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मैगज़ीन डिटेल

शहरनामाः मसूरी

समर कैपिटल वाला शहर

जनादेश ’24 नजरियाः गांव और संविधान की जीत

राहुल गांधी की यात्राओं के दौरान ही सामाजिक न्याय और संविधान के मुद्दे गरमा गए थे

जनादेश ’24/ उभरे नए नेता: नई सियासी पौध

इस आम चुनाव से निकली युवा नेताओं की नई पौध अब पुराने पड़ चुके दरख्तों की जगह लेने को तनकर तैयार खड़ी

जनादेश ’24 / पंजाब: तीन दशक बाद गर्म हवा

हालिया चुनावी परिणामों ने पंजाब के माथे पर शिकन ला दी है, इससे सत्ता-विरोधी लहर के उग्र होने की संभावना

जनादेश ’24/झारखंड: आदिवासी झटका

राज्य में सभी पांच आदिवासी आरक्षित सीटों से खिसकी भाजपा की जमीन, इसी साल होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए भी संकट गहराया

जनादेश ’24 /कश्मीर: खानदान खारिज

बारामुला में इंजीनियर राशिद की जीत और उमर तथा महबूबा की हार के मायने

जनादेश ’24/आवरण कथा/एनडीए सरकार: चौतरफा चुनौतियां

अपने समूचे राजनीतिक करियर के दौरान नरेंद्र मोदी एकतरफा बहुमत की सरकारें चलाने के आदी रहे हैं, ऐसे में गठबंधन की सरकार की राह उनके लिए कई चुनौतियां लेकर आई है, तिस पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की भौंह तनी हुई दिखती है, तो विपक्ष पहले से कहीं ज्यादा मजबूत

जनादेश ’24 /आवरण कथा/नजरियाः मोदी से मोहभंग!

अब लड़ाई सत्ता बचाने या गंवाने से कहीं आगे निकली, संघ और सरकार में घमासान के आसार

जनादेश ’24 /आवरण कथा/इंटरव्यू/कांग्रेस अध्यक्ष: ‘इस अल्पमत सरकार की मियाद एक-दो साल से ज्यादा नहीं’

विपक्ष को एकजुट करने और ‘इंडिया’ ब्लॉक को धार देने में भी अहम भूमिका निभाई

फुटबॉल: देसी रोनॉल्डो की विदाई

गेंद को छकाते हुए मैदान के उस पार ले जाकर छेत्री ने भारत में फुटबॉल को रोमांचकारी बनाया

फिल्म: कान में मंथन

यह सिर्फ प्रचारात्मक फिल्म नहीं बल्कि शोषण को खत्म करने की सरकारी पहल की मुश्किलों को सामने लाती है

सप्तरंग

ग्लैमर जगत की खबरें

नीट घोटाला: नई सरकार, पुरानी ‘लीक’

सरकार कमजोर हो चाहे मजबूत, परचे लीक होना शाश्वत सच बन चुका है, केंद्र में नई सरकार बनते ही नीट-यूजी के घोटाले का साया उसके सिर पर है और लाखों युवाओं की मेहनत दांव पर

पुस्तक समीक्षाः इंसानी तबाही का सामाजिक दस्तावेज

छह खंडों में छपी करीब सवा दो सौ पन्नों की इस किताब में प्रकाशित लेख हमारे समय और भविष्य का दस्तावेज हैं

प्रथम दृष्टि: ईवीएम पर सवाल!

आज के दौर में अगर चुनावी प्रक्रिया को किसी भी तरह से और बेहतर किया जा सकता है तो सभी दलों की सहमति से उसे जरूर किया जाना चाहिए, लेकिन बिना किसी पुख्ता सबूत के पूरी प्रक्रिया पर ही प्रश्नचिन्ह खड़ा करना उचित नहीं

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