कई नामों से बना कोल्हापुर
यह शहर अपने ऐतिहासिक, धार्मिक, शैक्षणिक, आध्यात्मिक, राजनैतिक, सामाजिक, औद्योगिक कारणों से देश भर में प्रसिद्ध है। यहां का गुड़, खान-पान, कलाकार, पहलवान, चमड़े की चप्पलें खूब प्रसिद्ध हैं। इसे ‘करवीर नगरी’ भी कहा जाता है। पहले कोल्लपूर, कोल्लगिरि, कोल्हादिगिरिपट्ण नामों से गुजरते हुए शहर का नामकरण कोल्हापुर हुआ।
कलाकारों का नगर
इसकी मिट्टी ने कई कलाकारों को जन्म दिया है। कुछ मराठी नाटकों, फिल्मों तक सीमित रहे, तो कइयों ने हिंदी फिल्मों में अपना डंका बजवाया। यहां आधुनिक सुविधाओं वाला केशवराव भोसले नाट्यगृह है। मराठी नाटकों के मंचन में मराठी फिल्मों के ख्यात कलाकार यहां शामिल होते हैं। वी. शांताराम, आशुतोष गोवारीकर, रमेश देव, सुलोचना, जयश्री गड़कर, भावना अथैय्या यहां की गौरवशाली देन हैं। हिंदी फिल्मों के अभिनेता राज कपूर ने अपने अभिनय की पहली पारी वाल्मीकि में छोटे से रोल में यहीं से शुरू की थी। उनकी याद में यहां उनकी मूर्ति भी बनाई गई है।
खेल की नगरी भी
मराठी फिल्मी कलाकारों, चित्रकारों के अलावा इसे खेल नगरी भी कहा जा सकता है। खेल-कूद में यहां के लोगों की गहरी दिलचस्पी है। राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई खिलाड़ियों ने यहां पदक जीते हैं। मराठी में खेल को क्रीडा कहते हैं। हरियाणा, पंजाब के बाद पहलवानी में महाराष्ट्र का कोल्हापुर सुप्रसिद्ध है। यहां हमेशा कुश्तियों के आयोजन होते रहते हैं। युवाओं, बुज़ुर्गों के अलावा लड़कियां भी कुश्ती खेलती हैं। यहां के छत्रपति शाहू महाराज पहलवानों को कुश्ती के लिए प्रोत्साहित करते थे। यहां कुश्ती लड़ने के लिए कई अखाड़े हैं।
अंबाबाई का मंदिर
करीब 1,300 वर्ष पुराना महालक्ष्मी मंदिर यहां है। आदि शक्ति को समर्पित इस मंदिर को अंबाबाई मंदिर कहा जाता है। इसकी विशेषता यह है कि उत्तरायण और दक्षिणायन पूर्व सूर्य की किरणें 3 दिनों तक गर्भगृह तक पहुंचती हैं। महालक्ष्मी त्रिदेवी का हिस्सा हैं, जो महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती की त्रिमूर्ति के रूप में हैं। चालुक्य राज्य में इसका निर्माण कर्णदेव ने करवाया था। नवरात्र आदि महोत्सवों में यहां श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती रहती है। इसे सुसज्जित करने की योजना को मंजूरी मिली है। ऐसी मान्यता है कि तिरुमला वेंकटेश्वर मंदिर में दर्शन करने के बाद महालक्ष्मी के दर्शन करने से ही यह तीर्थ-यात्रा सफल मानी जाती है। इसलिए श्रद्धालुगण तिरुमला वेंकटेश्वर के दर्शन बाद सीधे यहीं पहुंचते हैं।
जोश, जुनून, जिंदादिली
यहां का वातावरण बहुत दिलखुश है। प्रसन्नचित रहना यहां के लोगों का स्वभाव है। लगभग हर रविवार को घर या होटलों में जाकर यहां के लोग मिसल पाव या मिसल ब्रेड खाना पसंद करते हैं। रात को भोजन में मांसाहार को प्राथमिकता दी जाती है।
बोली भाषा
यहां के लोगों के बोलने का ढ़ंग निराला है। यह यहां की विशिष्ट पहचान है। लवकर (जल्दी करो) शब्द यहां सबकी जबान पर चढ़ा रहता है। हर व्यक्ति बस फुर्ती चाहता है। काय भावा? (क्या भाई ) और आणि काय विशेष? (और क्या खास ) यहां हालचाल पूछने का आत्मीय तरीका है।
खाने-पीने के शौकीन
स्थानीय लोग मीठा खाने के बजाय तीखा खाना ज्यादा पसंद करते हैं। इतना तीखा कि बाहरी खा ले तो जीभ झनझना जाए। इसके बावजूद यहां के लोगों के स्वभाव में मीठापन होता है। मराठी भाषा में कहें तो, ठसका-झटका-भुरका। यहां की विशेष पैदावार छोटी हरी लवंगी मिर्च अपने तीखेपन के लिए ख्यात है। सिलबट्टे पर पिसी हुई इस मिर्च का ठेचा, लहसुन चटनी, बैंगन की रसेदार तरकारी बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक सबको पसंद होती है। यहां का मांसाहारी भोजन पूरे देश में मशहूर है। शोरबा ( ग्रेवी ) को यहां रस्सा कहते हैं। तीखेपन को शांत करने के लिए यहां सोलकढ़ी पी जाती है। कोकम और नारियल के दूध से बने इस पेय का स्वाद दिव्य रहता है।
पंचगंगा नदी, रंकाला झील
सह्याद्री पर्वत शृंखला की गोद में बसा यह शांत शहर पंचगंगा नदी तट पर बसा है। कासारी, कुंभी, भोगावती, तुलसी और सरस्वती नदियां मिलकर पंचगंगा बनाती हैं। आगे चलकर उनका विलय पास ही स्थित नरसिंह वाड़ी की कृष्णा नदी में होता है। इन्हीं विशेषताओं के कारण इसे दक्षिण काशी या महातीर्थ भी कहते हैं। नदी तट पर छोटे-छोटे मंदिर और घाट हैं। यहां का प्रमुख आकर्षण है, मीठे पानी का विशाल रंकाला तलाब। यह 107 हेक्टेयर में फैला हुआ है। 35 फुट गहरा यह तालाब शहर की आन-बान-शान है। इसे रंकाला चौपाटी भी कहते हैं। राज घाट और मराठा घाट से झील के अंदर प्रवेश करते हैं। यहां नौका विहार की भी सुविधा है। शाम को यहां की रौनक देखने लायक होती है। चटोरों के लिए खाने-पीने के असंख्य ठेले लगे रहते हैं। इसके पीछे बना शालिनी पैलेस देखने लायक है। यहां हिंदी, मराठी फिल्मों की शूटिंग होती रहती है। पास ही में दर्शनीय इस्कॉन मंदिर है।
कैसे पहुंचे
रेल और बस के साथ कोल्हापुर से मुंबई रोजाना हवाई यात्रा की सुविधा है। बेंगलूरू और तिरुमला जाने के लिए भी विमान सेवा है। कोल्हापुर शहर और आसपास कई दर्शनीय स्थल हैं। न्यू पैलेस म्यूजियम और जू, बॉटेनिकल गार्डन, भवानी मंडप, खासबाग मैदान, बिन खांबी गणेश मंदिर, चिन्मय गणेशाधीश, ज्योतिबा मंदिर, टेमला बाई मंदिर, कणेरी मठ आदि। कोल्हापुर से 22 किलोमीटर की दूरी पर स्थित छोटा-सा सुंदर हिल स्टेशन पन्हाला घूमने लायक है।
(लेखक)