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5 जनवरी 2026 · JAN 05 , 2026

शहरनामाः भुज

सांस्कृतिक धरोहर का जीवंत मंच
यादों में शहर

सामुदायिक जिजीविषा

गुजरात के कच्छ में स्थित भुज केवल भौगोलिक क्षेत्र नहीं, बल्कि इतिहास, संस्कृति और सामुदायिक जिजीविषा का जीवंत दस्तावेज है। भुजिया डूंगर नामक पहाड़ी से जुड़े भुजंगनाथ देवता की कथा ने इस शहर को अपना नाम दिया। 16वीं सदी में राव खेंगारजी प्रथम ने इसे राजधानी घोषित कर दिया। सदियों से सिंध, राजस्थान और गुजरात के व्यापारिक रास्तों के केंद्र के कारण भुज सांस्कृतिक संगम के रूप में विकसित हो गया।

अमिट जख्म

2001 का विनाशकारी भूकंप कोई नहीं भूल सकता। वह भूकंप इस शहर के इतिहास पर अमिट घाव छोड़ गया, लेकिन उस त्रासदी को भुलाकर भुज फिर खड़ा हुआ। शहर के लोगों ने जिस साहस, सामुदायिक एकता और पुनर्निर्माण की मिसाल पेश की, उसने इस शहर को आशा और दृढ़ता का प्रतीक बना दिया। इतने बड़े संकट पर लोग घबराए लेकिन हिम्मत नहीं हारे। धीरे-धीरे सब एकजुट हुए और शहर ने फिर अपनी गति पकड़ ली।

पुनर्निर्माण की कहानी

2001 के भूकंप के बाद भुज का पुनर्निर्माण केवल भौतिक संरचनाओं का पुनर्गठन नहीं था, बल्कि सामुदायिक मनोबल और एकजुटता की परीक्षा भी था। यह पुनर्निर्माण आज भारत में सहभागी पुनर्विकास का आदर्श मॉडल माना जाता है। नए भुज की सड़कें, सार्वजनिक संरचनाएं और बाजार आधुनिकता और परंपरा के संतुलन को दर्शाते हैं। यह शहर आज भी सांस्कृतिक विरासत, लोक-कलाओं और मानवता के मूल्यों को प्राथमिकता देते हुए आगे बढ़ रहा है।

कसीदाकारी से पहचान

भुज की सांस्कृतिक पहचान उसकी विविध जनजातीय और स्थानीय समुदायों से मिलकर बनी है। आहिर, रबारी, सोढ़ा, मेघवाल और कई अन्य समूह यहां के लोक को बनाते हैं। रंग-बिरंगे धागों से कच्छी कसीदाकारी की महीन और अनोखी कला भुज की पहचान बन चुकी है। इस कसीदाकारी में सिर्फ सौंदर्य नहीं, बल्कि पीढ़ियों से चली आ रही लोककथाएं, आस्था और जीवन के रंग सहेजे हुए होते हैं। इसके साथ ही भुज रोगन कला के कारण विश्व-स्तर पर अलग पहचान रखता है। तेल आधारित रंगों से कपड़ों पर बनता जटिल और महीन डिजाइन न केवल यहां की कलात्मक विरासत है।

लोकजीवन और त्योहार

कच्छ का लोकजीवन अपनी कठोर जलवायु- शुष्क, तेज हवाओं और फैए हुए रण के बावजूद बेहद सुंदर लगता है। यहां का माहौल सौहार्दपूर्ण और जीवंत है। भुज इस सौहार्द का केंद्र है, जहां लोक संगीत की मिठास और नृत्य की लय लोगों के भीतर बसे संघर्षों को भी उत्सव में बदल देती है। नवरात्रि के दौरान गरबा और डांडिया रास की आवाजें पूरे शहर को आनंद से भर देती हैं। कच्छी नववर्ष आषाढ़ी उत्साह और नई शुरुआत का स्वागत करता है। कच्छ महोत्सव इस सांस्कृतिक धरोहर का जीवंत मंच है। यहां लोकसंगीत, नृत्य, हस्तशिल्प, ऊंट की सवारी, पारंपरिक खेल और ग्राम्य संस्कृति के रंग भारतीय सांस्कृतिक विविधता को नई रोशनी में प्रस्तुत करते हैं। यह उत्सव भुज को केवल पर्यटन मानचित्र का हिस्सा नहीं बनाता, बल्कि इसकी पहचान को वैश्विक स्तर पर प्रतिष्ठित करता है।

स्थानीय स्वाद

भुज का भोजन इसकी भौगोलिक परिस्थितियों और स्थानीय जीवन की जरूरतों से गहराई से जुड़ा है। बाजरे और ज्वार की रोटी-रोटला-लहसुन की चटनी और छाछ यहां के रोजमर्रा के भोजन का हिस्सा हैं। ये भोजन न सिर्फ शरीर को पोषण देते हैं बल्कि गर्मी, प्यास और श्रमप्रधान जीवन के लिए उपयुक्त भी हैं। कच्छी दाबेली भुज का सबसे प्रसिद्ध व्यंजन है, जो अपनी मसालेदार भरावन, अनूठे स्वाद और कुरकुरेपन के कारण देशभर में लोकप्रिय हो चुका है। मिठाइयों में गुलाब पाक, खाखरा और विभिन्न नमकीन स्थानीय स्वाद की सादगी और गुणवत्ता को दर्शाते हैं। कच्छी थाली में दाल, कढ़ी, चावल, शाक और अचार का संतुलित मेल सामुदायिक जीवन की सरलता और परस्पर सहयोग की भावना को प्रतिबिंबित करता है। यह भोजन केवल स्वाद नहीं, बल्कि इस क्षेत्र के सामाजिक ताने-बाने का परिचय भी है।

विरासत और वास्तुकला

आईना महल और प्रग महल भुज की वास्तुकला और शाही इतिहास के महत्वपूर्ण प्रतीक हैं। आइना महल, जो 18वीं सदी में बना, दर्पणों, वेनिशियन ग्लास और उत्कृष्ट शिल्पकला का ऐसा अनूठा मिश्रण था जिसने भुज की शाही चमक को दुनिया के सामने प्रकट किया। प्रग महल, गोथिक वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण, अपनी 70 फुट ऊंची घड़ी मीनार के कारण शहर का प्रमुख प्रतीक रहा है। हालांकि 2001 के भूकंप ने इन महलों को भारी नुकसान पहुंचाया, पर उनकी स्मृतियां आज भी भुज के हर नागरिक और इतिहास-प्रेमी के मन में जीवित हैं। पुनर्निर्माण प्रयासों ने यह साबित किया कि भुज अपनी विरासत को केवल संरक्षित नहीं करता, बल्कि उसे भावनात्मक और सामाजिक आधार देता है।

जीवित इतिहास

भुज केवल ऐतिहासिक या भौगोलिक इकाई नहीं, बल्कि एक जीवित सांस्कृतिक धरोहर है-कला, संगीत, उत्सव, भोजन, और सामुदायिक दृढ़ता का अनूठा संगम। यह शहर कच्छ का प्रवेशद्वार ही नहीं, बल्कि कहानियों, स्मृतियों और मानवीय संवेदनाओं का घर है। भुज हमें सिखाता है कि विनाश के बाद भी संस्कृति, स्मृति और सामुदायिक एकजुटता किसी शहर को पुनर्जीवित कर सकती है। यही कारण है कि भुज समय के हर मोड़ पर स्वयं को पुनः परिभाषित करता रहा है और आगे भी सदियों तक करता रहेगा।

महेन्द्र तिवारी

(राष्ट्रीय अभिलेखागार में कार्यरत)

 

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