आन, बान, शान और पहचान
इंदौर का वर्णन राजबाड़ा के उल्लेख के बिना अधूरा है। होल्कर राजवंश का निवास, सात मंजिला ये महल शहर के ठीक बीच में है। इस महल के बनने और क्षतिग्रस्त होने का लंबा इतिहास है। ये वर्षों से व्यावसायिक गतिविधियों का केंद्र है। त्योहार का उत्सव, विश्व कप की जीत, किसी मुद्दे के खिलाफ विरोध प्रदर्शन, छोटे-बड़े प्रयोजनों हेतु सर्वाधिक वांछित स्थल है ये और इंदौरी राजबाड़ा जाकर सामूहिक उल्लास का अनुभव करते हैं। मेरा पालन-पोषण इसी शहर में हुआ। हम बच्चे सड़कों पर साइकिल दौड़ाते, आड़ा बाजार में सीधे चलते, जेल रोड पर आजादी महसूस करते, खाने के ठीये खोजते, प्यार-दोस्ती के रिश्ते बनाते, प्रतियोगिता, खेल भावना और मासूम सी नफरत भी कर लेते थे।
भियाओ, ‘झन्नाट’ नी लगी?
इंदौरी अक्सर ‘भियाओ’ से बातचीत शुरू करते हैं और ‘हओ’ के साथ प्रतिक्रिया देते हैं जो सहमति, अनिच्छुक सहमति या ताना होता है। इंदौर की स्थानीय बोली में निरालापन है और कई अनूठे शब्दों के गठन, उच्चारण और प्रयोग वहां की विरासत का अभिन्न हिस्सा हैं। जैसे ‘नी’ अर्थात इंदौरी नकार, ‘ऐबला’ टेढ़े आदमी के लिए, ‘झन्नाट’ दिमाग को झन्ना देने वाला भोजन या वाक्य, ‘भन्नाट’ शानदार वस्तु, व्यक्ति या प्रदर्शन की तारीफ, यह सूची अनंत है। नई पीढ़ी इनसे अनभिज्ञ है, परंतु पुराने इंदौर के लोग इन बोलियों से अलग ही मैत्री बंधन में बंधे रहते हैं इसलिए इंदौर धांसू जगह है भियाओ!!!
खाने के ‘भन्नाट’ दीवाने
अगर किसी ने पिज्जा पर सेव की टॉपिंग खाई है तो वो शहर सिर्फ इंदौर हो सकता है, जहां भोजन का जीवन के आनंद में सर्वोच्च स्थान है। इंदौर और अच्छा खाना एक-दूसरे के पर्याय हैं। सुबह की शुरुआत सिग्नेचर डिश पोहा-जलेबी से होती है। इंदौरी नाश्ते में इससे ऊबते नहीं। प्रशांत उसल पोहा और मथुरावाला सर्वश्रेष्ठ हैं। यहां का सराफा बाजार दिन में सोने के कारोबार का केंद्र रहता है और रात में चटोरों के साम्राज्य में बदल जाता है। लोग सारी रात स्वादिष्ट व्यंजनों का स्वाद लेने के लिए उमड़ते हैं। यहां के नामी व्यंजन हैं, विजय चाट हाउस के पेटिस, जोशी जी के दही बड़े, नागौरी की शिकंजी, साबूदाने की खिचड़ी, भुट्टे का कीस, आधा किलो की जलेबी आदि जो खाते-खाते थक जाए इंसान। छप्पन दुकान भी भोज स्वर्ग है जहां जॉनी हॉटडॉग 35 वर्षों से मेरा पसंदीदा है और विजय चाट हाउस, मिलन कुल्फी, महू पावभाजी जैसे आकर्षण भी हैं। पृथ्वीलोक और अन्नपूर्णा की थाली, गीता भवन के रसगुल्ले, शीतल गजक, ढेरो स्थान हैं जिनको चखने के लिए एक बार इंदौर जाना ही बेहतर होगा।
स्वच्छतम नगर, लगातार चार बार
इंदौर भी अन्य शहरों की तरह था, जिसमें कूड़े की खंतियां, अपर्याप्त अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली, नागरिकों का स्वच्छता के प्रति उदासीन रवैया, सामान्य और स्वीकार्य स्थिति थी। लेकिन गर्व की बात है कि इससे उबरते हुए इंदौर ने 2016 से लगातार चार वर्षों तक भारत का सबसे स्वच्छ शहर होने का सम्मान अर्जित किया है जो मुख्य रूप से नागरिकों द्वारा सक्रिय भागीदारी की भावना तथा जनप्रतिनिधियों, शासकीय अधिकारियों, कर्मचारियों की सक्रिय भूमिका और उपायों के माध्यम से संभव हुआ। इन अनुकरणीय प्रयासों ने दुनिया को प्रेरित किया। जहां जनता ने स्वच्छता को यज्ञ मानकर जीवन शैली में सम्मिलित कर लिया, भारत के उस स्वच्छतम शहर का होने के कारण इसके हर नागरिक को गर्व है।
आइआइटी भी, आइआइएम भी
इंदौर कभी सूती वस्त्रों का सबसे बड़ा उत्पादक था जहां 11 बड़ी कपड़ा मिलों में उत्पादन होता था, लेकिन धीरे-धीरे सभी बंद हो गईं। पुराने लोग आज भी राजकुमार मिल, स्वदेशी मिल, हुकुमचंद मिल, मालवा मिल के समय को याद करते हैं। मिलें बंद हो गईं पर बाजार विकसित हो गए और इंदौर मध्य भारत का बड़ा औद्योगिक और वाणिज्यिक केंद्र बन गया जो कपड़ा, रसायन, तिलहन निष्कर्षण और नमकीन के निर्माण और व्यापार में अग्रणी है। निकट ही पीथमपुर औद्योगिक क्षेत्र में वाहन, रसायन और औषधि की विनिर्माण इकाइयां हैं। इस वाणिज्य सम्राट की धड़कन को महसूस करने के लिए क्लॉथ मार्केट, मारोठिया, शीतला माता मार्केट का भ्रमण पर्याप्त है। इंदौर सरकारी और निजी संस्थानों के साथ बड़ा शैक्षणिक केंद्र भी है और भारत का एकमात्र शहर जहां आइआइटी और आइआइएम दोनों हैं।
रंगीले अनंत उत्सव
इंदौर के अनंत चतुर्दशी जुलूस का उल्लेख महत्वपूर्ण है जो पूरी रात चलता है। इसमें शहर की बड़ी आबादी हिस्सा लेती है। झांकियां महीनों पूर्व तैयार होती हैं। परस्पर प्रतिस्पर्धा के साथ लंबे जुलूस मार्ग पर भीड़ का उत्साह अवर्णनीय है। विज्ञान की परिधि के परे, आस्थावान अपरिचितों के साथ हंसी-ठिठोली, रात भर झांकियों का दर्शन, जाति, धर्म, आर्थिक स्थिति से इतर समरसता की व्याख्या का उदाहरण है। रंगपंचमी की गैर भी अनूठी होती है जिसमें ट्रक पर स्थित गुलाल की मिसाइलों से रंग की बौछारें भीड़ को सराबोर करती हैं और लोग नाचते-गाते चलते रहते हैं। दो वर्षों से कोरोना के कारण जुलूस नहीं निकल पाए पर इस शहर के किस्से अनंत हैं। जीवन के प्रति जज्बा और जुनून रख, हर परिस्थिति में खुश रहना और जीने के लिए खाने से बेहतर विकल्प है खाने के लिए जीना, यह शहर सिखाता है। मुझे इस पर गर्व है।
(भारतीय पुलिस सेवा के 1996 बैच के मध्य प्रदेश कैडर के अधिकारी, ब्लॉगर)