ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर
अरावली पर्वतमाला की गोद में, गुजरात के ईशान कोने में बसा इडर, प्रकृति और इतिहास का अनुपम संगम है। पुराणों में इसका जिक्र इल्वदुर्ग के नाम से मिलता है। किंवदंती है कि द्वापर युग में यह क्षेत्र ऋषि अगस्त्य की तपोभूमि रहा, जिन्होंने इल्व और वातापि जैसे असुरों का वध किया था।
छोटा मारवाड़
गुजरात और राजस्थान की सीमा पर स्थित इस क्षेत्र को कभी छोटा मारवाड़ कहा जाता था। यहां एक ओर भील, प्रतिहार और राठौड़ वंश के शासकों का राज रहा, वहीं सुल्तानों, मुगलों और गायकवाड़ों ने भी इस अभेद्य माने जाने वाले किले को हासिल करने का हर संभव प्रयास किया। वलभी राज्य के पतन के बाद सिसोदिया वंश के आदि पुरुष कहे जाने वाले कुमार बाप्पा रावल ने इडर के जंगलों में जीवन बिताया और आगे चलकर मेवाड़ में सिसोदिया वंश की नींव रखी। रावलपिंडी इन्हीं के द्वारा बसाया गया शहर है। 1857 की क्रांति के दौरान पास के मुड़ेटी के सूरजमल ठाकोर ने अंग्रेजों के खिलाफ हथियार उठाए थे। ब्रिटिश शासन के दौरान इडर के शासक अधिकतर समय मुंबई या पुणे में विलासितापूर्ण जीवन जी रहे थे और शासन व्यवस्था दीवानों और अधिकारियों के भरोसे छोड़ दी गई थी, जिससे आम जनता पर अत्याचार और कर का बोझ बढ़ गया। इसके विरुद्ध इडर से मुंबई पलायन कर गए एक समुदाय ने वहां आंदोलन शुरू कर दिया। उनकी कुछ मांगों को स्वीकार कर लिया गया। यह गांधीजी के आगमन से पहले का महत्वपूर्ण जनांदोलन माना जाता है।
प्राकृतिक सौंदर्य और स्थापत्य
इडर गढ़ से जाने वाले यहां की पर्वतमाला की विशेषता इसके अनोखे ग्रेनाइट पत्थरों में है, जो हवा, पानी और तापमान की लगातार मार से अजीबोगरीब आकार में ढल चुके हैं। ये पत्थर मानो किसी कवि की कल्पना से तराशे गए प्रतीत होते हैं। इडरगढ़ की लोकमानस में इतनी गहरी पैठ है कि गुजरात की बारातें नववधू को लाते समय ‘‘अमे इडरियो गढ़ जीत्या रे आनंद भयो’’ जैसे विवाह गीतों के बिना अधूरी मानी जाती हैं। इन प्राकृतिक चट्टानों पर कई किताबें लिखी जा चुकी हैं, अनगिनत कॉफी टेबल बुक और फिल्मों में इनका सौंदर्य कैद किया गया है। इन पत्थरों पर शैल चित्र भी मिले है, लेकिन अफसोस, आज यही सुंदरता इसकी सबसे बड़ी शत्रु बन चुकी है। अवैध खनन के चलते सदियों पुराने ये पत्थर खतरे में हैं और आने वाले वर्षों में शायद केवल चित्रों और कविताओं में सिमट कर रह जाएंगे।
धार्मिक, साहित्यिक-सांस्कृतिक विरासत
अरावली की इन पहाड़ियों की सिंहशिला पर महात्मा गांधी के आध्यात्मिक गुरु श्रीमद राजचंद्र ने साधना की थी। स्वामीनारायण संप्रदाय के योगी गोपालानंद स्वामी, कवि मुरली ठाकर, लेखक विट्ठल पंड्या, फिल्म निर्माता रामचंद्र ठाकुर, गुजराती सिनेमा के सुप्रसिद्ध अभिनेता उपेंद्र त्रिवेदी और दूरदर्शन पर प्रसारित किए गए रामायण धारावाहिक में रावण का किरदार निभाने वाले अरविंद त्रिवेदी सभी इस भूमि की संताने हैं। इडर के सर प्रताप हाइस्कूल को यह दुर्लभ गौरव प्राप्त है कि यहां पढ़े दो छात्रों, उमाशंकर जोशी और पन्नालाल पटेल को साहित्य का सर्वोच्च ज्ञानपीठ सम्मान प्राप्त हुआ। गुजराती के साहित्यकार उमाशंकर जोशी राज्यसभा में नामित सांसद रहे और संसद के पटल पर और संसद से बाहर इमरजेंसी का विरोध करने वाले साहित्यकारों में शामिल थे।
स्थापत्य कला
इडर का स्थापत्य भी इसकी धरोहर का एक अहम हिस्सा है। जगह-जगह प्राचीन मंदिर, बावड़ियां, तालाब, कुंड, शिल्प, खंडहर और किले इसकी समृद्ध विरासत की गवाही देते हैं। रणमल चौकी, रूठी रानी का मालिया, जैन मंदिर, स्वामीनारायण मंदिर, विलास महल, रणमल तालाब, राणी तालाब, वेणीवत्स कुंड, कोटेश्वर और चंदन गुफाएं दर्शनीय हैं। पुरातत्व के लिए खजाना के समान यह धरोहर आज स्थानीय प्रशासन और पुरातत्त्व विभाग के द्वारा घोर उपेक्षा के चलते भग्न अवस्था में दयनीय स्थिति में हैं। राजस्थान के पुष्कर के बाद ब्रह्मा जी का एकमात्र चौमुखी मंदिर पास ही खेड़ब्रह्मा में है। वहीं, कभी कराम्बुक कहे जाने वाले शामलाजी के गदाधर विष्णु मंदिर और जलकुंड भी दर्शनीय हैं। इडर से कुछ दूरी पर पोल के मंदिर, विरासत और प्रकृति का सुंदर समन्वय हैं, विशेष रूप से बारिश के मौसम में यहां की छटा देखने लायक होती है।
कला, संस्कृति
इडर का खरादी समुदाय वर्षों से लकड़ी के सुंदर हस्तनिर्मित खिलौने बनाता आया है। एक समय इडर का पूरा ‘खरादी बाजार’ खिलौनों के लिए प्रसिद्ध था। आज यह कला विलुप्त होने की कगार पर है। आदिवासी बहुल यह क्षेत्र लोक संस्कृति से सराबोर है। यहां हर बार मौसम बदलने पर परिवर्तन मेले लगते हैं। एक समय ऐसा था जब केवल इडर में ही एक साथ 15 मेले लगते थे और मेलों में आदिवासी जीवन-रंगों की अद्भुत छटा देखते ही बनती थी। अब भी रंग उभरते हैं, लेकिन पुराने दृश्यों की यादें आज भी लोग चाव से सुनाते हैं।
विशिष्ट खानपान
विशिष्ट स्वाद वाली अदरक की चाय के बिना और कंद के राजा रतालू की बनी उंधिया के बिना अधूरा है। वन संपदा से भरपूर यह क्षेत्र स्वादिष्ट औषधीय गुणों वाली सब्जियों और फलों के लिए भी जाना जाता है। गुलकंद से मिलीजुली यहां की खास मिठाई गलशकरी यहां के उष्ण मौसम के अनुसार शीतलता देती है। औषधी के तौर पर भी इस्तेमाल किया जाता है। हलवाई माधव जीवराज की प्रसिद्ध सूखी भेल, नमकीन अनूठे स्वाद के कारण प्रसिद्ध हैं।
(सरकारी अधिकारी)