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आवरण कथा/नजरिया: सोशल मीडिया ‘क्रांति’ सूत्र

नेपाल में 20 से 25 वर्ष के युवाओं ने सोशल मीडिया के मंचों का इस्तेमाल कर जिस तरह सत्ता बदली, उसके बाद चर्चा है क्या इसके जरिए आने वाले वर्षों में सत्ता बनाई या गिराई जाएगी?
पहले-पहलः अन्ना हजारे के आमरण अनशन की खबर सोशल मीडिया पर खूब फैली थी

नेपाल में सरकार की नीतियों और राजनैतिक अभिजात वर्ग को लेकर लोगों में गहरा असंतोष उभर रहा था। उस असंतोष को सोशल मीडिया ने लगातार धार दी। खास बात यह कि सोशल मीडिया बैन और इंटरनेट पर प्रतिबंध लगाने के बावजूद नेपाल की आधी से ज्यादा आबादी ऑनलाइन थी। इसके लिए प्रदर्शनकारियों ने वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क यानी वीपीएन की मदद ली। इसके अलावा, नेपाल के जेन जी ने डिस्कॉर्ड, जो गेमर्स का वर्चुअल कम्युनिटी हब है, उसका भी अनूठा इस्तेमाल किया। इस प्लेटफार्म के जरिए प्रदर्शन आयोजित करने से लेकर अंतरिम प्रधानमंत्री चुनने तक कई कार्य हुए। डिस्कॉर्ड का ऐसा इस्तेमाल पहले कभी नहीं हुआ था।

सोशल मीडिया की यह ताकत कोई नई नहीं है। 2009–2011 के बीच ‘अरब स्प्रिंग’ ने दिखाया कि सोशल मीडिया किस तरह राजनैतिक परिवर्तन का हथियार बन सकता है। ट्यूनीशिया, मिस्र, लीबिया, बहरीन और सीरिया जैसे देशों में युवाओं और कार्यकर्ताओं ने फेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब को आंदोलन के मंच के रूप में इस्तेमाल किया। ट्यूनीशिया में मोहम्मद बुआजीजी की आत्मदाह की खबर सबसे पहले फेसबुक और यूट्यूब पर वीडियो और फोटो के जरिए फैली। देखते ही देखते यह गुस्सा डिजिटल लहर में बदल गया। फेसबुक पेज “वी आर ऑल खालिद सैद” (हम सभी खालिद सैद) मिस्र में सबसे मशहूर हुआ, जिसे एक युवा कार्यकर्ता ने बनाया था। यह पेज पुलिस की ज्यादती और भ्रष्टाचार की कहानियों का केंद्र बन गया। इसी के जरिए हजारों लोग काहिरा के तहरीर चौक में जुटे। ट्विटर पर ‘जनवरी25’ और ‘अरबस्प्रिंग’ जैसे हैशटैग चलने लगे, जिसने अंतरराष्ट्रीय मीडिया का ध्यान खींचा। यूट्यूब पर अपलोड किए गए विरोध प्रदर्शनों और पुलिस दमन के वीडियो ने पूरी दुनिया में सहानुभूति और दबाव बनाया। इन देशों में परंपरागत मीडिया सरकार के नियंत्रण में था, इसलिए सोशल मीडिया ही वह जगह बनी, जहां लोग अपनी बात खुलकर रख सके। यह पहला बड़ा उदाहरण था, जब ऑनलाइन पेज, वायरल वीडियो और हैशटैग्स ने वास्तविक सड़कों पर लाखों लोगों को आंदोलन के लिए संगठित कर दिया था।

अरब क्रांति के बाद दुनिया के युवाओं को समझ आया कि सोशल मीडिया के तमाम मंच मनोरंजन से कहीं आगे की बात हैं। 2011 के दौरान भारत में कॉमनवेल्थ घोटाले की सरगर्मी शुरू हुई, तो कुछ युवाओं ने सोशल मीडिया पर एक कैंपेन चलाया ‘कॉमनवेल्थ झेल।’ उसे खूब पसंद किया गया। उसके बाद, अरविंद केजरीवाल की सलाह पर इंडियाअंगेस्टकरप्शन पेज की शुरुआत की गई, जिसके शुरुआती दो तीन दिनों में ही करीब तीन लाख सदस्य बन गए। जमीनी स्तर पर आंदोलन ने जोर पकड़ना शुरू किया तो साइबर दुनिया में भी उसका असर दिखना शुरू हो गया। फेसबुक पर हजारों पेज बने तो ट्विटर पर हैशटैग ‘अन्ना हजारे’ और ‘इंडिया अगेस्ट करप्शन’ देश-विदेश में ट्रेंड करने लगे। इससे आंदोलन पर अंतरराष्ट्रीय ध्यान गया। युवाओं ने यूट्यूब पर भाषण और वीडियो साझा किए, जिससे आंदोलन देशभर में फैल गया। अन्ना के प्रदर्शन की तस्वीरें और लाइव अपडेट लगातार शेयर होते रहे। उस वक्त मोबाइल एसएमएस कैंपेन के जरिए भीड़ जुटाई गई और लोगों को तारीख, जगह और वक्त की जानकारी लगातार एसएमएस पर भेजी गई। आइटी सेक्टर और कॉलेजों के छात्र खास तौर पर ऑनलाइन सक्रिय थे तो उन्होंने पोस्टर, नारे और मीम बनाकर आंदोलन को सोशल मीडिया पर “वायरल” कर दिया।

अन्ना आंदोलन के बाद 2012 में निर्भया कांड के वक्त सोशल मीडिया ने देश, खासकर राजधानी दिल्‍ली में जनाक्रोश को संगठित करने और आवाज राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहुंचाने में बड़ी भूमिका निभाई। फेसबुक पर ‘‘जस्टिस फॉर निर्भया’’, ‘‘दिल्ली फॉर वुमेन सेफ्टी’’, ‘‘स्टॉप रेप नाउ’’ जैसे पेज बने, जिन पर हजारों लोग जुड़े और लगातार अपडेट, फोटो, नारे और विरोध-प्रदर्शन की जानकारी साझा होती रही। इसी तरह, ट्विटर पर निर्भया, दिल्ली गैंग रेप, जस्टिस फॉर हैशटैग ट्रेंड होने लगे। चेंजडॉटओराजी और आवाज जैसी साइट्स पर याचिकाएं शुरू हुईं, जिन पर लाखों हस्ताक्षर हुए और सोशल मीडिया पर एकजुट लोगों ने अपने आप में एक दबाव समूह का काम किया।

दरअसल, भारत में अन्ना आंदोलन सोशल मीडिया के इस्तेमाल के संदर्भ में टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ। इस आंदोलन को सफल बनाने में सोशल मीडिया की भूमिका ने लोगों की राय बदल दी। मुख्यधारा के मीडिया में भी इन मंचों को जबरदस्त जगह मिली। हालांकि, मुंबई में 26/11 हमले के वक्त भी सोशल मीडिया की ताकत का अहसास देश के लोगों को हुआ था, लेकिन उसका केंद्र मुंबई था और उसका असर चंद दिनों तक था।

अन्ना आंदोलन के बाद सोशल मीडिया से जुड़े लोगों, खासकर युवओं के व्यवहार में आए बदलाव से जाहिर हुआ कि ये मंच सिर्फ मनोरंजन का माध्यम नहीं हैं। संवैधानिक अधिकारों को लेकर संबंधित विभागों के कान खींचने से लेकर उपभोक्ता मामलों की शिकायत को लेकर कंपनियों को सीधे-सीधे चुनौती देने का काम इन्हीं मंचों से किए जाने की शुरुआत हुई। सोशल मीडिया के जरिए कई प्रोजेक्ट की ‘क्राउडफंडिंग’ हुई।

सोशल मीडिया की सबसे बड़ी ताकत है ‘शेयरिंग और लाइकिंग।’ यानी मोबाइल पर एक पल में लिखे-कहे को अपने समूह में बांटना। सोशल मीडिया के मंचों पर कम शब्दों में बात कहना सहज-सरल है। इसके अलावा, लिखे-कहे को फौरी प्रतिक्रियाएं मिल जाती हैं, और यह लोगों का उत्साह दोगुना करता है।

युवाओं को इस शक्ति का भान अधिक है, क्योंकि तकनीकी रूप से पिछली पीढ़ी से वे न केवल अधिक उन्नत हैं, बल्कि मोबाइल फोन के हर फीचर की उनमें ज्यादा समझ है और मोबाइल पर तेजी से दौड़ती उनकी उंगलियां हर नए मंच को और ज्यादा समझना चाहती हैं। जेन जी की इन मंचों पर शब्दावली भी अलग है, और इस शब्दावली को युवा ही समझ पाते हैं।

वैसे, यह भी सच है कि नेपाल, बांग्लादेश और श्रीलंका जैसे देशों में सोशल मीडिया की ताकत इसलिए भी अधिक दिखी क्योंकि उनका भौगोलिक क्षेत्र बहुत विस्तृत नहीं है। इन देशों में सोशल मीडिया के मंचों पर जंगल में आग की तरह फैलती सूचनाओं ने बहुत कम समय में युवाओं को अपनी जद में लिया और वे एक साथ अपने लक्ष्य पर अमल कर सके। हालांकि, भारत में वॉट्सऐप के करीब 55 करोड़, फेसबुक के करीब 42 करोड़ और ट्विटर के 23 करोड़ से ज्यादा यूजर्स हैं लेकिन भारत में इन सभी लोगों को एक साथ एक मकसद के लिए जोड़ना आसान नहीं है। इसकी वजह कई हैं। मसलन, अलग-अलग भाषाएं, संवेदना का अलग स्तर, अलग भौगोलिक परिस्थितियां और सरकार की शक्तियां। हालांकि सोशल मीडिया पर संचालित छोटे-छोटे कैंपेन सीमित सफलता हासिल करते रहते हैं, लेकिन बड़े आंदोलन की सफलता तभी संभव है, जब कोई मुद्दा जमीन पर भी उतना ही प्रभावी हो।

निश्चित रूप से सोशल मीडिया ने आम लोगों को ताकत दी है, लेकिन इससे भी इनकार नहीं किया जा सकता कि सोशल मीडिया के जरिए अफवाहों को पंख लगे हैं। ऐसे अनगिनत उदाहरण हैं, जहां सोशल मीडिया पर फैलती अफवाहों की वजह से हिंसा फैली। सोशल मीडिया पर वायरल कंटेंट जंगल में आग की तरह फैलता है, और यही उसकी ताकत भी है और कमजोरी भी।

दूसरी तरफ, पारंपरिक मीडिया की विश्वसनीयता ही इसीलिए है क्योंकि वहां गलत सूचनाएं एक हद तक छन जाती हैं। सोशल मीडिया में अमूमन ऐसा नहीं है। सरकारों के लिए यह बात अपने बचाव का मजबूत आधार भी है, जिसके जरिए वह सोशल मीडिया पर अंकुश की वकालत करती हैं। हाल में भाजपा सांसद निशिकांत दुबे की अध्यक्षता वाली संसदीय संचार और सूचना-प्रोद्यौगिकी प्रवर समिति ने कहा कि देश में कुछ प्रभावशाली लोग और इनफ्लूएंसर सोशल मीडिया पर राष्ट्रहित के खिलाफ काम कर कर रहे हैं। अब राष्ट्रहित के खिलाफ क्या है, यह बहुत जटिल बहस का मामला है।

पीयूष पांडे

(लेखक आज तक के पूर्व एग्जीक्यूटिव एडिटर और सोशल मीडिया के जानकार हैं)

 

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