पुराना इतिहास
देवभूमि उत्तराखंड के देहरादून जिले में स्थित पर्वतीय नगरी मसूरी को पहाड़ों की रानी भी कहते हैं। अपनी भौगोलिक स्थिति और सुकून भरे वातावरण की वजह से यह प्रमुख हिल स्टेशन माना जाता है। मसूरी हिमालय पर्वतमाला के मध्य हिमालय श्रेणी में आता है, जिसकी ऊंचाई लगभग 6,500 फुट है। मसूरी का इतिहास करीब 150 साल से भी पुराना है। 1825 में ब्रिटिश आर्मी के कप्तान यंग ने इस जगह की खोज की थी और यहां उन्होंने अपना घर बनाया था। तब से यह स्थल ‘समर कैपिटल’ नाम से भी जाना जाता है।
अफसरों की ट्रेनिंग
मसूरी की प्रसिद्धि यहां स्थित लालबहादुर शास्त्री नेशनल अकादमी ऑफ एडमिनिस्ट्रेशन के नाते भी है। यहां भारतीय प्रशासनिक सेवा और अन्य सेवाओं के अफसरों को ट्रेनिंग दी जाती है। मेरी मसूरी की याद अकादमी से ही जुड़ी हुई है। मैं 11–12 साल का था और गर्मी की छुट्टियों में सपरिवार मसूरी घूमने गया था। तब पिताजी विशेष रूप से अकादमी दिखाने ले गए थे। उस वक्त मुझे ठीक से पता भी नहीं था की आइएएस और आइपीएस क्या होता है और एलबीएसएनएए क्या है। उन्होंने कहा कि “देखो बेटा तुम्हें भी एक दिन बड़े होकर यहीं आना है और आइएएस बनना है।” मैंने अकादमी को अंदर जाकर देखने की जिद भी की थी पर वहां जाने की इजाजत सिर्फ अफसरों को थी। पिता ने कहा, जब अफसर बन जाओगे तब अंदर चले जाना। अफसर बनकर अकादमी के अंदर जाने का ख्वाब लिए मैं वहां से चला आया।
चाय की वह दुकान
मैं अब तक चार-पांच बार मसूरी जा चुका हूं। अब मसूरी से मानो प्यार हो गया है। ऐसा लगता ही नहीं कि मसूरी मेरे लिए अनजान है। विशेष रूप से पिक्चर पैलेस बस स्टैंड के पास चाय की वह दुकान और वहां काम कर रहे दंपती, जिनका प्रेम और आदर मेरी यादों को और भी निखार देता है। किशोरावस्था में मुझे पहली बार मसूरी जाने का मौका तब मिला था, जब मैं ग्रेजुएशन के दूसरे वर्ष में था। दिल्ली से देहरादून और फिर देहरादून से उत्तराखंड स्टेट ट्रांसपोर्ट की बस से मसूरी तक का सफर बड़ा सुहाना था। देहरादून से मसूरी लगभग 25 किलोमीटर की ऊंचाई पर है। सड़क अच्छी है इसलिए यह हसीन सफर एक घंटे में ही कैसे पूरा हो जाता है, पता ही नहीं चलता। स्टेट ट्रांसपोर्ट की बस सुबह 6 बज कर 55 मिनट पर पहुंची, उस वक्त तक सूर्योदय भी नहीं हुआ था और सन्नाटा पसरा था। गर्म कपड़े पहनने के बावजूद, बर्फीली हवा बदन को कंपकंपाते हुए गुजर रही थी। तभी कानों में भजन की आवाज गूंजी। पीछे मुड़ कर देखा, तो चाय की एक दुकान में बूढ़े दंपती काम कर रहे थे। आंटी चाय बना रही थीं और अंकल बोरसी सुलगा रहे थे। रेडियो पर राम भजन चल रहा था।
धीमी रफ्तार और सुकून
पहाड़ी लोगों की जिंदगी धीमी और बड़े सुकून की होती है। पहाड़, पेड़ों और मनमोहक वातावरण के बीच न तो उन्हें शहर के लोगों की तरह दफ्तर की चिंता होती है और न ही हड़बड़ी और चिड़चिड़ापन। इसलिए शायद उनके पास मानसिक शांति होती है और मिजाज काफी मुलायम, जो आपका मनमोह लेता है। आप यहां आएं, तो गन हिल, कंपनी गार्डन, केम्प्टी फॉल, क्लाउड एंड और ऐसी किसी भी जगह पर जा कर सुकून से बैठ सकते हैं। शांति से बैठिए और एक-एक चीज गौर से देखिए, उससे रू–ब–रू होइए। जैसे, सड़क किनारे बैठा भुट्टा बेच रहा व्यक्ति, सुबह की सन्नाटे भरी सड़क, स्कूल जाता बच्चों का हुजूम, कैंब्रिज बुक स्टोर और मॉल रोड की रौनक।
बॉन्ड, जेम्स नहीं रस्किन
मसूरी जाने की बहुत-सी वजहों में से एक कैंब्रिज बुक स्टोर भी है। यहां हर रविवार मशहूर लेखक रस्किन बॉन्ड आते हैं। संयोग ऐसा रहा कि जिस दिन मैं पहुंचा, वह रविवार का दिन था। सुबह के 10 बज रहे थे, दुकानें खुल ही रही थीं। मैं कैंब्रिज बुक स्टोर गया, तो वहां एक बूढ़े व्यक्ति को काउंटर पर बैठे पाया। वहां शो केस में ढेरों किताबें लगी हुई थीं, जिसमें रस्किन बॉन्ड की किताबों का अलग सेक्शन था। लेकिन पहुंचने के संयोग और मिलने के सुयोग में जरा-सी कमी रह गई। मैंने दुकानदार से पूछा, रस्किन बॉन्ड यहां कितने बजे आएंगे? उन्होंने हंस कर जवाब दिया, “हम रस्किन बॉन्ड की किताबें रखते हैं, उन्हें नहीं।” पता चला उनकी तबीयत खराब है इसलिए वे यहां नहीं आएंगे। मन उदास हुआ लेकिन सोचा, फिर कभी।
अजान की गूंज
सड़क के किनारे दाएं–बाएं नजारे देखते आगे बढ़ रहा था, अचानक मस्जिद से अजान की आवाज कानों में गूंजी। मैं एक मिनट के लिए हैरान हुआ कि अंग्रेजों के बसाए शहर में भी अजान। पता चला, पास ही कुलड़ी बाजार में जामा मस्जिद है। सफेद और हरे रंग की छोटी-सी इमारत। आवाज वहीं से आ रही थी। वहीं किनारे एक चाय की दुकान थी, जहां एक कश्मीरी मौलाना चाय बेच रहे थे। उनके रेडियो पर धीमी आवाज में कव्वाली चल रही थी। पीछे हिमालय पर्वत का नजारा खूबसूरत नजारा था। चाय की चुस्कियों के साथ नजरों को इससे ज्यादा और क्या चाहिए। यही तो घुमक्कड़ी का सुकून है। वापसी के रास्ते में बच्चों का हुजूम मिला, जो कुलड़ी बाजार के सरकारी विद्यालय से लौट रहा था।
(घुमंतू पत्रकार)