स्टील और संस्कृति
कुछ लोग इस शहर को ‘स्टील सिटी’, तो कुछ ‘मिनी इंडिया’ कहते हैं। बाहर के लोगों के लिए इस शहर की पहचान सिर्फ कारखाने तक सीमित है, पर यहां रंग-बिरंगे त्योहारों, सांस्कृतिक विविधताओं और लोक-परंपराओं की छाप भी उतनी ही मजबूत है। इस शहर में स्टील और संस्कृति साथ-साथ धड़कती है। यहां आधुनिकता और विरासत दोनों है। लोहे की चिंगारी के साथ त्योहारों की रोशनी भी अपनी चमक बिखेरती है। 1955 में सोवियत संघ की मदद से यहां स्टील प्लांट की नींव रखी गई थी। 1959 में डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने पहले ब्लास्ट फर्नेस का शुभारंभ कर औद्योगिक युग की शुरुआत की। स्टील प्लांट न केवल भारत की रेलों के लिए सबसे लंबी रेल पटरियां बनाता है, बल्कि विश्व स्तर पर गुणवत्ता और तकनीक के लिए भी पहचाना जाता है। देश भर से लोग यहां रोजगार की तलाश में आए और अपने साथ बोली-भाषा, परंपराएं और त्योहार भी साथ लाए। इस शहर ने सबका दिल खोलकर स्वागत किया। किसी मेहमान की तरह नहीं, बल्कि घर के नए सदस्य की तरह। इस वजह से यहां आने वाले लोग यहीं के होकर रह गए और इस शहर का नया नाम पड़ा, ‘मिनी इंडिया।’
जसगीतों की धूम
वैसे तो इस शहर की धड़कनों से मशीनों की आवाज आती है लेकिन इसके अंदर की आत्मा त्योहारों, मेलों और जसगीतों की धुनों पर झूमती है। गणेश उत्सव और दुर्गा पूजा के समय यह शहर ऐसे सजता है कि नजर न ठहरे। हर थोड़ी दूरी पर भव्य पंडाल लगते हैं। जहां लोग गरबे की धुन में भक्ति भाव से थिरकते हैं। छत्तीसगढ़ी जसगीतों को सुनकर जब किसी महिला में देवी आती है, तो लगता है, जैसे मां चंडी नृत्य कर रही हों। दुर्गा पूजा से इस शहर का पुराना रिश्ता रहा है। पूजा की शुरुआत 1956 में सेक्टर 1 से हुई थी, जो सालों से अनवरत चल रही है। छठ में भी हजारों की संख्या में लोगों को सुबह-सुबह छठी मैया को अर्घ देते देखा जा सकता था। हनुमान जयंती पर, तो जैसे पूरा शहर ही सड़कों पर उतर आता है। लोग न सिर्फ श्रद्धा से भंडारा खाते हैं, बल्कि खिलाते भी हैं। हजारों की संख्या में श्रद्धालु सेक्टर 9 के हनुमान मंदिर में जाते हैं। इन त्योहारों को धूमधाम से मनाने के बाद भिलाईवासी अपने छत्तीसगढ़ी त्योहारों को भी पूरे उत्साह के साथ मनाते हैं। छत्तीसगढ़ी त्योहार को ‘तिहार’ बोलते हैं। हरेली तिहार छत्तीसगढ़ का पहला त्योहार माना जाता है, जिसे हर साल सावन महीने में हरयाली अमावस्या के दिन मनाया जाता है। इसमें कृषि और दूसरे लोहे के औजारों की पूजा की जाती है। मानसून के पोला तिहार आने पर लोग घर में ही मिट्टी के बैलों की पूजा कर उन्हें धन्यवाद करते हैं। वैसे ये त्यौहार किसानों से संबंधित हैं लेकिन भिलाईवासी भी इसे धूमधाम से मनाते हैं। इसलिए पोला तिहार पर जगह-जगह बड़ों और बच्चों के लिए बैल दौड़, गेड़ी दौड़ और दूसरे तरह की प्रतियोगिता आयोजित की जाती है।
भोजन-भट्टों का शहर
यहां खाने वालों की कमी नहीं है। इसलिए होटलों से ज्यादा भीड़ ठेलों पर मिलती है। पोहे से लेकर मोमो आसानी से सब कुछ मिलता है। यहां की एक और खासियत है, दक्षिण से आए, वड़ा पाव पसंद करते हैं और उत्तर के लोग पसंदीदा खाना इडली-डोसा बताते हैं। घरों में, तो छत्तीसगढ़ी स्वाद मिलता ही है। चीला, चौसेला या फरा हरी चटनी के साथ दिव्य स्वाद देता है। त्योहारों में बनने वाले ठेठरी, खुरमी, बरा, अइरसा और भजिया का इंतजार सभी बेसब्री से करते हैं।
खेल और शिक्षा
भिलाई में पूरे छतीसगढ़ और दूसरे राज्यों से बच्चें पढ़ने आते हैं। चाहे वो इंजीनियरिंग का एंट्रेंस एग्जाम हो या फिर मेडिकल का। आइआइटी भिलाई आ जाने से, पूरे भारत में भिलाई की खास पहचान बन गई है। भिलाईवासी सिर्फ पढ़ाकू ही नहीं बल्कि खेल में भी आगे हैं। अलसुबह जयंती स्टेडियम और सेक्टर 1 स्टेडियम में सैकड़ों नौजवान भागते मिल जाएंगे। यहां विभिन्न प्रकार के खेलों के लिए बच्चों को ट्रेनिंग दी जाती है। गर्मी की छुट्टियों में पूरे शहर में समर कैंप भी आयोजित किए जाते हैं।
हरियाली का जादू
एक तरफ दूसरे शहर कॉन्क्रीट के जंगल में बदल रहे हैं, वहीं भिलाई आज भी अपने अंदर हरियाली समेटे हुए है। आज भी सेंट्रल एवेन्यू रोड के दोनों तरफ इतने पेड़ है कि तपती धूप में इन पेड़ों की छाया के नीचे से गुजरते हुए कई किलोमीटर आराम से गाड़ी चलाई जा सकती है। इसके अलावा हर सेक्टर में इको फ्रैंडली पार्क हैं।
घूमने की जगह
सबसे पहले इस शहर की धड़कन भिलाई स्टील प्लांट घूमना चाहिए। आमतौर पर यहां घूमने के लिए विशेष अनुमति या गाइडेड टूर की जरूरत होती है, लेकिन इसकी विशाल चिमनियों को दूर देखकर भी निहारा जा सकता है। अगर प्रकृति से प्यार है, तो मैत्री गार्डन घूमने जरूर जाना चाहिए। यहां न सिर्फ ज़ू है बल्कि बच्चों के लिए टॉय ट्रेन भी है। समय-समय पर यहां फ्लावर शो भी होता है। यहां का बम्लेश्वरी माता मंदिर और कालीबाड़ी भी बहुत प्रसिद्ध है। कला प्रेमियों के लिए नेहरू आर्ट गैलरी जाना जैसे अनिवार्य है। बाहर ही कॉलेज के बच्चे कोई नुक्कड़-नाटक करते मिल जाएंगे। अगर भूख लगे, तो चौपाटी में खाने का लुत्फ भी ले सकते हैं। भिलाई के सेंट्रल एवेन्यू में घूमते हुए किसी बोर्ड पर हर जगह हरियाली, हर जगह सफाई। सबसे सुंदर हमारी भिलाई लिखा दिख जाए, तो आश्चर्य मत कीजिएगा क्योंकि भिलाई सिर्फ शहर नहीं बल्कि एक अहसास है।

(बिजनेस एनालिस्ट)