुर और सुंदरगढ़ के साथ छत्तीसगढ़ के शहर रायगढ़ से भी इसकी नजदीकी है। तेजी से हो रहे औद्योगिक विस्तार के कारण देश के हर भाग से आए लोग यहां मिल जाएंगे। छोटा-सा कस्बा अनेकता में एकता का सही मायने में उत्कृष्ट उदाहरण है। लाल मिट्टी वाला पथरीला कस्बा चट्टानों और छोटी-छोटी पहाड़ियों के कटे अवशेषों के बीच बसा है। लेकिन कोयला खदानों के कारण बेलपहाड़ आते-आते मिट्टी काली हो जाती है।
क्लबों के सहारे संस्कृति
बेलपहाड़ की विशिष्ट संस्कृति है। यहां खदानों की वजह से देश के हर क्षेत्र से आए लोगों के अपने-अपने क्लब हैं। जगन्नाथ पूजा के समय यहां ओपेरा का खूब चलन है। ओपेरा नाटक का एक रूप है, जिसमें दर्शकों के लिए बनने वाले पंडालों की विशिष्ट बनावट होती है। मंच के तीन ओर दर्शक बैठ सकते हैं। गीत-संगीत पर आधारित किसी ज्वलंत समस्या या किसी प्रसिद्ध उपन्यासकार की कृति पर होने वाले इन नाटकों को लोग बड़े चाव से रात भर देखते हैं। कई बार तो नाटक दो-तीन भाग में होते हैं और इस तरह एक नाटक कई-कई दिन चलता है।
ईसा पूर्व की लिपि
बेलपहाड़ यूं तो छोटी जगह है, लेकिन यहां के जुबली पार्क को देखना बेहद अलग अनुभव है। यह पार्क बहुत ही खूबसूरत है। यहां बने ईब नदी, खाड़ू, लाल पत्थर, जगन्नाथ मंदिर, नव दुर्गा मंदिर पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। कोइली घोघर में एक नदी है जो चट्टानों के नीचे से निकल कर नीचे गिरती है। आसपास के लोगों के बीच मनोरम पिकनिक स्थल के रूप में यह विख्यात है। यहीं पास में उल्लापगढ़ नाम की पहाड़ी है। इसके बारे में कहा जाता है कि स्वतंत्रता संग्राम के समय बड़ी संख्या में यहां क्रांतिकारियों ने शरण ली थी। हरियाली के साथ यहां की अद्भुत शांति मन मोह लेती है। बिक्रम खोल की गुफाएं देखना अलग अनुभव देता है। इस घने जंगल के बीच इन गुफाओं में प्राचीन काल की झलक मिलती है, जब लोग कंद-मूल खाकर दुनिया से अलग-थलग जीवन बिताते थे। माना जाता है कि गुफा की दीवारों पर अंकित लिपि 4000 ईसा पूर्व की है, जब इस क्षेत्र में मानव सभ्यता का विकास शुरू हुआ होगा।
धूल, धुआं और धुंध
यूं तो बेलपहाड़ कोयले की खदानों के लिए जाना जाता है, जहां नॉन-कोकिंग कोल की बहुतायत है। कहने को तो यहां बड़े-बड़े खूब सरकारी बंगले हैं लेकिन जिंदगी धुएं, धूल और धुंध में लिपटी रहती है। छोटी झोपड़ियां हों या बड़े बंगले सभी अपने-अपने में रमे रहते हैं। यहां जमकर मेहनत है, तो जमकर मस्ती भी। लखनपुर, बंधबहाल और ब्रजराज नगर यहां के मुख्य खदान क्षेत्र हैं। आधी से ज्यादा जनसंख्या यहीं रहती है। घने जंगलों से घिरा यह क्षेत्र किसी भी शहरी व्यक्ति के लिए ईर्ष्या का विषय हो सकते हैं। यहां ऐसे-ऐसे वन उत्पाद मिलते हैं, जिनकी कल्पना भी शहरवासी नहीं कर सकते। जंगली फल, तरह-तरह की हरी-हरी भाजी। जंगल की नीरवता जीवन की धुन सुनने का मौका देती है। शोर से दूर, कोलाहल और भागदौड़ को पीछे छोड़ कर जब शहर से कोई आता है, तो यहां की शांति उसका मन मोह लेती है। यहां लकड़ी से निर्मित सामान लघु उद्योगों के रूप में विकसित किए जाते हैं। आस-पास साल, सागवान, शीशम, बांस, जामुन आदि के पेड़ों की भरमार है। यहां का फर्नीचर बहुत लोकप्रिय है। एक कारण इसकी कीमत और दूसरा इसका टिकाऊ होना है। यहां टोकरी, सूप, खिलौने और अन्य घरेलू इस्तेमाल के लकड़ी के सामान की बहुत मांग रहती है।
साड़ियां सदाबहार
यहां के स्थानीय बाशिंदे बहुत ही सीधे-सादे, सरल हृदय के होते हैं। हथकरघे पर बनीं विशिष्ट आकृतियों की छपाई वाली यहां की साड़ियां बहुत लोकप्रिय हैं। सूती, रेशमी हर तरह की साड़ियां यहां मिलती हैं। संबलपुर और कटक के आंतरिक भागों में बनने वाली साड़ियों की मांग देश के साथ विदेश में भी है।
पीठा और पोड़ा
बेलपहाड़ का स्थानीय भोजन में ओडिशा की छाप लिए हुए है। यहां बाहर से आकर बसने वाले भी स्थानीय स्वाद वाले पखाल, दही, भुजिया, मछली शौक से खाते हैं लेकिन यहां चावल से बने व्यंजन बहुत प्रसिद्ध हैं। एक बार यहां की चावल की रोटी, पीठा और तरी वाली सब्जी खा ली तो वह स्वाद कभी नहीं भूल पाएंगे। देश के अन्य भागों की तरह यहां चाट-पकौड़ी भी मिलती है लेकिन उसमें भी स्थानीय छाप होती है। पारंपरिक तौर पर देखा जाए, तो ज्यादातर लोग अपने ढंग का बना भोजन खाना ही पसंद करते हैं। बाजार में भी आजकल घर में बनने वाला पारंपरिक भोजन मिलने लगा है। इस कारण बाहर से आए लोग भी इन स्थानीय स्वाद का आनंद ले सकते हैं। इसके अतिरिक्त कुछ खास मिठाइयां यहां की पहचान के साथ जुड़ गई हैं। इनमें से छेना पोड़ा पूरे देश में प्रसिद्ध है। दूर-दराज से आने वाले लोग उन्हें सौगात के तौर पर भी अपने साथ ले जाते हैं। नौकरी के सिलसिले में दूसरे प्रदेशों से आकर यहां बस गए लोगों की वजह से खान-पान में विविधता आती जा रही है।
(लेखिका और शिक्षाविद्)