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शहरनामा: मुजफ्फरनगर

गन्ने का कटोरा
यादों में शहर

चीनी का कटोरा

नाम भले ही मेरा मुजफ्फरनगर है लेकिन मुझे सब लोग ‘शुगर बाउल ऑफ इंडिया’ के नाम से जानते हैं। यह मेरे नाम का झगड़ा नहीं है, यह तो मेरी पहचान का सवाल है। यहां गन्ने की खेती खूब होती है और मेरे गन्ने के खेतों की मिठास ने मुझे ये दूसरा नाम दिलाया है। किसान कहते हैं कि मैं उनकी मेहनत की मिठास हूं, व्यापारी कहते हैं कि मैं उत्तर भारत का व्यापारिक केंद्र हूं। हर कोई अपने हिसाब से मुझे देखता है, पर मैं तो बस एक शहर हूं, जो हर दिन नई पहचान गढ़ता है।

इतिहास और पहचान

मेरे बनने की कहानी 1633 से शुरू होती है, जब मुगल सिपहसालार मुजफ्फर खान ने मुझे बसाया और अपना नाम दिया। हां, उससे पहले भी यहां सभ्यता थी, मगर मुजफ्फर खान के बाद ही मैं नक्शे पर आया। उसके बाद से मैं कई राजाओं, नवाबों और हुक्मरानों के दौर देख चुका हूं। अंग्रेजों का शासन देखा, स्वतंत्रता संग्राम का हिस्सा बना और फिर देश के विकास का साक्षी बना। 1857 की क्रांति में मेरे वीरों ने भी अपना योगदान दिया। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान मेरे लोगों ने कई आंदोलन किए और कई बार अंग्रेजों से टकराए।

मिठास और मिठास

गन्ने की बात न करूं, तो अधूरा लगेगा। मेरे खेतों में उगने वाला गन्ना पूरे देश में सबसे मीठा माना जाता है। यहां की शुगर मिलें मेरे जीवन की धड़कन हैं। चाहे आप गन्ने का रस पी रहे हों, गुड़ बना रहे हों या चीनी खा रहे हों—संभव है कि वह मेरे सीने पर ही उगा हो। किसान सुबह-सुबह खेतों में गन्ना काटते हैं, बैलगाड़ियों में लादते हैं, और फिर ये सफर मिल तक जाकर पूरा होता है। सर्दियों में गुड़ की भट्ठियों से उठती खुशबू तो बस पूछिए मत, पूरा शहर इससे महक उठता है। मेरे यहां की गुड़ मंडियां पूरे उत्तर भारत में प्रसिद्ध हैं, जहां तरह-तरह के गुड़ और उससे बने उत्पाद बेचे जाते हैं।

गंगा-जमुनी तहजीब

मेरी गलियों में जब घूमेंगे, तो महसूस करेंगे कि यहां हर भाषा, हर संस्कृति का संगम है। हिंदू-मुस्लिम, सिख-ईसाई सब साथ रहते हैं, मिलकर त्योहार मनाते हैं। यहां की ईद भी खास होती है, और होली का रंग भी। हर संस्कृति से सराबोर है यहां का माहौल। रतौल का आम दुनिया भर में मशहूर है और यहां की बिरयानी की खुशबू दूर-दूर तक जाती है। इसके अलावा, यहां की कांवड़ यात्रा भी प्रसिद्ध है, जहां हजारों श्रद्धालु शिवभक्ति में डूबे नजर आते हैं। रामलीला का आयोजन भी यहां बहुत धूमधाम से होता है, जहां हर साल दूर-दूर से कलाकार आते हैं।

मिजाज मौसम का

मौसम यहां थोड़ा तुनकमिजाज है। गर्मियों में सूरज जैसे आग उगलता है, तो सर्दियों में कोहरे की चादर ओढ़ लेता हूं मैं। जब बारिश होती है, तो मेरी गलियां भींगकर और खूबसूरत हो जाती हैं। खेतों में हरियाली छा जाती है, और गन्ने के पौधे हवा में झूमने लगते हैं। सर्दियों की सुबहें खास होती हैं, जब धुंध भरी गलियों में चाय की चुस्कियां और गर्म पराठों की महक चारों तरफ फैल जाती है।

शिक्षा और व्यापार

मुझे व्यापारिक शहर भी कहा जाता है। मेरी मंडियों में रोज लाखों का कारोबार होता है। गल्ला मंडी हो, सर्राफा बाजार हो या फिर कृषि बाजार—हर जगह हलचल बनी रहती है। मेरी धरती व्यापारियों के लिए किसी स्वर्ग से कम नहीं। शिक्षा के क्षेत्र में भी मेरा योगदान कम नहीं है। छोटे-बड़े कॉलेज, स्कूल, और विश्वविद्यालय मेरे दामन में बसे हैं, जहां से बच्चे पढ़-लिखकर बड़े सपने देखते हैं। चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय से जुड़े कई कॉलेज यहां के छात्रों को शिक्षा प्रदान कर रहे हैं।

रेवड़ी का स्वाद

मुजफ्फरनगर आएं और कुछ बिना खाए निकल जाएं, तो यहां आने का क्या मजा। यहां की बालूशाही, गुड़ की रेवड़ी, गर्मागर्म छोले-भटूरे और पुरानी दिल्ली की तरह गलियों में बिकने वाला मुगलई खाना आपके स्वाद को यादगार बना देगा। यहां की प्रसिद्ध लस्सी और मलाईदार रबड़ी की मिठास आपको बार-बार आने पर मजबूर कर देगी। सर्दियों में यहां की गजक और तिल पट्टी का स्वाद अनोखा होता है। सुबह के नाश्ते में गेहूं-चने की रोटी, मक्‍खन और चटनी की महक हर घर से आती है। सर्दियों में सरसों का साग और मक्के की रोटी हर किसी की पसंद होती है। शादी-ब्याह में यहां के खास पकवान जैसे दाल बाटी चूरमा और भरवां बैंगन भी परोसे जाते हैं।

संस्कृति और परंपराएं

यहां हर धर्म और हर परंपरा समेटी हुई है। सालाना लगने वाला गन्ना महोत्सव किसानों के लिए किसी पर्व से कम नहीं होता। नगर पालिका मैदान में लगने वाला दशहरा मेला हजारों लोगों को आकर्षित करता है। संगीत और नृत्य की भी समृद्ध परंपरा यहां मौजूद है। शादियां भी भव्य होती हैं। पारंपरिक बैंड-बाजे, घुड़ चढ़ी और बारातों की रौनक देखते ही बनती है। यहां की शादियों में मुगलई और पंजाबी व्यंजन का खासा प्रभाव देखने को मिलता है।

यातायात और विकास

मुजफ्फरनगर को नई सड़कों, शॉपिंग मॉल और रियल एस्टेट प्रोजेक्ट ने आधुनिक शहरों की कतार में ला खड़ा किया है। रेलवे और हाइवे नेटवर्क ने दिल्ली और लखनऊ जैसे प्रमुख शहरों से जोड़ा है। सड़क किनारे ढाबों पर असली देसी स्वाद मिलेगा, जहां चूल्हे पर बनी रोटियां और तंदूरी व्यंजन हर  जुबान पर रहते हैं। शहर तो मैं वही हूं, जो कल था, मगर हर दिन खुद को नया बना रहा हूं।

प्रतीक वर्मा

(शौकिया लेखक)

 

 

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