Advertisement
22 जुलाई 2024 · JUL 24 , 2024

शहरनामाः पहलेजा घाट

पहलेजा घाट के इतिहास को अगर ढूंढा जाए, तो यह मौर्य और गुप्त काल के समय से दिखाई देता है
यादों में शहर

वीरों की भूमि

बिहार के सारण जिले में सोनपुर शहर से लगभग 11 किलोमीटर की दूरी पर गंगा नदी के तट पर स्थित पहलेजा घाट आस्था का केंद्र है, जो अपने आप में प्राचीनता और आधुनिकता को समेटे चलता है। पहलेजा घाट के इतिहास को अगर ढूंढा जाए, तो यह मौर्य और गुप्त काल के समय से दिखाई देता है। यह वीरों की भूमि होने के साथ-साथ धार्मिक और पौराणिकता का इतिहास भी समेटे हुए हैं। पहलेजा घाट में आज भी उन चिन्हों के दर्शन हो जाते हैं, जिसकी पहचान मगध की राजधानी पाटलिपुत्र के रूप में है।

कभी थी लाइफ लाइन

आज से लगभग 40 साल पहले पहलेजा घाट से स्टीमर चलते थे, जो महेंद्रूघाट (पटना) तक जाते थे। एक तरह से उत्तर से दक्षिण बिहार को जोड़ने का सबसे बड़ा साधन पहलेजा घाट से चलने वाले स्टीमर ही थे। साल 1982 के बाद गंगा में पुल (गांधी सेतु) बन जाने पर रेलवे के स्टीमर और प्राइवेट नाव की सेवा बंद हो गई। स्टीमर सेवा बंद होने जाने के कारण इस ऐतिहासिक घाट की रौनक समाप्त हो गई। कभी हजारों की संख्या में पहुंचने वाले यात्री-व्यापारी इस घाट की रौनक बढ़ाते थे। इससे हजारों व्यक्तियों को रोजगार मिलता था। व्यापारियों का यह प्रमुख अड्डा था। दूसरे प्रदेश के लोग और व्यापारी भी इस घाट पर बड़ी संख्या में पहुंचते थे। पुल बन जाने के बाद यह घाट वीरान दिखाई देता है। पहलेजा घाट बेशक काफी बड़ा न हो लेकिन अपने समय में उसने कई बड़े नगरों की भीड़भाड़ को पीछे छोड़ रखा था।

सावन का मेला

बाबा देवघर के झारखंड में चले जाने के बाद बाबा हरिहरनाथ (सोनपुर) तथा बाबा गरीब नाथ (मुजफ्फरपुर) शिव भक्तों का श्रावणी मास में सबसे बड़ा तीर्थ स्थल बन गया है। इस अवसर पर भगवान शिव के विग्रह पर जल अर्पण के लिए राज्य के विभिन्न जिलों से बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहलेजा घाट पहुंचतेे हैं। पहलेजा घाट पर गंगा नदी की धारा दक्षिणी मुखी है, जिसका पौराणिक और धार्मिक महत्व है। इस महत्व को लेकर सावन मास में लाखों की संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ मेले में पहुंचती है। पूरा घाट बम-बम भोले के नारे से गूंज उठता है। सावन में घाट पर मेले जैसा उत्सव दिखाई देता है, लगभग एक महीने तक रहता है।

कार्तिक छठ

इस समय घाट की रौनक देखते ही बनती है। घाट दुल्हन की तरह सजाया जाता है। सांध्य अर्घ्य के बाद व्रती घाट पर रुकते हैं। इससे घाट की रौनक अद्भुत आध्यात्मिकता और पवित्रता का संगम प्रस्तुत करती है। कार्तिक छठ करने के लिए दूर-दराज के क्षेत्र से भी लोग यहां पहुंचते हैं। यहां कार्तिक छठ का नजारा इतना अद्भुत होता है कि यह पटना के विभिन्न घाटों को टक्कर देता है। कार्तिक छठ भीड़ को देखते हुए उसे अब ‘मिनी पटना घाट’ भी कहा जाने लगा है। इस समय इस पौराणिक स्‍थल की ओर दूर-दराज से लोग शांति और शुकून की तलाश में आ जुटते हैं।

राम जानकी मंदिर

राम जानकी मंदिर यहां का सबसे बड़ा आध्यात्मिक पर्यटक स्थल है। यहां के लोगों में राम जानकी मंदिर की प्रति अद्भुत आस्था है। सावन और कार्तिक महीने के मेले के समय इस मंदिर में श्रद्धालुओं का जमावड़ा लगा रहता है। भगवान राम और माता सीता को समर्पित राम जानकी मंदिर सिर्फ मंदिर ही नहीं, बल्कि कई सामाजिक-आर्थिक कल्याण का केंद्र भी है। राम जानकी मंदिर की ओर से छोटे स्तर का विद्यालय भी चलाया जाता है।

बाजार और व्यंजन

पहलेजा घाट बाजार यहां का प्रमुख आर्थिक केंद्र है, जहां पर दुकानों की लंबी लाइन देखने को मिलती है। कपड़ों से लेकर खाने-पीने तक की कई दुकानें यहां हैं। पहलेजा घाट के अंदर कई साप्ताहिक बाजार भी लगते हैं। सावन और कार्तिक के मेले के समय इन बाजारों की रौनक काफी बढ़ जाती है। यहां के प्रसिद्ध व्यंजनों में समोसा-चटनी, जलेबी, भूजा-चाट, चमचम आदि हैं। इसके अलावा चने का सत्तू और लिट्टी-चोखा भी पहलेजा घाट के बाजार में भोजनप्रेमियों को लुभाता है। स्थानीय स्तर पर व्यंजन की दुकानों पर हमेशा चहल-पहल देखने को मिलती है।

उपेक्षा का शिकार

सम्राट अशोक के समय से ही प्रसिद्ध यह घाट अपने आप में ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व रखता है। यहां भक्ति और आस्था दोनों का अनोखा संगम होता है। इतना सब होने के बावजूद आज तक उसे धार्मिक पर्यटन का दर्जा नहीं मिला है। घाट पर बुनियादी सुविधाओं का बड़े स्तर का अभाव दिखाई देता है, जिससे दूसरे प्रदेशों के पर्यटक यहां आने से कतराते हैं। अगर यहां भी अन्य धार्मिक स्थलों की तरह सुविधाएं हो जाएं, तो यह देश के मानचित्र पर अपनी अलग पहचान बना लेगा। पुराने स्वरूप को लौटाने में यह बड़ा योगदान होगा।

(शिक्षक)

 

Advertisement
Advertisement
Advertisement