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शहरनामा: मैहर

शारदा माई की नगरी
यादों में शहर

मां शारदा की नगरी

कुछ लोग मुझे ऐतिहासिक नगरी मानते हैं, तो कुछ धार्मिक। भक्तों के लिए मैं मैहर हूं, पर कुछ लोगों के लिए अभी भी अपने पुराने नाम छाप लिए मैहरगढ़ ही हूं। दोनों नामों का दावा अपने-अपने किस्सों से जुड़ा है। मुझे जो जिस नाम से पुकारे मैं दोनों नामों का स्वागत करता हूं। पर हां, इतना जरूर है कि मां शारदा के कारण मेरा नाम दूर-दूर तक गूंजता है। कहते हैं कि यह वही धरा है, जहां मां शारदा ने त्रिकूट पहाड़ी पर वास किया और अल्हा-उदल जैसे वीरों ने मां की भक्ति कर अमरत्व पाया।

इतिहास और किंवदंती

मेरी कहानी इतिहास और किवदंतियों की गहराई से बुनी हुई है। बुंदेलखंड की धरती पर बसे मेरे प्राचीन अतीत की गूंज आज भी सुनी जा सकती है। कहते हैं, त्रेता युग में भगवान राम ने यहां मां शारदा की आराधना की थी। मध्यकाल में यह इलाका चंदेलों और बघेलों के साम्राज्य का हिस्सा था। मेरी सबसे प्रसिद्ध कथा अल्हा और उदल से जुड़ी है। बुंदेलों के ये वीर जब युद्धभूमि में उतरते थे, तो पहले त्रिकूट पर्वत पर स्थित मां शारदा के दरबार में माथा टेकते थे। आज भी गर्भगृह के बाहर वह तलवार टंगी है, जिसके बारे में मान्यता है कि अल्हा को शारदा माई ने यह तलवार भेंट की थी।

तीर्थ और आस्था

मुझ पर सबसे बड़ी कृपा मां शारदा की है। भक्त त्रिकूट पर्वत की सीढ़ियां जैसे-जैसे चढ़ते जाते हैं, उनके मन की चिंताएं और बोझ उतना ही हल्का होता जाता है। मां के मंदिर तक पहुंचने के लिए पहले 1063 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती थीं, लेकिन अब रोपवे ने यह यात्रा सरल बना दी है। नवरात्रि में पूरा शहर किसी बड़े मेले में बदल जाता है। दूर-दूर से श्रद्धालु यहां शारदा माई के दर्शन के लिए आते हैं। शारदा माता की आरती की गूंज और ढोल-नगाड़ों की थाप, जैसे मेरे हर कोने में प्राण फूंक देती है। मंदिर परिसर में अस्थायी बाजार लग जाते हैं, खिलौनों से लेकर धार्मिक वस्तुएं और स्वादिष्ट पकवान तक सब यहां रौनक लगाते जाते हैं। नवरात्रि के दौरान दशहरा पर्व पर त्रिकूट पर्वत दीपों की रोशनी से जगमगा उठता है। दूर से देखने पर लगता है, जैसे पूरा पर्वत एक दिव्य दीपमालिका में बदल गया है। भीड़ में छोटे बच्चों की खिलखिलाहट, भक्ति गीतों की गूंज और श्रद्धालुओं की आंखों में चमक सब मिलकर इस शहर को आस्था के महासागर में बदल देते हैं।

मैहर घराना और संगीत साधना

इस शहर से जुड़ा एक अभिमान और है, संगीत का एक ऐतिहासिक घराना। संगीत प्रेमी इसे मैहर घराना कहते हैं। संगीत के इतिहास में यह घराना अमर है क्योंकि यहां उस्ताद अलाउद्दीन खान ने संगीत को नई ऊंचाई दी। 20वीं सदी की शुरुआत में जब अलाउद्दीन खान यहां आए, तो उन्होंने मां शारदा के चरणों में संगीत को समर्पित किया। उनकी तपस्या से यह घराना भारत के शास्त्रीय संगीत का एक प्रमुख केंद्र बन गया। उनके शिष्यों में पंडित रविशंकर, अन्नपूर्णा देवी और अली अकबर खान जैसे महान कलाकार शामिल रहे। मैहर का नाम आज भी दुनिया भर के संगीत प्रेमियों के दिल में गूंजता है। मैं सिर्फ शहर ही नहीं हूं, मेरे अंदर भक्ति और संगीत की आत्मा बसती है। मेरे लिए गर्व का एक और कारण है, मैहर बैंड। यह बैंड अंग्रेजों के जमाने में स्थापित हुआ था। पहले यह अंग्रेज अधिकारियों के लिए पश्चिमी धुनें बजाता था, फिर धीरे-धीरे उसने भारतीय रागों को भी अपनाया। नवरात्रि और दुर्गा पूजा के दौरान यह बैंड मां शारदा के दरबार में संगीत बजाता है, तो लगता है मानो पूरा परिसर मां की आराधना कर रहा हो।

जीवंत क्षण

रेलवे स्टेशन पर आती-जाती यात्रियों की भीड़ बताती है कि मां शारदा के दरबार की ख्याति कितनी दूर तक फैली है। सतना, कटनी और रीवा से आने वाली ट्रेनें पूरे भारत भर से जुड़ी हुई हैं। जिस तरह नवरात्रि में गुजरात गुलजार रहता है, यहां के लिए भी यह साल का सबसे बड़ा पर्व होता है। मां शारदा की भव्य शोभायात्रा, त्रिकूट पहाड़ी पर जलते दीपों की कतारें और भक्तों के जयकारे इस शहर को जीवंत कर देते हैं। उस समय मैं सिर्फ एक शहर नहीं रह जाता, बल्कि आस्था का महासागर बन जाता हूं। नवरात्रि मेले के दौरान मेरी सड़कों पर धार्मिक नाटक मंडलियां अल्हा-उदल की वीरगाथाओं और देवी की कथाओं का मंचन करती हैं। इन कथाओं में बुंदेलखंड की मिट्टी की खुशबू और मां शारदा की महिमा दोनों समाए रहते हैं। आज भी नवरात्रि में मां शारदा की आरती के समय बजने वाली उस धुन में अलाउद्दीन खान की साधना की आत्मा सुनाई देती है।

खानपान की खुशबू

मेरे गलियारों में सिर्फ भक्ति की गूंज नहीं, स्वाद की खुशबू भी तैरती है। सुबह-सुबह गरम पोहे-जलेबी, साबूदाने की खिचड़ी और मलाईदार लस्सी का आनंद लिए बिना यात्रा अधूरी लगती है। मेले के दिनों में मेरी गलियों में लगे ठेलों पर कचौरी-समोसा, भुट्टे का कीस और गुलाब जामुन की महक हवा में घुली रहती है। मां के दर्शन के बाद श्रद्धालु इन पकवानों का स्वाद लेते हैं।

मौसम भी है अनूठा

यहां का मौसम भी इस शहर की तरह कई रंग लिए हुए है, गर्मियों में तपता हुआ, बरसात में भीगता हुआ और सर्दियों में ठिठुरता हुआ। नवरात्रि के दौरान, जब शरद ऋतु की ठंडी हवाएं बहती हैं, तब मेरा रूप सबसे मनमोहक हो जाता है। त्रिकूट पर्वत की सीढ़ियों पर चढ़ते हुए जब ठंडी हवा छूती है, तो लगता है, मां शारदा स्नेह से आशीर्वाद दे रही हों। नाम चाहे जो हो, मैहर या मैहरगढ़ यहां की आत्मा में मां शारदा की भक्ति, अल्हा-उदल की वीरता और अलाउद्दीन खान की संगीत साधना हवा में तैरता रहती है। मैं सिर्फ शहर नहीं, बल्कि संस्कृति, आस्था और कला का संगम हूं।

अंकिता सिटोके

(लेखिका)

 

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