मजबूरी का नाम दिया जाए या जानबूझ कर लिया गया फैसला, वजह जो भी रही हो लेकिन हकीकत यही है कि मध्य प्रदेश के मंत्रिमंडल विस्तार में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने अपने ही दल के पुराने साथियों को नाराज कर लिया है। ताजा विस्तार में ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थकों को ही जगह मिल पाई है। भाजपा के विधायकों का मंत्री पद के लिए इंतजार लंबा हो गया है। विस्तार में जगह न मिलने की टीस भी सोशल मीडिया पर दिखने लगी है। पूर्व मंत्री और विधायक अजय विश्नोई ने ट्वीट किया, “महाकौशल और विंध्य अब फड़फड़ा सकते हैं उड़ नहीं सकते। महाकौशल और विंध्य को अब खुश रहना होगा... खुशामद करते रहना होगा।”
जाहिर है नाराजगी गहरी है और इस दबाव का असर शिवराज की कार्यशैली पर भी दिखने लगा है। सामान्य तौर पर सहज दिखने वाले मुख्यमंत्री सख्त बयान देने लगे हैं। मसलन उन्होंने होशंगाबाद में एक कार्यक्रम में सभी तरह के माफियाओं को चेतावनी देते हुए कहा “गड़बड़ी करने वाले प्रदेश छोड़ कर चले जाएं वरना उन्हें जमीन में 10 फुट नीचे गाड़ दिया जाएगा।”
लंबी जद्दोजहद के बाद मंत्रिमंडल का जो विस्तार हुआ है, उसमें सिंधिया का दबाव साफ दिख रहा है। नए विस्तार में सिंधिया समर्थक तुलसी सिलावट और गोविंद सिंह राजपूत को मंत्री बनाया गया है, जबकि मंत्रिमंडल में चार पद खाली थे। इसके बावजूद भाजपा के विधायकों को मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिल पाई।
भाजपा के लोगों को जगह न मिल पाने की बड़ी वजह, शिवराज का अपने समर्थकों को मंत्री बनाने के लिए आलाकमान को राजी न कर पाना रहा है। इस वजह से पार्टी के ऐसे विधायकों में ज्यादा नाराजगी है, जिनकी उम्र हो चली है और उन्हें अभी तक एक बार भी मंत्री बनने का मौका नहीं मिला है। शिवराज की इस मजबूरी पर अब कांग्रेस भी चुटकी ले रही है।
कांग्रेस ने शिवराज पर हमला करते हुए उन्हें असहाय और कमजोर मुख्यमंत्री तक कह दिया है। उपचुनाव में तीन मंत्रियों के हार जाने और छह महीने की अवधि में विधायक न बन पाने के कारण दो मंत्रियों के त्यागपत्र के बाद मंत्रिमंडल में कुल छह स्थान खाली हो गए थे। इसको देखते हुए तय माना जा रहा था कि मंत्रिमंडल विस्तार होगा। इसके साथ ही तुलसी और राजपूत का मंत्री बनना भी तय था। लेकिन अन्य खाली चार पदों पर भाजपा के पुराने और वरिष्ठ लोगों को मंत्री बनाए जाने की संभावना थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इसमें सबसे प्रबल दावेदारों में राजेन्द्र शुक्ला, रामपाल सिंह, अजय विश्नोई, यशपाल सिसोदिया, चेतन कश्यप, गिरीश गौतम, गौरीशंकर बिसेन जैसे दिग्गज शामिल थे।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के ऐसा करने के पीछे कई तर्क दिए जा रहे है। कांग्रेस की माने, तो सारे निर्णय दिल्ली से लिए जा रहे हैं, शिवराज सिंह उस पर केवल अमल करते हैं। कांग्रेस प्रवक्ता नरेन्द्र सलूजा का कहना है कि भाजपा के लोगों को मंत्री न बनाए जाने से स्पष्ट है, शिवराज सिंह असहाय और कमजोर मुख्यमंत्री हैं। वे अपने अनुसार मंत्रिमंडल भी नहीं बना पा रहे हैं। उन्हें आयातित और जयचंदों को मंत्री बनाना पड़ रहा है।
दूसरी ओर भाजपा कह रही है कि यह विस्तार नहीं है। यह केवल तकनीकी कारणों से त्यागपत्र देने वाले मंत्रियों को वापस लेने की कवायद है। सिलावट और राजपूत पहले मंत्री थे। छह महीने के अंदर फिर से विधायक न बन पाने के कारण दोनों ने त्यागपत्र दिया था। उपचुनाव में जीत के बाद दोनों फिर से विधायक बने इसलिए उन्हें मंत्री बनाना था। भाजपा का दावा है कि विस्तार के बाद मंत्री न बन पाने के कारण किसी में कोई नाराजगी नहीं है। भाजपा प्रवक्ता रजनीश अग्रवाल कहते है कि भाजपा के सभी लोग जानते हैं कि राज्य में यह सरकार ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके साथ आए विधायकों की वजह से बनी है, इसलिए उन लोगों को पूरा सम्मान मिलना चाहिए। उनके लोगों को मंत्री बनाए जाने से कोई नाराजगी नहीं है। इसके अलावा अभी मंत्रिमंडल में चार स्थान खाली हैं और उन पर भाजपा के लोगों को ही मंत्री बनाया जाएगा।
जल्द ही मुख्यमंत्री पार्टी के वरिष्ठ लोगों के साथ मिलकर जल्द ही इस पर फैसला करेंगे। पर सभी जानते हैं कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सिंधिया समर्थकों को मंत्री तो बना दिया लेकिन अपने लोगों को शामिल नहीं किया। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इसकी वजह शिवराज सिंह की पसंद के विधायकों को मंत्री न बनाया जाना है। पहले भी जो मंत्रिमंडल बनाया गया था उसमें शिवराज सिंह अपनी पसंद के लोगों को जगह नहीं दिला पाए थे। उन्हें उम्मीद थी कि उपचुनाव में जीत के बाद उनकी पसंद को वरीयता मिलेगी। इस बार भी पार्टी संगठन नए लोगों को ही मंत्री बनाने के पक्ष में है। संगठन उन लोगों को मंत्री बनाना नहीं चाहता, जो लंबे समय मंत्री रह चुके हैं। शिवराज सिंह जिन लोगों को मंत्रिमंडल में रखना चाह रहे थे उसमें राजेन्द्र शुक्ला, रामपाल सिंह और गौरी शंकर बिसेन के नाम हैं। सभी लंबे समय तक मंत्री रह चुके हैं।
शिवराज सिंह का तर्क है कि दावेदारों की संख्या पद से अधिक है। ऐसे में चार खाली पद को भरा गया तो पार्टी में असंतोष बढ़ेगा। इसका असर निकाय चुनावों पर पड़ेगा। निकाय चुनावों के बाद इस बारे में कोई फैसला किया जाएगा। राजनीतिक विश्लेषक कहते है, पिछले मंत्रिमंडल विस्तार में भी शिवराज सिंह ने लंबा समय लिया था। यह उनके काम करने का तरीका है। अपनी पसंद के लोगों को लाने के लिए उन्होंने प्रयास किया, संभव न होने पर मजबूरी में विस्तार करना पड़ा। इस बार भी अपने लोगों को शामिल कराने के लिए वे विस्तार टाल रहे हैं। अब शिवराज के अगले कदम पर सबकी नजर है।
किसानों से डरी सरकार, टला चुनाव
मध्य प्रदेश में सभी राजनीतिक पार्टियां नगरीय निकाय चुनावों की तैयारियां शुरू कर चुकी थी। सभी यह उम्मीद लगाए हुए थीं कि दिसंबर में राज्य निर्वाचन आयोग निकाय चुनावों की घोषणा कर देगा। आयोग ने चुनाव को तीन महीने टालने का आदेश जारी कर दिया। चुनाव टालने की वजह कोरोना के बढ़ते संक्रमण को बताया गया है। आयोग का यह फैसला राजनीतिक दलों से लेकर विश्लेषकों के लिए आश्चर्य भरा था। सूत्रों के अनुसार राज्य निर्वाचन आयोग, चुनाव की पूरी तैयारी कर चुका था। तारीखों की घोषणा करने से पहले राज्य सरकार से भी बात कर ली गई थी। जिस दिन चुनाव टालने का आदेश जारी किया गया उसके तीन दिन पहले तक सभी लोग यही कह रहे थे कि चुनाव की तारीखों की घोषणा जल्द की जाएगी। असल में पार्टी स्तर पर तय करके राज्य सरकार को बताया गया और उसके बाद चुनाव टाल दिए गए। सवाल है आखिर ऐसा क्यों किया गया। चर्चा है कि पार्टी को अंदेशा हो गया था कि दिल्ली में जिस तरह किसान आंदोलन जोर पकड़ता जा रहा है, उससे निकाय चुनावों में भाजपा को नुकसान हो सकता है। किसानों की इसलिए पार्टी अब किसान आंदोलन के समाप्त होने का इंतजार करेगी। दूसरी ओर राज्य भर में नए कृषि कानूनों के पक्ष में जागरुकता अभियान भी चलाया जाएगा।
चुनाव टालने के फैसले को विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने पंचायती राज पर हमला बताया है। कांग्रेस का तर्क है कि जब 28 विधानसभा में उपचुनाव कराए जा सकते हैं, तो निकाय चुनाव क्यों नहीं। उस समय तो कोरोना का संक्रमण अभी के मुकाबले ज्यादा था। कांग्रेस प्रवक्ता भूपेन्द्र गुप्ता कहते हैं बिहार में चुनाव कराए जा चुके हैं, मध्य प्रदेश की 28 सीटों पर विधानसभा में चुनाव हो चुके हैं। बंगाल में हजारों की रैलियां हो रहीं हैं, लेकिन मध्य प्रदेश में स्थानीय चुनावों को रोकने के लिए कोरोनावायरस की दुहाई दी जा रही है। कांग्रेस का कहना है, आयोग ने राजनीतिक पार्टियों को विश्वास में नहीं लिया। आयोग को इस बारे में सर्वदलीय बैठक बुलानी चाहिए। इस बार मध्य प्रदेश में नगरीय निकाय चुनाव रोचक होने वाले थे क्योंकि कांग्रेस पूरी ताकत के साथ लड़ने जा रही थी। केजरीवाल की आम आदमी पार्टी और असुद्दीन ओवैसी की एआइएमआइएम भी मैदान में उतरने की तैयारी कर रही थी।