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आवरण कथा/मीम कारोबारः खरचा थोड़ा मीम रंग चोखा

कंपनियों के अच्छे-खासे विज्ञापन बजट का रुख मीम की ओर हुआ, ऐक्टर-ऐक्ट्रेस और राजनीतिक दल भी लोगों का दिल छूने के लिए इस ओर झुके
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अरसे से विज्ञापन जगत का यह सिद्धांत-सा रहा है कि असली मार्केटिंग वह है, जो मार्केटिंग बिल्कुल न लगे। यह मीम मार्केटिंग पर बिलकुल सटीक बैठता है। आपके मोबाइल पर दिखने वाला कौन-सा मीम महज हंसी-मजाक के लिए है और कौन-सा मीम प्रायोजित है, आपको पता भी नहीं चलेगा। मीम मार्केटिंग, पारंपरिक मार्केटिंग के तरीकों से यहीं आगे निकल जाती है। अखबार या टीवी में विज्ञापन का दौर ढलान पर है। यूट्यूब और फेसबुक वीडियो पर आने वाले विज्ञापनों को कोई भी पूरा नहीं देखता। इन विज्ञापनों को महज पांच सेकेंड के बाद ही लोग स्किप कर देते हैं और इसी जगह को भर रही है मीम मार्केटिंग। देश में पहले पायदान की मीम मार्केटिंग कंपनी आरवीसीजे के सह-संस्थापक अजीज खान कहते हैं कि मीम के जरिये मार्केटिंग को दर्शक स्किप नहीं करते हैं, बल्कि देखते हैं, पसंद करते हैं और आगे साझा भी करते हैं।

आखिर पारंपरिक मार्केटिंग पर मीम मार्केटिंग की बढ़त की क्या वजह है? विज्ञापन एक्सपर्ट सिमरत गुलाटी आउटलुक से कहती हैं, ‘‘मार्केटिंग का पूरा कॉन्सेप्ट बदल गया है। मार्केटिंग कहानी कहने जैसा हो गया है जिसके जरिये अब दर्शकों का मनोरंजन किया जाता है। अब कंज्यूमर को ब्रांड डिक्टेट नहीं कर सकते कि यह चीज खरीदो क्योंकि अमुक फायदे हैं। ब्रांड को अब उन्हें अपना हिस्सा बनाना पड़ रहा है और मीम मार्केटिंग इसमें सबसे आगे है।’’

मार्केटिंग का बदलता दौर

शुरुआत में बड़े ब्रांड मीम मार्केटिंग को लेकर हिचकते थे। उन्हें लगता था कि इससे उनके ब्रांड पर नाकारात्मक असर पड़ सकता है, लेकिन अब ऐसा नहीं है। मीम मार्केटिंग के प्रति ब्रांड के झुकाव का सबसे बड़ा कारण क्या है? मीम मार्केटिंग कंपनी मीमीडिया के पार्टनर मनीष जालान आउटलुक से कहते हैं, ‘‘मीम मार्केटिंग ने ब्रांड की डिस्ट्रिब्यूशन कॉस्ट को कम कर दिया है। मसलन, टीवी और अखबार में विज्ञापन देने में जितने पैसे लगते हैं, उससे 70-80 फीसदी कम पैसे में ही मीम मार्केटिंग हो जाती है।’’ मनीष का कहना है कि अब ब्रांड वाली कंपनियां समझ चुकी हैं कि सकारात्मक पब्लिक परसेप्शन बनाने के लिए मीम मार्केटिंग सस्ता और जोरदार तरीका है।

मीम का बाजार

एयरटेल, स्पॉटिफाइ और उबर जैसी कंपनियों की मीम मार्केटिंग कर चुके और एडवरटाइजिंग कंपनी, सोशलमेट के एमडी सुरील जैन आउटलुक से कहते हैं, ‘‘शुरुआत में हम खुद ब्रांड को अप्रोच करते थे और समझाते थे कि मीम मार्केटिंग क्या है, लेकिन आज मैं यह कह सकता हूं कि 90 फीसदी ओटीटी कैंपेन मीम मार्केटिंग के जरिये ही चलते हैं।’’ वे आगे कहते हैं, ‘‘अगर मार्केटिंग के पारंपरिक तरीके की बात करूं तो वह बना रहेगा लेकिन मीम मार्केटिंग लगातार बढ़ती जाएगी। आने वाले समय में मात्र 25 फीसदी मार्केटिंग ही पारंपरिक तरीके से की जाएगी।’’

स्टेटिस्टा की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2018 में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के 32.61 करोड़ से अधिक उपयोगकर्ता हैं। यह आंकड़ा 2023 तक 44.8 करोड़ तक पहुंचने की उम्मीद है। एक  सामान्य उपयोगकर्ता दिन में कम से कम तीन घंटे सोशल मीडिया पर समय बिताता है। स्ट्रेटजी कंसल्टिंग फर्म रेडसीर की एक रिपोर्ट के मुताबिक, प्रत्येक भारतीय रोजाना करीब आधा घंटा मीम देखता है। इसे देखने में करीब 80 फीसदी की वृद्धि हुई है। सुरील कहते हैं कि मीम मार्केटिंग इसलिए और आगे बढ़ेगा क्योंकि हमारे पास पोटेंशियल ऑडियन्स है। एयरटेल के कंज्यूमर ज्यादातर 18 वर्ष से 35 वर्ष के बीच के लोग हैं। इसी तरह से ओटीटी कंटेंट जो देखते हैं वे भी इसी आयुवर्ग के हैं और मीम की ऑडियन्स भी इसी उम्र की है। इस हिसाब से मीम मार्केटिंग ही मार्केटिंग का भविष्य है। 

मीम से मुनाफा

कभी किसी ने सोचा था कि मीम के जरिये पैसा भी कमाया जा सकता है? मीम मार्केटिंग एजेंसियों को अपने फेसबुक या इंस्टाग्राम पेज पर एक मीम डालने के एवज में 15 हजार रुपये मिलते हैं। ब्रांड के मीम कैंपेन का करार एक से 50 लाख रुपये के बीच का होता है।

देश की बड़ी एफएमसीजी कंपनी ब्रिटानिया ने अपने नए बिस्कुट के लॉन्च के लिए मीम अभियान मीम चैट को सौंपा था। मीम चैट के फाउंडर और सीईओ काइल फर्नांडिस आउटलुक से कहते हैं, ‘‘अब बड़े-बड़े ब्रांड अपनी मार्केटिंग का 2-3 फीसदी बजट इस पर खर्च करते हैं। एक मीम के लिए हमें 200 रुपये मिलते हैं। एक बार में हजारों मीम का सौदा होता है।’’ डेटिंग ऐप ट्रूलीमैडली का कहना है कि 2019 में कंपनी के कंटेंट मार्केटिंग बजट का 7-10 फीसदी हिस्सा मीम मार्केटिंग में जाता था लेकिन अब बजट बढ़कर 30-40 प्रतिशत तक पहुंच गया है। सवाल यह है कि आखिर यह बाजार कितना बड़ा है?

इसका अभी कोई आधिकारिक आंकड़ा उपलब्ध नहीं है, लेकिन अजीज कहते हैं, ‘‘मीम मार्केटिंग की सालाना ग्रोथ करीब 100 फीसदी है। भारत में इसका बाजार करीब 80-90 करोड़ का है, जो 2023 तक दोगुना हो जाएगा।’’ वे  आगे कहते हैं कि एक समय था जब एंटरटेनमेंट से जुड़े ब्रांड ही मीम मार्केटिंग कराते थे, लेकिन आज एचडीएफसी, पेटीएम और बजाज एलायंस भी मीम के जरिये अपनी मार्केटिंग कर रहे हैं।

आरवीसीजे मीडिया अभी तक पेप्सी, अमेजन प्राइम और कैडबरी जैसी कंपनियों का प्रमोशन कर चुका है। रोचक बात यह है कि ब्रांड ही नहीं, ऐक्टर अब अपनी मार्केटिंग मीम के जरिये करते हैं। मनीष जालान कहते हैं, ‘‘बड़े-बड़े ऐक्टर जो पहले पीआर कंपनियों के जरिये अपनी खबरें चलवाया करते थे, वे अब मीम मार्केटिंग करते हैं क्योंकि कम पैसे में उन्हें ज्यादा पहुंच मिल रहा है। हम खुद कुछ अभिनेताओं की मार्केटिंग मीम के जरिये कर चुके हैं।’’

कितना समय देते हैं भारतीय

जानकारों की मानें तो ब्रांड और ऐक्टरों के अलावा राजनीतिक दलों ने भी मीम पर अपना खर्च काफी बढ़ा दिया है। चुनाव के दौरान एक पार्टी लगभग 30 दिन के मीम कैंपेन के लिए 60 से 80 हजार रुपये तक खर्च करती है। सोशल मीडिया पर मीम अब सर्वव्यापी हो चुका है। ऐसी कोई भी चीज नहीं जिस पर मीम नहीं बन सकता है और जिस पर मीम बनने लगे, वह पलक झपकते ही सबके जुबान पर चढ़ जाता है। ‘रसोड़े में कौन था’, यह आज तक भले ही कोकिला बहन को पता न चला हो लेकिन पूरी दुनिया को यह पता चल चुका है। आज की तारीख में मीम की अहमियत कितनी बढ़ चुकी है, इसे अगर 26 जून 2020 को दुनिया के सबसे अमीर एलन मस्क के एक ट्वीट के जरिये समझें तो, ‘हू कंट्रोल्स द मीम्स, कंट्रोल्स द यूनिवर्स’ यानी जो मीम को नियंत्रित करता है, वह ब्रह्मांड को नियंत्रित करता है।

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