देवताओं का घर
झारखंड की राजधानी रांची से लगभग ढाई सौ किलोमीटर दूर अत्यंत प्राचीन और धार्मिक शहर है देवघर। अपनी धार्मिकता और प्राचीनता के लिए देश दुनिया में प्रसिद्ध। उसे बाबाधाम के नाम से भी पुकारा जाता है। इस शहर का कई धार्मिक ग्रंथों में उल्लेख मिलता है। ग्रंथों में इसका नाम हरितकिवन है। देवघर झारखंड का सबसे पुराना धार्मिक स्थान और राज्य का पांचवा सबसे बड़ा शहर है। जिले के रूप में 1983 में इसका गठन होने के बाद से शहर का लगातार विभिन्न रूपों में विस्तार हो रहा है।
शिव-सती का निवास
भगवान शिव के निवास स्थान को भक्त प्यार से बैद्यनाथ धाम भी पुकारते हैं। यह सिर्फ पूर्वांचल का ही नहीं, बल्कि देश के महत्वपूर्ण शिव मंदिरों में से एक है। देवघर में बैद्यनाथ मंदिर में भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से 9वां ज्योतिर्लिंग है। देश-विदेश से शिवभक्त भोले बाबा के दर्शन करने यहां आते हैं। इस मंदिर की एक दिलचस्प पौराणिक कहानी है। रावण ने शिव को प्रसन्न करने के लिए तपस्या के साथ बहुत जतन किए। भगवान प्रसन्न हुए और रावण से वरदान मांगने को कहा। रावण ने कहा कि वह चाहता है कि उनका एक लिंग स्वरूप लंका के राजमहल में हो। भगवान ने तथास्तु तो कहा लेकिन साथ ही यह भी कहा कि इस लिंग को किसी भी सूरत में लंका पहुंचने से पहले धरती पर नहीं रखना है। रावण ने खुशी-खुशी शिवलिंग कंधे पर लादा और चल दिया। स्वर्ग में इससे हलचल मच गई कि अगर यह शक्तिशाली लिंग लंका पहुंच गया, तो रावण को कोई नहीं हरा पाएगा। तब सबने भगवान विष्णु से रावण को रोकने की प्रार्थना की। विष्णु ग्वाले के रूप रावण के सामने खड़े हो गए। ठीक उसी वक्त रावण को लघुशंका की जरूरत महसूस हुई। रावण ने ग्वाले से अनुरोध किया कि वह थोड़ी देर के लिए शिवलिंग अपने कंधे पर रख ले। ग्वाले ने बात मान ली। लेकिन जब रावण लौटा, तो शिवलिंग जमीन पर रखा था और ग्वाला नदारद था। इस तरह वहीं शिवलिंग स्थापित हो गया।
देवघर केवल शिवलिंग ही नहीं, बल्कि शक्तिपीठ के लिए भी जाना जाता है। यहां शक्ति के 51 पीठों में से एक स्थित है। मान्यता है कि देवघर में ही सती का हृदय गिरा था।
श्रावणी मेला
यहां देश का सबसे बड़ा श्रावणी मेला लगता है। हर साल जुलाई-अगस्त के महीने में लाखों भक्त देश-विदेश से यहां पहुंचते हैं। देवघर बिहार-झारखंड के बीच एक सेतु की तरह भी काम करता है। सावन के महीने में बिहार के लाखों श्रद्धालु सुल्तानगंज से गंगा नदी से गंगाजल लेकर 105 किलोमीटर की दूरी पैदल तय कर देवघर पहुंचते हैं। फिर वे यहां भगवान शिव को जल अर्पित करते हैं। सावन के महीने की रौनक इस शहर को अद्भुत बनाती है। पूरा शहर ‘बोल बम’ की ध्वनि से गुंजायमान हो जाता है। कांवड़ियों से पूरा वतावरण शिवमय रहता है। आस्थावान श्रद्धालुओं का यह समंदर देखने लायक होता है।
तीर्थ का बाजार
देवघर सिर्फ अपनी धार्मिकता के लिए ही नहीं, बल्कि अपने स्वादिष्ट व्यंजनों और बाजारों के लिए भी काफी प्रसिद्ध है। वहां के बाजारों में पूजा-पाठ से जुड़े सभी सामान मिलते हैं। साथ ही धार्मिक किताबें भी खूब बिकती हैं। व्यंजनों में यहां की चिल्का रोटी, तिलकुट, रूगरा, धुसका, लिट्टी-चोखा काफी प्रसिद्ध हैं। यहां आने वाले धार्मिक लोग यहां के बाजारों में घूमना और विभिन्न प्रकार के व्यंजनों को चखना काफी पसंद करते हैं। खाने-पीने के दुकानों पर ज्यादातर पूर्वांचल के ही व्यंजन देखने को मिलते हैं, इसलिए पूर्वांचल के पर्यटक इन व्यंजनों को काफी पसंद करते हैं। अब नए जमाने के व्यंजन भी मिलने लगे हैं।
शंख कलाकृति
यहां एक और चीज पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती है, वह है शंख से बनी वस्तुएं। शंख से बनी वस्तुएं (मूर्तियां आदि) काफी अलग होती हैं। यहां शंख से बनी कलाकृतियों की बड़े पैमाने पर दुकानें हैं। पर्यटक यहां से कुछ न कुछ जरूर ले जाना चाहते हैं, क्योंकि यहां चीजें इतनी सुंदर-सुंदर होती हैं कि कोई खुद को खरीदे बिना रोक नहीं पाता है। शंख से बनी हई वस्तुओं के खरीदार सिर्फ देश के पर्यटक ही नहीं, विदेशी पर्यटक भी होते हैं। ये चीजें हस्तकला का खूबसूरत नमूना होती हैं। विदेश से आने वाले पर्यटकों को शंख की चीजों पर की गई चित्रकारी, बारीक पच्चीकारी बहुत पसंद आती है।
समस्या भी, चुनौती भी
देवघर का लगातार विस्तार हो रहा है। इस शहर पर जनसंख्या का दबाव बढ़ता जा रहा है। साथ ही, देश का पवित्र और महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल होने के कारण सावन के महीने में यहां पर पर्यटकों की भीड़ इस शहर के दबाव में इजाफा कर देती है। भीड़ के लिहाज से इस शहर में बुनियादी सुविधाओं का अभाव है। यातायात और सड़कों का ढांचा मजबूत नहीं है। सामान्य तौर पर आम धार्मिक पर्यटकों को भी बुनियादी सुविधाएं नहीं मिल पातीं। पर्यटकों की सामान्य सुविधाओं का खयाल रखा जाए, तो यह शहर विश्व मानचित्र पर अलग से जगमगाएगा। बिजली पानी जैसी बुनियादी सुविधाओं और बेहतर हो जाएं, तो बाबा धाम के रहने वालों और पर्यटकों को और क्या चाहिए।
(शिक्षक)