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शहरनामा: चित्रकूट

तुलसीदास के रामघाट वाला शहर
यादों में शहर

चित्त की प्रसन्नता

दो शब्दों के मेल से बना है, चित्रकूट। चित्र और कूट। संस्कृत में चित्र का अर्थ है, अशोक और कूट का अर्थ है शिखर या चोटी। कभी अशोक के वृक्ष यहां बहुतायत में मिलते थे। यह सुख और शांति का क्षेत्र है। श्रीराम ने यहां 11 साल बिताए थे। रहीम का यह दोहा सत्य है, ‘चित्रकूट में रमि रहे, ‘रहिमन’ अवध-नरेस। जा पर बिपदा परत है, सो आवत यहि देस॥’ यानी अयोध्या के महाराज राम अपनी राजधानी छोड़कर चित्रकूट में जाकर बस गए। 

तुलसी के राम

मान्यता है कि गोस्वामी तुलसीदास ने रामघाट पर ही भगवान श्रीराम के दर्शन किए थे। अब इस घाट पर आधुनिकता का रंग चढ़ गया है। इसी घाट पर गजेंद्र नाथ का अति प्राचीन शिव मंदिर भी है जिसे, औरंगजेब तोड़ने का साहस नहीं जुटा पाया। यह दोहा सार्थक प्रमाण देता है, ‘चित्रकूट के घाट पर, भइ संतन की भीर। तुलसीदास चंदन घिसें, तिलक देत रघुबीर॥’ 

अजूबी पहाड़ियां

उत्तरी विंध्य श्रेणी में आने वाला यह क्षेत्र उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश राज्यों में फैला है। उत्तर प्रदेश के जिला चित्रकूट और मध्य प्रदेश के जिला सतना में शामिल है। उत्तर प्रदेश में चित्रकूट जिला 4 सितंबर 1998 को बनाया गया है। इससे पहले यह साहू जी महाराज नगर और पहले बांदा जिले का भाग रहा है। यह वास्तव में प्रकृति और देवताओं द्वारा प्रदत्त अद्वितीय उपहार है, जो उत्तर प्रदेश में पयस्वनी/मन्दाकिनी नदी के किनारे विंध्य के उत्तरार्द्ध में स्थित है। यह भारत के सबसे प्राचीन पवित्र तीर्थस्थानों में से एक है। यहा प्राकृतिक दृश्यों के साथ-साथ अपने आध्यात्मिक महत्व के लिए भी प्रसिद्ध है।

प्रकृति और पर्यावरण का अनूठा संगम

कोई यहां आकर खूबसूरत झरने, चंचल हिरण और नाचते मोर को देखकर रोमांचित होता है, तो हो सकता है दूसरा यात्री मन्दाकिनी में डुबकी लेकर और कामद गिरी की धूल में तल्लीन होकर अभिभूत हो जाए। प्राचीन काल से चित्रकूट क्षेत्र ब्रह्मांडीय चेतना के लिए प्रेरणा का जीवंत केंद्र रहा है। यही वह जगह है, यहां ऋषि अत्री और सती अनसूया संपर्क में आए थे। इसे ब्रह्मा, विष्णु और महेश के अवतारों का निवास होने का श्रेय दिया जाता है। भगवान श्री राम के चरण स्पर्श से पवित्र चित्रकूट तीर्थ में महाकाव्य ‘श्री रामचरित मानस’ के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास ने अपने जीवन के कई वर्ष व्यतीत किए थे।

तीर्थों का तीर्थ

इसे सभी तीर्थों का तीर्थ कहा है। हिंदू आस्था के अनुसार, प्रयागराज को सभी तीर्थों का राजा माना गया है किंतु चित्रकूट को उससे भी ऊंचा स्थान प्रदान किया गया है। किंवदंती है कि जब अन्य तीर्थों की तरह चित्रकूट प्रयागराज नहीं पहुंचे तब प्रयागराज को चित्रकूट की उच्चतम पदवी के बारे में बताया गया और प्रयागराज से अपेक्षा की गई कि वे चित्रकूट जाएं। मान्यता है कि प्रयागराज प्रत्येक वर्ष पयस्वनी में स्नान करके अपने पापों को धोने के लिए आते हैं। यह भी कहा जाता है कि जब प्रभु राम ने अपने पिता का श्राद्ध किया तो सभी देवी-देवता शुद्धि भोज में भाग लेने चित्रकूट आए थे। वे इस स्थान की सुंदरता से मोहित हो गए थे। भगवान राम की उपस्थिति में इसमें एक आध्यात्मिक आयाम जुड़ गया। इसलिए वे वापस प्रस्थान करने के लिए तैयार नहीं थे। कुलगुरु वशिष्ठ, भगवान राम की इच्छा के अनुसार रहने और रहने की उनकी इच्छा को समझते हुए विसर्जन (प्रस्थान) मंत्र को बोलना भूल गए। इस प्रकार, सभी देवी-देवताओं ने इस जगह को अपना स्थायी आवास बना लिया और यहां वे सभी हमेशा उपस्थित रहते हैं।

वाल्मीकि रामायण में उल्लेख

प्राचीन काल से ही चित्रकूट का विशिष्ट नाम और पहचान है। इस स्थान का पहला ज्ञात उल्लेख वाल्मीकि रामायण में है, जो पहला महाकाव्य माना जाता है। जैसा कि वाल्मीकि, जो राम के समकालीन (या उनसे पहले) माने जाते हैं, मान्यता है कि उन्होंने राम के जन्म से पहले रामायण का निर्माण किया था। महर्षि वाल्मीकि चित्रकूट को एक महान पवित्र स्थान के रूप में चित्रित करते हैं, जो महान ऋषियों द्वारा बसाया गया है। फादर कामिल बुल्के ने भी ‘चित्रकूट-महात्म्य’ का उल्लेख किया है जो, मैकेंज़ी के संग्रह में पाया गया है। विभिन्न संस्कृत और हिंदी कवियों ने चित्रकूट का वर्णन किया है।  

खानपान और त्योहार

चित्रकूट क्षेत्र में सोमवती अमावस्या, सावन झूला, जन्माष्टमी, विवाह पंचमी, रथ यात्रा, दीपावली, शरद-पूर्णिमा, मकर-संक्रांति, रामायण मेला और राम नवमी विशेष अवसर हैं। प्रत्येक अमावस्या में यहां विभिन्न क्षेत्रों से आए, लाखों श्रृद्धालु एकत्र होते हैं। असंख्य मंदिरों और तीर्थों के साथ प्रकृति शांति व सुंदरता में लिपटा हुआ यह क्षेत्र पक्षियों की मीठी चहचहाहट और गहराई से बहती धाराओं से घिरा हुआ है। यहां आएं, तो कचालू, खस्ता और दही भल्ला खाना न भूलिएगा। और खोए की जलेबी एक बार खा ली, तो आध्यात्मिक के साथ-साथ आपको जलेबी का स्वाद भी खींच लाएगा।

 आचार्य डॉ. राधे श्याम द्विवेदी

(भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, आगरा मंडल में पुस्तकालय सहायक एवं सूचनाधिकारी पद से सेवानिवृत्त)

 

 

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