लेंडौवरोर से लंढौर
उत्तराखंड में मसूरी के पास एक खूबसूरत जगह है लंढौर। ब्रिटिश सिटी लेंडौवरोर और लंढौर में सिर्फ इतनी-सी समानता है कि यह ब्रिटिश अधिकारियों को अपने शहर की याद दिलाती थी और उन्होंने 1825 के आसपास इसे बसाना शुरू किया। यहां की आबोहवा उन लोगों को रास आने लगी और इस तरह पूरे मसूरी-लंढौर में पहला स्थायी भवन बनाया गया, जो मसूरी को खोजने वाले कैप्टन फ्रेडरिक यंग का था। 1827 में यहां घायल ब्रिटिश सैनिकों के उपचार के लिए एक अस्पताल बनाया गया। कुछ समय बाद इस अस्पताल को आरोग्य आश्रम में बदल दिया गया। यहां अंग्रेज अधिकारी अपने उन सैनिकों को रखते थे जो भारत के गर्म मौसम को सहन नहीं कर पा रहे थे और टीबी के मरीज थे। धीरे-धीरे यह जगह छावनी के रूप में विकसित हो गई और अंग्रेजों को अपनी मातृभूमि का सा एहसास देने लगी। इस तरह इस जगह का नाम वेल्स स्थित ब्रिटिश सिटी लेंडौवरोर के नाम पर लंढौर रख दिया गया।
रस्किन बॉन्ड का घर
दुनिया बदलती रहती है, लेकिन हमेशा कुछ न कुछ होता है, कहीं न कहीं वही रहता है। ऐसा मैं नहीं कह रहा बल्कि बच्चों के सबसे प्यारे लेखक रस्किन बॉन्ड ने लंढौर के बारे में कहा है। रस्किन बॉन्ड यहां के सबसे पुराने निवासियों में एक हैं। लंढौर कहने को तो मसूरी से सिर्फ पांच-सात किमी दूर है लेकिन इसकी दूरी का असल अंदाजा इस जगह पर चलकर आने वाले लोगों को ही होता है, खासकर ट्रेकिंग के आखिरी तीन किमी, जिन्हें हम एक बाजार और कुछ संकरी गलियों से होकर तय करते हैं। लेकिन यहां पहुंच गए तो सारी थकान पल दो पल में ही आसपास के नजारे देखकर छूमंतर हो जाती है। लंढौर का वह पुराना आकर्षण आज भी बरकरार है। यह उन स्थानों में से एक है जो व्यावसायीकरण से अछूते हैं। रस्किन बॉन्ड जैसे लेखक के यहां रहने के कारण इस हैमलेट की शांति और सादगी है।
अदरक-नींबू वाली चाय
लंढौर में अंग्रेजों के जमाने में कुल चार दुकानें थीं। यहां का सबसे बड़ा बदलाव यही है कि दुकानें चार से बढ़कर छह हो गई हैं। अनिल कैफे और टिकटॉक शॉप इस जगह पर 50 साल से स्थित हैं। उनकी प्रसिद्धि का अंदाजा आप दीवारों पर टंगी तस्वीरों से लगा सकते हैं। शायद ही कोई बॉलीवुड का सेलेब्रिटी हो जो, यहां न आया हो। पैन केक हो, आमलेट या जिंजर लेमन टी इस जगह से ज्यादा अच्छी शायद ही कहीं और मिल पाए। सबसे पसंदीदा जिंजर लेमन टी पीने के बाद शाम ढलते-ढलते लंढौर की सड़कों पर बस निकल जाएं, खूबसूरती ऐसी है कि कभी नहीं भूल पाएंगे। लंढौर अपनी बसावट और भौगोलिक परिस्थितियों की वजह से बाकी दुनिया से बिलकुल अलग है।
सैलानियों का सुकून
ब्रिटिश कालीन पुरानी इमारतें, देवदार के खूबसूरत पेड़, शुद्ध हवा, चर्च, कैफे और जिंदगी की मद्धिम रफ्तार किसी ऐसी जगह की याद दिलाते हैं जहां हम आना तो वर्षों से चाहते थे पर उस जगह का हमारे पास कोई पता नहीं था। वर्तमान में लंढौर उन तमाम भटके हुए सैलानियों का एक ऐसा पता है जो कुछ दिन शांति और सुकून के साथ समय व्यतीत करना चाहते हैं। लंढौर की शुद्ध हवा और देवदार के ऊंचे पेड़ मेरी पहाड़ की सबसे खूबसूरत स्मृतियों में बसे हैं। यह हमेशा, हर बार इस जगह पर आने वाले लोगों के लिए ऐसा रहस्यमय संसार रच देते हैं कि वह चाहकर भी इनसे बाहर नहीं निकल पाता। हर बार वह एक टुकड़ा यहीं का होकर रह जाता है।
दून घाटी का सौंदर्य
इस जगह को खासकर दो चीजों के लिए लंबे समय तक याद किया जा सकता है। पहला इस जगह और आसपास का प्राकृतिक दृश्य, दूसरा मौसम। गोल चक्कर तो लंढौर की ऐसी जगह है जहां न चाहते हुए भी लोग पहुंच जाते हैं। यहां खड़े होकर देखने पर एक तरफ दून घाटी का सौंदर्य तो दूसरी तरफ हिमालय की ऊंची-ऊंची खूबसूरत चोटियां दिखाई देती हैं। मौसम ऐसा जो हर किसी को रास आ जाए और वह इस जगह पर रहने के बारे में सोचने लगे। लंढौर में रहकर यहां के शांत और सुकून भरे वातावरण का मजा लिया जा सकता है, यहां के पुराने चर्चों को घूमा जा सकता है, नेचर वॉक किया जा सकता है।
लेखकों और घुमक्कड़ों की जमीन
इस छोटे से शहर में तलाश करने के लिए बहुत कुछ नहीं है, लेकिन निश्चित रूप से कुछ बिंदु हैं जो इस जगह को खास बनाते हैं, जिन्हें आप हमेशा याद रखना चाहेंगे। जैसे कि आइवी कॉटेज। इसे रस्किन बॉन्ड की कहानियों की जमीन कहा जाता है। यह वह जगह है जहां रस्किन ने कहानियां लिखी थीं, जिन्हें पढ़कर हम सभी बड़े हुए हैं। इस जगह पर एक ऐतिहासिक चर्च भी है जिसे चर्च ऑफ सेंट पॉल मसूरी कहा जाता है। जिम कॉर्बेट के माता-पिता क्रिस्टोफर और मैरी कॉर्बेट ने 1859 में इस चर्च में शादी की थी। चर्च ऑफ सेंट पॉल मसूरी का सबसे ऐतिहासिक चर्च है जो हर किसी को भी पसंद आएगा।
(घुमक्कड़ लेखक)