रॉबर्ट बेला के लिए यह किसी आश्चर्य से कम नहीं था। रांची से साठ-पैंसठ किलोमीटर दूर लापुंग प्रखंड की सापुकेरा पंचायत के नेत्रहीन रॉबर्ट बेला 20 साल से पेंशन के लिए भटक रहे थे, मगर उनका काम हुआ सिर्फ आधे घंटे में। ‘आपकी सरकार, आपके अधिकार, आपके द्वार’ के तहत पंचायत सचिवालय में कैंप लगा था और सिर्फ आधे घंटे में पेंशन का आदेश जारी हो गया। वह भी बिना रिश्वत के। हाल में वंचित वर्ग के अनेक लोग इस तरह के अनुभव से गुजरे। सरकारी दफ्तरों में रिश्वतखोरी से लोग आजिज हैं। खुद मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन कहते हैं कि इस तरह की पेंशन के लिए पांच से छह हजार रुपये की रिश्वत देनी पड़ती थी। अब यूनिवर्सल पेंशन है तो दलालों की क्या जरूरत। डेढ़ माह के अभियान में ढाई लाख लोगों को पेंशन का लाभ मिला। मुख्यमंत्री का दावा है कि 70-75 लाख लोगों को इसका फायदा मिलेगा। सोरेन मानते हैं कि दो साल के कार्यकाल में सबसे अधिक सुकून देने वाला काम यही अभियान है।
इसकी शुरुआत भी रोचक है। बीते साल 15 नवंबर को आदिवासियों के भगवान बिरसा मुंडा की जयंती को भाजपा ने केंद्रीय स्तर से हाईजैक करने की योजना बनाई। रांची में भाजपा अनुसूचित जनजाति मोर्चा की केंद्रीय कार्यसमिति की बैठक से आवाज निकली कि बिरसा जयंती को पूरे देश में 'जनजातीय गौरव दिवस' के रूप में मनाया जाएगा। केंद्र ने इसे मंजूरी भी दे दी। 26 प्रतिशत से अधिक आदिवासी आबादी वाले झारखंड में आदिवासी वोटों के मोर्चे पर पिछड़ती भाजपा की यह राजनीतिक चाल थी।
ऐसे में सत्तापधारी झामुमो में बेचैनी स्वाभाविक थी। बस हेमन्त सरकार ने बिरसा के गांव उलिहातू से ही ‘आपके अधिकार, आपकी सरकार, आपके द्वार’ कार्यक्रम की शुरुआत कर दी। राशन कार्ड, दाखिल खारिज, आय प्रमाण पत्र, जाति प्रमाण पत्र, आवासीय प्रमाण पत्र, आधार कार्ड, आवास योजना, सामाजिक सुरक्षा पेंशन आदि के आवेदन निबटाए जाने लगे। इसी मंच से गरीबों को दस रुपये में साल में दो बार सस्ती धोती-साड़ी, एक रुपये में एक किलो अनाज और जॉब कार्ड का वितरण भी होने लगा।
सोरेन कहते रहे हैं कि सरकार संभालते ही कोविड-19 महामारी और राज्य के खाली खजाने का सामना करना पड़ा। इसके बावजूद वे अपने वोट बैंक को बनाए रखने के लिए चाल चलते रहे। कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता कहते हैं कि सोरेन की यह चाल कांग्रेस की चुनावी सेहत के लिए भी ठीक नहीं है।
एक कार्यक्रम में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन
झारखंड की अनुसूचित जनजाति वाली 28 सीटों में दो भाजपा, 19 झामुमो और छह कांग्रेस ने जीती थीं। बंधु तिर्की के शामिल होने के बाद कांग्रेस के खाते में सात सीटें हो गईं। इन सीटों पर झामुमो अपना प्रभुत्व बढ़ाना चाहती है। दूसरे इलाकों में भी आदिवासी वोट नतीजे को प्रभावित करते हैं, इसी को केंद्र में रखते हुए सोरेन की सोशल इंजीनियरिंग चल रही है।
अपने शासन के पहले साल में ही सोरेन ने जनगणना कॉलम में अलग आदिवासी धर्म कोड शामिल करने के लिए विधानसभा से सर्वसम्मदत प्रस्ताव पारित कराकर केंद्र के पाले में डाल दिया था। उसका काउंटर अभी तक भाजपा को नहीं सूझ रहा। दो साल के शासन के दौरान सोरेन ने आदिवासी हित में कई फैसले किए। प्रतिभाशाली युवाओं को उच्च तकनीकी शिक्षा के लिए सरकारी खर्चे पर विदेश भेजने वाला झारखंड पहला प्रदेश बना। बीते विधानसभा सत्र में पंडित रघुनाथ मुर्मू ट्राइबल यूनिवर्सिटी को मंजूरी दी।
वोट के इर्द-गिर्द घूमती राजनीति के बीच झामुमो नेतृत्व का जनजातीय के साथ स्थानीय पर जोर रहा है। इसलिए निजी क्षेत्र में 75 फीसदी स्थानीय को नौकरी देने का कानून पास किया गया। लेकिन सहयोगी दल कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता कहते हैं कि यह सब राजनीति है, नौकरियां कहां हैं और कितनी हैं।
सरकार के दो साल पूरे होने पर 29 दिसंबर को सोरेन ने यह कहकर चौंका दिया कि गरीबों को मोटरसाइकिल और स्कूटर में पेट्रोल भरवाने के लिए 25 रुपये प्रति लीटर अनुदान मिलेगा। राशनकार्ड धारी को माह में अधिकतम दस लीटर यानी 250 रुपये सब्सिडी मिलेगी, जिसे 26 जनवरी 2022 से लागू करने की तैयारी है। भाजपा विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी ने इस पर सवाल उठाते हुए कहा कि शर्तें लागू करने से कितने लोगों को लाभ मिल पाएगा? कितने बीपीएल कार्डधारी हैं जिनके पास स्कूटर और मोटरसाइकिल है?
झामुमो के 12वें महाधिवेशन में पार्टी ने राजनीतिक प्रस्ताव पास कर ओबीसी को 27 प्रतिशत, जनजाति को 28 प्रतिशत, अनुसूचित जाति को 12 प्रतिशत आरक्षण का वादा कर नया चारा फेंका। अभी इनके लिए राज्य में क्रमश: 14, 26 और 10 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान है। ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण को लेकर तो पूरे देश में राजनीति चल रही है। लेकिन अभी तक यह साफ नहीं हो सका है कि जब सुप्रीम कोर्ट ने अधिकतम 50 फीसदी आरक्षण की सीमा तय कर दी है तो सोरेन अपने इस वादे को कैसे पूरा करेंगे।
भाजपा उपाध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने आउटलुक से बातचीत में हेमन्त सरकार की घोषणाओं को कागजी करार दिया। वे कहते हैं, “मॉब लिंचिंग कानून बन गया मगर घटनाएं हो रही हैं, सरकार में इच्छा शक्ति का अभाव है। काम से ज्यादा वोट बैंक की राजनीति हो रही है। सोरेन परिवार को छोड़ किस आदिवासी या अल्पसंख्यक परिवार का भला हुआ? सत्ता का दुरुपयोग कर एक परिवार संपत्ति बनाने में लगा हुआ है।”
पूर्व मुख्यमंत्री के अनुसार राज्य में विश्वास का संकट है। जनता को न शासन पर भरोसा है न सरकार पर। झामुमो और कांग्रेस दोनों का वोट बैंक आदिवासी, मुस्लिम और इसाई हैं। उनका आरोप है कि कांग्रेस की दोहरी राजनीति चल रही है। कैबिनेट में इसके चारों मंत्री बैठकर प्रस्तासव पास करते हैं और बाहर निकलकर पत्र लिखते हैं।
रघुवार दास की टिप्पणी से प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष राजेश ठाकुर इत्तेफाक नहीं रखते। उनका कहना है कि सरना कोड हो, किसानों को 50 हजार रुपये तक कर्ज माफी या मॉब लिंचिंग विरोधी कानून, यह सब गठबंधन के साथ मिलकर लिया गया फैसला है। अंतिम व्यक्ति को भ्रष्टाचार से मुक्ति दिलाने और अपनी योजनाओं को धरातल तक पहुंचाने के लिए बीस सूत्री कार्यक्रम हमारा मिला-जुला प्रयास है। अब 15 सूत्री योजना चालू करेंगे जिससे अल्पसंख्यकों को लाभ मिलेगा। निगरानी समिति के माध्यम से भ्रष्टाचार पर नियंत्रण की कार्रवाई होगी। ठाकुर कहते हैं, “हमारा संयुक्त एजेंडा है। ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण भी गठबंधन का एजेंडा है।”
हेमन्त ने मतदाताओं के दूसरे वर्गों को भी साधने की कोशिश की है। विधानसभा में नमाज कक्ष का विवाद उठा तो सड़क पर भी प्रदर्शन हुए। अंतत: दूसरे राज्यों का अध्ययन करने की बात कहकर मामले को ठंडे बस्ते में डाला गया।
रघुवर सरकार के समय मॉब लिंचिंग को लेकर झारखंड की बड़ी बदनामी थी। सरायकेला खरसावां का तबरेज हत्याकांड हो या रामगढ़ के व्यवसायी अलीमुद्दीन की हत्या, देश-विदेश में चर्चा का विषय रहा। संदेश यही था कि ज्यादातर, अल्पसंख्यक इसके शिकार होते हैं। वर्तमान सरकार ने हाल ही मॉब लिंचिंग निषेध कानून लागू किया है।
जिला स्तर पर नियुक्ति नियमावली में भी सरकार ने संशोधन किया है। कांग्रेस के दबाव में चुनिंदा जिलों में भोजपुरी, मगही और अंगिका को स्थान दिया गया। बाद में सभी जिलों में उर्दू को भी शामिल कर दिया गया। रघुवर सरकार ने 2017 में राज्य के मदरसों को मिलने वाले अनुदान पर रोक लगा दी थी। 183 मदरसों का अनुदान बंद हुआ था। सोरेन सरकार उसे फिर से चालू करने की कोशिश में है।
झारखंड में विधानसभा चुनाव में अभी तीन साल हैं। दो साल में इन्फ्रास्ट्रक्चर के स्तर पर कुछ गिनाने लायक नहीं दिखता, मगर हेमन्त की सोशल इंजीनिरिंग जरूर दिख रही है।