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5 फरवरी 2024 · FEB 05 , 2024

शहरनामा: रतलाम

सेंव-सोने की नगरी
यादों में शहर

रत्नपुरी से रतलाम

मध्य प्रदेश के उत्तर पश्चिमी भाग का यह सुंदर शहर 1652 में बस गया था। राजा रतनसिंह ने अपने पुत्र राम सिंह के नाम पर इसका नाम रतराम रखा था, जो बाद में रतलाम हो गया। रतलाम को रत्नपुरी भी कहा जाता था। स्वाभिमानी और वीर राजा रतन सिंह ने जोधपुर के महाराजा जसवंत सिंह के साथ मिलकर औरंगजेब के विरुद्ध युद्ध भी लड़ा था। युद्ध के समय जसवंत सिंह जब घायल हो गए, तो बड़े-बड़े सूबेदार उनका साथ छोड़कर औरंगजेब के साथ हो गए थे। तब राजपूतों ने महाराज को युद्ध से निकालकर मारवाड़ भेजने का निश्चय किया। युद्ध की बागडोर राजा रतन सिंह ही संभाल रहे थे। उन्हें वहां से निकाला जाता उससे पहले ही राजा रतन सिंह वीरगति को प्राप्त हो गए। रतलाम के पहले राजा होने का गौरव उन्हें ही प्राप्त है। दरअसल राजा रतन सिंह काबुल, कंधार में सम्राट के लिए फारसियों से लड़े थे। उनकी वीरता से खुश होकर राजपूताना और मालवा का एक बड़ा क्षेत्र सम्मानपूर्वक उन्हें प्रदान किया गया था। रतलाम उसी का एक हिस्सा था।

रेल-सेंव नगरी

यह शहर पश्चिम रेलवे का प्रशासनिक मुख्यालय है। 1947 में स्वतंत्रता के बाद यह मुख्यालय बनाया गया था। यहां का रतलामी नमकीन देश ही नहीं, बाहर के देशों में भी प्रसिद्ध है। यहां की सेंव में इतने प्रयोग किए जाते हैं कि खरीदने वाला चकरा जाए। जैसे, यहां काली मिर्च की सेंव, लौंग की सेंव तो है ही डबल लौंग की सेंव के दीवाने भी कम नहीं हैं। लहसुन, टमाटर, आलू, पालक हर स्वाद में यहां सेंव मिलती है। यहां सेंव का सालाना व्यापार करोड़ों में होता है। यहां के लोगों की एक प्रसिद्धि भोजन प्रेमी की भी है। पोहा-जलेबी तो यहां का प्रसिद्ध नाश्ता है ही, मगर यहां के दाल-बाफले का कोई तोड़ नहीं।

आस्था का संगम

मंदिरों की इस शहर में कोई कमी नहीं है। शहर का प्रमुख मंदिर कालिका माता मंदिर है। मंदिर के गर्भ ग्रह में मध्य काली माता की प्रतिमा के एक ओर चामुंडा, दूसरी ओर दक्षिणावर्ती सूंड वाले गणपति जी विराजित है। यह मंदिर रतलाम के राजवंश की कुलदेवी का मंदिर है। चांदी से मढ़े द्वार अभी भी उस गौरवशाली इतिहास के साक्षी हैं, जिन पर कृष्ण, काली, हनुमान, राम, सरस्वती और गणपति की प्रतिमा उत्कीर्ण है। कालिका माता क्षेत्र में हर वर्ष शारदीय नवरात्रि में 9 दिवसीय भव्य मेले का आयोजन किया जाता है।

अष्टकोणीय तालाब

मंदिर के सामने ही अष्टकोणीय झाली तालाब है। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान रतलाम के तत्कालीन महाराजा सज्जन सिंह ने सफलता का अनुष्ठान इसी तालाब के किनारे किया था। राजा रणजीत सिंह की पहली पत्नी महारानी राजकुंवर झाली की स्मृति में 15 जनवरी 1883 इस तालाब का निर्माण कराया गया था। 52 सीढ़ियों और 86 फुट गहरे लाल-गुलाबी पत्थरों से तराशे गए इस तालाब की ऐतिहासिक-धार्मिक आस्था के केंद्र के रूप में पहचान है। यहां एक चर्च भी है, जिसका निर्माण 1879 में हुआ था।

बावड़ियों की भरमार

रतलाम से 24 किलोमीटर दूर विंध्य पर्वतमालाओं में सैलाना शिवगढ़ मार्ग पर दो सौ साल प्राचीन केदारेश्वर महादेव का मंदिर है। स्थापत्य की दृष्टि से यह मंदिर बेजोड़ है। शिवलिंग के सामने बहता झरना, पार्श्व में उमा महेश्वर और गणपति की मूर्ति इस मंदिर को अलौकिक सौंदर्य देती है। बारिश में इसकी खूबसूरती देखते ही बनती है। रतलाम-बांसवाड़ा मार्ग पर शहर से 3 किलोमीटर दूर सिद्ध धर्म स्थल बरबड़ हनुमान जी के मंदिर के साथ ही इस शहर में कुंओं, बावड़ियों की भरमार है। इसे कुओं-बावड़ियों का शहर भी कह सकते हैं। दो मुंह की बावड़ी, केल बावड़ी, भोयरा बावड़ी, शेखावत की बावड़ी, हकीमवाड़ा, शंभू सिंह की बावड़ी, कोर्ट परिसर की कालिका माता मंदिर बावड़ी जैसी अनेक बावड़ी यहां हैं।

कैक्टस गार्डन

अगर आपकी कल्पना में भी छोटे-छोटे कैक्टस हैं, तो यहां आइए और अपने से दस गुना ऊंचे कैक्टस देखिए। सैलाना महाराज द्वारा बनवाया गया यह कैक्टस गार्डन पूरे एशिया में प्रसिद्ध है। छोटे-छोटे से लेकर बड़े कैक्टस बहुत खूबसूरत हैं। यहां के विशालकाय कैक्टस देखते ही बनते हैं। गार्डन के पीछे दिखते महल की झलक इन कैक्टस की खूबसूरती को और रहस्यमय बनाती है।

सोना और चांदी

रतलाम का सोना यानी 100 टका शुद्ध। रतलाम को सोने या सेंव की नगरी कहना सबसे ठीक है। यहां के सराफा बाजार को मालवा की सबसे बड़ी सराफा मंडी होने का गौरव प्राप्त है। शहर के सराफा बाजार में लगभग 300 से ज्यादा दुकानें हैं, जहां प्रतिदिन करोड़ों रुपये का व्यापार होता है। आभूषणों के मामले में रतलाम के स्वर्ण आभूषणों को सारे देश में विश्वास प्राप्त है। महाराज सज्जन सिंह के समय से ही यहां स्वर्ण आभूषणों की अनेक श्रेणियां थीं। उस समय यहां हर तरीके के जड़ाऊ आभूषण, जिसमें तरह-तरह के रत्न, नग हीरा-पन्ना, माणिक, मूंगा, मोती, पुखराज, गोमेद, लहसुनिया आदि जड़े होते हैं मिलते थे। अब ऐसे जेवर चलन से बाहर हो गए हैं। अब कुछ शौकीन लोग ही इस तरह के आभूषण बनवाते हैं। रतलाम के सुनार सोने के आभूषणों पर एक विशेष प्रकार की छाप लगाते हैं, जो यहां की विश्वसनीयता की पहचान है। तो आप कब आ रहे है शुद्ध सोने की नगरी में नमकीन खाने?

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(लेखक)

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