रियासत का केंद्र
यह शहर न सिर्फ अपनी रियासत और सांस्कृतिक धरोहर के लिए मशहूर है, बल्कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान महात्मा गांधी के सत्याग्रह आंदोलन का महत्वपूर्ण केंद्र भी रहा है। बिहार के पश्चिम चंपारण जिले का यह प्रमुख शहर, अपने ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व के लिए जाना जाता है। यहां का इतिहास 17वीं शताब्दी में स्थापित बेतिया रियासत से जुड़ा है। बेतिया महाराज, खास तौर से महाराज हरेंद्र किशोर सिंह और उनके पूर्वजों ने कला, संस्कृति, शिक्षा और समाज सेवा के क्षेत्र में गहरा योगदान दिया। यहां के गौरवशाली इतिहास का प्रतीक बेतिया राज महल इसी रियासत का केंद्र था।
गांधी और स्वतंत्रता संग्राम
महात्मा गांधी के नेतृत्व में यहां 1917 में शुरू हुआ चंपारण सत्याग्रह भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का पहला बड़ा नागरिक अवज्ञा आंदोलन था। बेतिया से शुरू हुआ यह आंदोलन ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ नील की खेती करने वाले किसानों का संघर्ष था। यह सत्याग्रह भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में निर्णायक मोड़ साबित हुआ। बेतिया इस संघर्ष का अहम केंद्र बना। रामप्रसाद शुक्ल, गांधी के करीबी और उनके पक्के अनुयायी थे। स्वतंत्रता सेनानी शुक्ल बाबू ने इस आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई और बेतिया को संगठित करने में सहयोग किया। उनका योगदान आज भी यहां के लोगों के दिलों में जीवित है। जिस छोटे से घर में ठहरकर महात्मा गांधी ने चंपारण सत्याग्रह की शुरुआत की थी, उसे आज भितहरवा आश्रम के नाम से जाना जाता है। आश्रम से थोड़ी ही दूरी पर सम्राट अशोक के दो स्तंभ हैं। स्तंभों के ऊपर बने सिंह वाले शीर्ष को कोलकाता संग्रहालय में तथा वृषभ (सांड) को दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय में रखा गया है।
सांस्कृतिक नगरी
यहां की संस्कृति भोजपुरी और मैथिली परंपराओं का खूबसूरत मिश्रण है। यहां के लोग अपने लोकगीतों, पारंपरिक नृत्यों और उत्सवों के लिए प्रसिद्ध हैं। छठ पूजा बेतिया की धार्मिक और सांस्कृतिक धड़कन को दर्शाता है। इसके अलावा, होली और दीपावली जैसे त्योहारों में यहां की समृद्ध लोक कला और संगीत की झलक मिलती है। यहां कई धार्मिक और सांस्कृतिक संस्थाएं हैं, जिनका गहरा ऐतिहासिक महत्व है। बेतिया महाराज द्वारा स्थापित विद्यालय और पुस्तकालय आज भी शिक्षा और संस्कृति के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं।
पारंपरिक व्यंजनों से भरपूर
यहां का खानपान क्षेत्रीय और पारंपरिक व्यंजनों से भरपूर है। यहां के प्रमुख व्यंजनों में लिट्टी-चोखा, सत्तू और दाल-भात शामिल हैं। लिट्टी-चोखा बिहार का अनूठा व्यंजन है, जो अब बिहार से निकल कर वैश्विक पहचान बना रहा है। ठेकुआ यहां की प्रसिद्ध मिठाई है, जिसे छठ पूजा के दौरान विशेष रूप से बनाया जाता है। इसके अलावा, पेरुकिया और खाजा जैसे पारंपरिक मीठे व्यंजन भी हैं।
गौरवशाली अतीत
बेतिया राजमहल के अतिरिक्त, वाल्मीकि नगर का टाइगर रिजर्व भी पास ही है। इसके हरे-भरे जंगलों से इसकी प्राकृतिक सुंदरता और भी समृद्ध होती है।
वाल्मीकी आश्रम
वाल्मीकी नगर राष्ट्रीय उद्यान के एक छोर पर महर्षि वाल्मीकी के इस आश्रम में राम के त्यागे जाने के बाद देवी सीता ने आश्रय लिया था। किंवदंती यह भी है कि राम और सीता के जुड़वां पुत्र लव और कुश का जन्म हुआ था। मान्यता है कि महर्षि वाल्मीकी ने यहीं पर रामायण की रचना की थी। आश्रम के पास ही गंडक नदी पर विद्युत परियोजना है। यहां से निकली नहरों से चंपारण के अलावा उत्तर प्रदेश के बड़े हिस्से में सिंचाई की जाती है। पास ही बेतिया राज में बनवाया गया शिव-पार्वती मंदिर भी है।
त्रिवेणी संगम
यहां भी त्रिवेणी संगम है। यहां गंडक के साथ पंचनद तथा सोनहा नदी का मिलन होता है। श्रीमदभागवत पुराण के अनुसार विष्णु के प्रिय भक्त गज और ग्राह की लड़ाई का स्थल भी यही है। मान्यता है कि इस लड़ाई का अंत हाजीपुर के पास कोनहारा घाट पर हुआ था। यहां हर साल माघ संक्रांति को मेला लगता है। त्रिवेणी से 8 किलोमीटर की दूरी पर बावनगढ़ी किले का खंडहर है। लेकिन इस प्राचीन किले के पुरातात्विक महत्व के बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है।
भिखना ठोढी
नेपाल की सीमा पर बसी यह छोटी सी जगह अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है। सर्दियों में यहां की छटा देखते ही बनती है। यहां से बर्फ से लदे हिमालय की सफेद चोटियां देखी जा सकती हैं। एक बार यह नजारा देखने के लिए इंग्लैंड के राजा जॉर्ज पंचम भी यहां आ चुके हैं। यहां ठहरने के लिए ब्रिटिशकालीन पुराने बंगले आसानी से मिल जाते हैं।
(युवा लेखक)