प्रकृति-आस्था का संगम
झारखंड देश का ऐसा राज्य है, जो प्राकृतिक सुंदरता और संपदा से परिपूर्ण है। इस हरियाली में जब आस्था का संयोग होता है, तो बात ही कुछ और होती है। ऐसे ही एक संयोग का नाम है, रामगढ़। यह झारखंड के उन 24 जिलों में से एक है, जो उसे पर्यटन की दृष्टि से महत्वपूर्ण बनाते हैं। रामगढ़ का अर्थ है, भगवान राम का किला। ब्रिटिश शासन के दौरान, यहां एक सैन्य जिला भी था, जिसे रामगहर के नाम से जाना जाता था। हरे-भरे आड़ू, खुबानी, नाशपाती और सेब के बागानों के कारण रामगढ़ को “कुमाऊं के फलों का कटोरा” भी कहा जाता है। इसे दो खंडों में विभाजित किया गया है- मल्ला, जो अधिक ऊंचाई पर स्थित है और तल्ला, जो नीचे की ओर स्थित है। यहां पर एक दादी पॉइंट भी है।
छिन्नमस्तिके मंदिर
यहां स्थित विशिष्ट स्थलों में से एक है, छिन्नमस्तिके मंदिर। यह रांची से करीब 80 किमी की दूरी पर रजरप्पा में स्थित है। इस मंदिर में बिना सिर वाली देवी प्रतिमा की पूजा होती है। माना जाता है कि इस मंदिर में दर्शन करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। इसलिए हर साल हजारों की संख्या में देश भर से भक्त यहां मां के दर्शन के लिए आते हैं। देवी का यह मंदिर 51 शक्तिपीठों में दूसरा बड़ा शक्तिपीठ है। इस मंदिर के बारे में कई कथाएं प्रचलित हैं। किंवदंती है कि एक बार जब देवी मां अपनी सहेलियों के साथ गंगा नदी में स्नान करने गईं, तो वहां ज्यादा रुकने के कारण उनकी दो सहेलियां भूख से व्याकुल हो उठीं। भूख इतनी तेज थी कि दोनों का रंग काला पड़ गया। वे मां से भोजन की मांग करने लगीं। मां ने उनसे धैर्य रखने को कहा, लेकिन वे भूख से तड़प रही थीं। माता ने अपनी सहेलियों का हाल देखकर अपना ही सिर काट दिया। जब उन्होंने अपना सिर काटा, तो उनका सिर उनके बाएं हाथ में आ गिरा। उसमें से रक्त की तीन धाराएं बहने लगीं। दो धाराओं को देवी मां ने सहेलियों की तरफ कर दिया और बची हुई धारा से खुद रक्त पीने लगीं।
तबसे वे इसी रूप में यहां स्थापित हैं। छिन्नमस्ता देवी की पूजा खास तौर से शत्रुओं पर जीत प्राप्त करने के लिए की जाती है। मां का यह रूप उग्र है। इसलिए तंत्र-मंत्र की क्रियाओं में भी इनकी पूजा करने की परंपरा है। तंत्र साधना के जरिए भक्त अपनी मनोकामना को पूरी करते हैं।
कमल मंदिर
छिन्नमस्तिका मंदिर के पास ही है कमल मंदिर। यह मंदिर बहुत सुंदर है और मंदिर का आकार कमल के फूल के समान है। मंदिर संगमरमर से बना हुआ है और बहुत ही आकर्षक लगता है। यह मंदिर मां दुर्गा को समर्पित है। मंदिर के अंदर दुर्गा जी की बहुत ही सुंदर प्रतिमा के दर्शन करने के लिए मिलते हैं।
रजरप्पा जलप्रपात
यह प्राकृतिक जलप्रपात देखने में बहुत ही सुंदर है। यह दामोदर और भैरवी नदी के संगम पर बना हुआ है। यह जलप्रपात बहुत ही ऊंची चट्टानों से नीचे गिरता है। यहां बहुत सारे लोग संगम स्थल पर स्नान करते हैं। यहां पर बोटिंग भी की जा सकती है। यहां आकर सुखद अहसास होता है।
पतरातु घाटी
पतरातू घाटी विश्वविख्यात है। यह सुंदर घाटी सर्पाकार सड़कों से गुजरते हुए पर्यटकों को असीम आनंद देती है। बरसात में यहां छोटे-छोटे वाटरफॉल बहते हैं, जो बहुत सुंदर लगते हैं। शाम के समय यहां सूर्यास्त का दृश्य देखा जा सकता है।
पलानी वॉटरफॉल
यह जलप्रपात करीब 50 फुट की ऊंचाई से नीचे गिरता है। चट्टानों के ऊपर से गिरता पानी उसे अद्भुत बनाता है। यह झरना जंगल के अंदर स्थित है। इस जलप्रपात तक पहुंचने के लिए जंगल का रास्ता पार करना पड़ता है। यह अपने आप में एक अनूठा अनुभव होता है। घने जंगल को पार कर दुधिया सफेद पानी का झरना किसी दूसरी दुनिया में ले जाता है। कल्पना कीजिए कि पेड़ों से आच्छादित जंगल को पार कर एक झरना प्रकट हो जाए, तो कैसा लगेगा। यहां आकर एक तरह का जादुई अनुभव होता है।
व्यंजन भी लाजवाब
प्राकृतिक सुंदरता के साथ-साथ यहां का स्वाद भी नैसर्गिक है। यहां कोई भी चीज डिब्बाबंद नहीं होती। खाने की हर वस्तु ताजा है और सभी में एक देसी स्वाद बसा रहता है। यहां होटलों और रेस्तरां में भी स्थानीय व्यंजन आसानी से मिल जाते हैं। यहां आएं, तो देशी स्वाद लेना न भूलें। कई तरह की साग और चटनियां यहां की विशेषता रहती है। यहां चावल और दाल की उपज अच्छी होती है, इसलिए इनसे बने व्यंजन विशेषकर तौर पर यहां मिलते हैं। यहां आएं तो धुस्का खाना न भूलें। काले चने के छोले के साथ यह लाजवाब लगता है। यहां बांस की कोंपलों से बने व्यंजन विशेष हैं। धुसका और बांस की कोंपलों से बने व्यंजन इस इलाके की विशिष्ट पहचान है।
(लेखिका)