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कांग्रेस/पंजाब में सिद्धू दांव

सिद्धू को प्रदेश अध्यक्ष की कमान देने से मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर ही नहीं, पार्टी में बड़ा तबका असहज
नवनियुक्त प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सिद्धू का स्वागत करते उनके समर्थक

हाल में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने यह बयान देकर चौंकाया था कि ‘‘जिसे डर लगता है, वह आरएसएस में चला जाए।’’ लेकिन लाख टके का सवाल यह है कि पंजाब में असंतुष्ट नवजोत सिंह सिद्धू को प्रदेश पार्टी की कमान देकर और मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह की बातों को मोटे तौर पर तवज्जो न देकर क्या संकेत दिया गया है। कैप्टन अमरिंदर जैसी मजबूत पकड़ वाले क्षत्रप आज कांग्रेस में थोड़े ही दिखते हैं। फिर, फरवरी 2022 के विधानसभा चुनाव से ठीक छह महीने पहले कांग्रेस आलाकमान की दखल से हुए राज्य पार्टी में बड़े फेरबदल के क्या सियासी मायने हैं? राज्य के सियासी गलियारों में सत्ता-समीकरण में बड़े बदलाव की आंशका घनी हो गई है। सुगबुगाहटें हैं कि सिद्धू के चार कार्यकारी अध्यक्षों की नियुक्ति भी प्रदेश में कैप्टन के समानांतर बी-टीम बनाने की कवायद है। कैप्टन ने पार्टी सुप्रीमो सोनिया गांधी को चिठ्ठी में जाति समीकरणों का हवाला देते हुए लिखा था कि मुख्यमंत्री जट्ट सिख हैं, इसलिए प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष किसी हिंदू या पिछड़े या दलित नेता को बनाया जाना चाहिए। लेकिन आलाकमान का गणित कुछ और ही लगता है।

कैप्टन की दलील थी कि निवर्तमान प्रदेश अध्यक्ष सुनील जाखड़ हिंदू चेहरे के तौर पर सफल हैं और उनकी जगह राज्य कैबिनेट मंत्री विजेंद्र सिंगला और पिछड़े वर्ग से वरिष्ठ नेता लाल सिंह को पार्टी की कमान दी जा सकती है। लेकिन नए बदलाव से कैप्टन अमरिंदर सरकार के चार साल पूरे होने के समय 17 मार्च को जो कांग्रेस अगली पारी के लिए आश्वस्त थी, आज पार्टी कलह से पस्त नजर आ रही है। विरोधी दलों पर भारी पड़ने वाले कैप्टन को कांग्रेस में ही अपने चंद विरोधियों से घिरना मंजूर नहीं। हालांकि सिद्धू की ताजपोशी के आलाकमान के फैसले पर कैप्टन ने हामी भरी दी पर साथ ही तल्ख संदेश भी दिया कि सिद्धू से तब तक नहीं मिलेंगे, जब तक वे उनके खिलाफ बयानबाजी के लिए सार्वजनिक माफी नहीं मांग लेते।

अध्यक्ष पद पर बदलाव का ऐलान 18 जुलाई को हुआ, लेकिन दो दिन पहले से ही सुनील जाखड़ समेत 30 विधायकों से मेल-मुलाकत कर गिले-शिकवे दूर करने की कोशिश करने वाले सिद्धू कैप्टन अमरिंदर से मिलने की हिम्मत नहीं जुटा पाए। 16 जुलाई को जाखड़ के पंचकूला घर पहुंचे सिद्धू ने कहा, ‘‘बड़े भाई के मार्गदर्शन के लिए आए हैं, दोनों की जोड़ी हिट भी रहेगी और फिट भी।’’ लेकिन जाखड़ ने आउटलुक से कहा, ‘‘आलाकमान का इतना विश्वास उन पर है, ये इतने काबिल नेता हैं कि उन्हें मार्गदर्शन की क्या जरूरत है।’’ जाखड़ की प्रतिक्रिया संकेत दे रही है कि आलाकमान का फैसला कहीं तेज कलह की वजह न बन जाए?

यही नहीं, जिन 30 विधायकों से सिद्धू मिलने उनके घर गए, उनमें से दर्जनभर विधायकों ने आउटलुक से बातचीत में कहा, ‘‘अब गले लगने आया। पांच साल पहले भी आलाकमान के रास्ते कांग्रेस के गले पड़ा था, जो आगामी विधानसभा चुनाव में भारी पड़ने वाला है।’’ इन विधायकों का कहना है कि कभी सोनिया गांधी को 'मुन्नी' और राहुल गांधी को 'पप्पू' कहने वाला बड़बोला सिद्धू प्रदेश अध्यक्ष के बाद मुख्यमंत्री की कुर्सी का सपना देख रहा है, यह कैप्टन जैसे परिपक्व नेता का विकल्प कतई नहीं हो सकता। एक नेता ने कहा, ‘‘कांग्रेस ही नहीं, बल्कि पंजाब की जनता को आलाकमान का यह फैसला कितना मंजूर है, यह विधानसभा चुनाव में जनता तय कर देगी।’’

 इसमें दो राय नहीं कि कैप्टन की लोगों पर पकड़ का कोई जवाब नहीं है। उन्होंने 2017 के विधानसभा चुनाव से सालभर पहले बतौर मुख्यमंत्री आखिरी पारी की घोषणा की, तो कांग्रेस को राज्य की कुल 117 में से 77 विधानसभा सीटों पर जीत हुई थी। कहते हैं, अमरिंदर का विकल्प बनने का ख्वाब लेकर सिद्धू विधानसभा चुनाव से एक महीना पहले जनवरी 2017 में भाजपा को छोड़ कांग्रेस में आ गए थे। सिद्धू को यह एहसास जरूर होगा कि तीन दशक तक शिरोमणि अकाली दल से गठबंधन में 23 विधानसभा और तीन लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ने से आगे न बढ़ पाने वाली भाजपा में रहकर पंजाब में कुछ खास नहीं किया जा सकता। सूत्रों के मुताबिक तब प्रियंका गांधी के परिवार से अपनी दोस्ती के बूते सिद्धू कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और राहुल गांधी के करीब आए। कहते हैं, कांग्रेस में सिद्धू को शामिल किए जाते वक्त भी तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कैप्टन अमरिंदर से नहीं पूछा गया था। फिर भी सरकार में उन्हें स्थानीय निकाय जैसे अहम विभाग का मंत्री बनाया। लेकिन सिद्धू के तेवर तीखे बने रहे। आखिर जुलाई 2019 में कैप्टन ने घोषणा की कि 2022 के विधानसभा चुनाव में बतौर मुख्यमंत्री अगली पारी के लिए तैयार हैं।

इसी के साथ कैप्टन ने सिद्धू से स्थानीय निकाय विभाग वापस लेकर उन्हें बिजली मंत्री बना दिया। लेकिन सिद्धू ने बिजली मंत्रालय का प्रभार नहीं लिया और सरकार से अलग हो गए। उसके बाद तो उन्होंने कैप्टन के खिलाफ मोर्चा ही खोल दिया। दो साल तक तक कथित तौर पर वैष्णो देवी के कटरा में एकांतवास में रहे। इस बीच समय-समय पर उनके आम आदमी पार्टी में जाने की खबरें भी आती रहीं। इससे शायद पार्टी आलाकमान पर दबाव बना। 

सूत्रों के मुताबिक, कैप्टन को यह कतई मंजूर नहीं कि सिद्धू को प्रदेश कांग्रेस की कमान सौंपी जाए। प्रदेश कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने आउटलुक से कहा, ‘‘हालांकि 2022 के चुनाव के लिए आलाकमान ने कैप्टन को ही मुख्यमंत्री चेहरा और चुनाव प्रचार अभियान कमेटी का मुखिया घोषित किया है, लेकिन अध्यक्ष पद पर सिद्धू के होने से नतीजों पर बुरा असर पड़ सकता है।’’ हालांकि आलाकमान ने सिद्धू के साथ कैप्टन खेमे के चार नेताओं संगत सिंह गिलजियां, कुलजीत सिंह नागरा, सुखविंदर सिंह डैनी और पवन गोयल को कार्यकारी अध्यक्ष बनाकर संतुलन साधने की कोशिश की है। कहा जा रहा है कि अकाली-बसपा गठबंधन की तोड़ में युवा दलित नेता डैनी को कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया है। राज्य में तकरीबन 32 फीसदी दलित मतदाता हैं। कांग्रेस के इस वरिष्ठ नेता की मानें तो टिकट बंटवारे के लिए आलाकमान के साथ होने वाली बैठक में मुख्यमंत्री के साथ कार्यकारी अध्यक्ष नहीं, प्रदेश अध्यक्ष ही शामिल होते हैं। इसलिए भी कैप्टन कुछ सतर्क हैं। इधर सिद्धू की ताजपोशी से पहले कैप्टन ने भी अपने तमाम विरोधियों के साथ हाथ मिला लिया है। इनमें सांसद प्रताप बाजवा से लेकर रवनीत बिट्टू तक शामिल हैं। संगठन में बदलाव के बाद अब मंत्रिमंडल में भी जल्द फेरबदल की तैयारी है। कैप्टन कैबिनेट मंत्री सुखजिंद्र रंधावा, तृप्त बाजवा, चरणजीत चन्नी पर नकेल कस सकते हैं। चन्नी और रंधावा के घरों में ही कैप्टन के खिलाफ खेमे की बैठकों में सिद्धू को समर्थन की कवायद तेज की गई। 

जून के आखिरी हफ्ते में कांग्रेस के दिल्ली मुख्यालय में पंजाब कांग्रेस के 80 विधायकों,  सांसदों, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की कमेटी के साथ हुई बैठकों में सिर्फ 20 नेता कैप्टन के खिलाफ बोले। अकाली-बसपा गठबंधन के बाद कांग्रेस के दलित विधायकों ने 2022 में किसी दलित चेहरे को मुख्यमंत्री के तौर पर आगे करने की भी मांग की। सूत्रों के मुताबिक वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खड़गे की अध्यक्षता में पंजाब के प्रभारी हरीश रावत और जयप्रकाश अग्रवाल की कमेटी ने सोनिया गांधी और राहुल गांधी को सौंपी रिपोर्ट में सिद्धू को अध्यक्ष बनाए जाने की सिफािरश नहीं की थी। कांग्रेस के एक वरिष्ठ राष्ट्रीय नेता कहते हैं, ‘‘यह फैसला कांग्रेस की कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष का नहीं, बल्कि बच्चों की जिद और ममता के वशीभूत एक मां का है।’’ बहरहाल, कांग्रेस अध्यक्ष पद पर सिद्धू की ताजपोशी तो पार्टी आलाकमान के फैसले से हुई, लेकिन मुख्यमंत्री की कुर्सी का फैसला तो जनता के हाथ में है।

सोनिया गांधी

एक कांग्रेस नेता के अनुसार सिद्धू को प्रदेश अध्यक्ष बनाने का फैसला कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष का नहीं, बल्कि बच्चों की जिद और ममता के वशीभूत एक मां का है

कैप्टन अमरिंदरसिंह

कैप्टन ने प्रताप बाजवा और रवनीत बिट्टू जैसे अपने विरोधियों से हाथ मिला लिया है, मंत्रिपरिषद फेरबदल में भी वे अपने विरोधी नेताओं पर नकेल कस सकते हैं

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