आस्था का नाम बेतवा
जटाधारी साधु-संतों, घंटों की मधुर आवाज। श्रीराम के पवित्र नाम के जयघोष के मध्य से प्रवाहित होती मोक्षदायनी, शीतल मनोहारी बेतवा के तट पर बसा छोटा-सा कस्बा। इसकी स्थापना रूद्र प्रताप सिंह बुंदेला ने इसी नाम के राज्य की राजधानी के रूप में 1501 के बाद की थी। ओरछा बुंदेलखंड क्षेत्र में बेतवा नदी के किनारे बसा हुआ कस्बा है। यह टीकमगढ़ से 80 किलोमीटर और उत्तर प्रदेश राज्य की झांसी जिले से 15 किलोमीटर दूर है। बेतवा नदी इस स्थान से सात धाराओं में विभाजित हो जाती है, जिसे सतधारा भी कहा जाता है।
राज राम की नगरी
बुंदेलखंड क्षेत्र के तत्कालीन शासक मधुकर शाह विष्णु के स्वरूप श्रीकृष्ण और पत्नी महारानी गणेश कुंवर रामभक्त थीं। दोनों पति-पत्नी में इस बात की होड़ थी कि दोनों के आराध्य में सर्वश्रेष्ठ कौन है? किंवदंती है कि महाराज मधुकर शाह ने अपनी महारानी गणेश कुंवर से कृष्ण दर्शन के लिए वृंदावन चलने का आग्रह किया। लेकिन महारानी ने महाराज के प्रस्ताव को ठुकरा दिया। नाराज मधुकर शाह ने कहा, ‘‘अगर आप अपने आराध्य की इतनी बड़ी भक्त हैं, तो उन्हें अयोध्या से ओरछा लेकर आएं। तभी मैं आपकी सच्ची भक्ति और आपके ईश्वर की शक्ति मानूंगा।’’ महारानी ने यह चुनौती सहज स्वीकार कर ली। महारानी गणेश कुंवर ने 21 दिनों तक अपने आराध्य भगवान राम की तपस्या की। लेकिन भगवान राम उनकी तपस्या से नहीं पिघले। महारानी धीरे-धीरे निराश होने लगीं। एक तरफ पति के द्वारा दी गई चुनौती, दूसरी तरफ आराध्य के प्रति आस्था। वे दोनों के बीच फंस कर रह गई थीं। निराश होकर उन्होंने अयोध्या में बहती सरयू नदी की निर्मल धारा में छलांग में लगा दी। सरयू के पावन जल में उन्हें भगवान श्रीराम की मूर्ति प्राप्त हुई। महारानी ने भगवान राम से ओरछा चलने का आग्रह किया। भगवान श्रीराम उनके इस आग्रह को सुन मुस्कुरा पड़े। वे उनके साथ चलने को तैयार भी हो गए। लेकिन उन्होंने भी महारानी के सामने एक शर्त रखी, जिसे सुन महारानी तैयार हो गईं। भगवान राम चाहते थे कि पुष्य नक्षत्र के दिन अयोध्या से ओरछा के लिए निकलेंगे और जहां उन्हें एक बार विराजमान कर दिया जाएगा, वहां से वह दोबारा नहीं उठेंगे। महारानी ने उनकी दोनों शर्तें स्वीकार कर ली। महारानी की इच्छा थी कि भगवान राम की मूर्ति की स्थापना नए बन रहे मंदिर चतुर्भुज मंदिर में की जाए। लेकिन यात्रा की थकान से शरीर बेहाल था और चतुर्भुज मंदिर अभी मूर्ति स्थापित करने हेतु पूर्ण रूप से तैयार भी नहीं था। उन्होंने भगवान राम के विग्रह को महल में रख दिया। महारानी भगवान राम के कह गए कथन को भूल गईं थीं। भगवान राम अपनी शर्त के अनुसार वहीं स्थापित हो गए। लोगों ने बहुत प्रयास किया पर वह मूर्ति को उठा नहीं पाए और चतुर्भुज मंदिर में भगवान को स्थापित करने की महारानी की इच्छा अधूरी रह गई। भगवान वहां स्थापित हो गए, तो महाराज और महारानी ने महल छोड़ दिया और महल को मंदिर में बदल दिया गया।
वीआइपी राम राज
ओरछा में भगवान राम से बड़ा कोई भी नहीं है। अगर इस क्षेत्र में कोई वीआइपी है, तो वह स्वयं राजा रामचंद्र हैं। मध्य प्रदेश पुलिस के जवानों रोज उन्हें सूर्यास्त और सूर्योदय के समय बंदूकों की सलामी अर्थात गॉड ऑफ ऑनर देते हैं। ओरछा में गॉड ऑफ ऑनर भगवान राम के सिवा किसी और को नहीं दिया जाता। कुछ लोगों का ऐसा भी कहना है कि त्रेता युग में राजा दशरथ अपने पुत्र श्रीराम का राज्याभिषेक नहीं कर सके थे ऐसे में बुंदेलखंड के राजा मधुकर शाह ने अपने कर्तव्य का निर्वाह करते हुए राजा रामचंद्र का राज्याभिषेक किया और अपना संपूर्ण राजपाट श्रीराम के चरणों में सौंप दिया। यह परंपरा आज भी निर्विघ्न चली आ रही है।
चतुर्भुज मंदिर
इस मंदिर का निर्माण भगवान राम की मूर्ति की स्थापना के लिए किया गया था पर यह संभव नहीं हो सका। अब इसमें राधा-कृष्ण की एक छवि देखने को मिलती है। उल्लेखनीय है कि इस मंदिर में बहुत ऊंची वायु मीनारें बनी हुईं हैं, जिनसे पुराने जमाने में मौसम की जानकारी ली जाती थी।
बाजार और छतरियां
यहां का बाजार स्थानीय कलाकृतियों से भरा रहता है। यहां बुंदेलखंड में बनने वाली कलाकृतियां सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है। डोकरा की धातु की कलाकृतियां, गढ़ा लोहे की वस्तुएं, सजावटी सामान इत्यादि आकर्षक का केंद्र हैं। यहां पर्यटकों की वजह से हमेशा भीड़ रहती है और बहुत ही उम्दा क्वालिटी का सामान मिलता है। बुंदेला राजाओं की कुल मिलाकर 15 छतरियां हैं, जो बेतवा नदी के किनारे स्थित हैं। छतरियां वास्तव में स्मारक या समाधि स्थल हैं, जहां राज परिवार के लोगों का अंतिम संस्कार किया गया है। आकार और स्थापत्य कला की दृष्टिकोण से राजा वीर सिंह की छतरी सबसे ज्यादा आकर्षक है। यूनेस्को की आधिकारिक घोषणा के बाद ओरछा भारत का एकमात्र राज्य संरक्षित विश्व धरोहर स्थल बन जाएगा।
(लेखिका)