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21 जुलाई 2025 · JUL 21 , 2025

क्रिकेट/आइसीसी टेस्ट ट्रॉफीः जीत हो तो ऐसी!

विराट-रोहित के बाद नई युवा टीम इंडिया इंग्लैंड में एक टेस्ट हारी जरूर, लेकिन दिखाया दमखम और संकल्प
ऐतिहासिकः ट्रॉफी के साथ दक्षिण अफ्रीकी टीम

सत्ताईस साल का इंतजार, आलोचनाओं का अंधड़, और अंत में लॉर्ड्स के मैदान पर लहराता दक्षिण अफ्रीका का परचम। यह पूरे क्रिकेट इतिहास का सबसे बड़ा साक्ष्य है कि जब खेल कौशल, आत्मविश्वास और नेतृत्व एक साथ चलते हैं, तो मिथक टूटते हैं। 14 जून 2025 को दक्षिण अफ्रीका ने ऑस्ट्रेलिया को पांच विकेट से हराकर आइसीसी विश्व टेस्ट चैंपियनशिप फाइनल जीत लिया। यह जीत ऐतिहासिक थी, न सिर्फ इसलिए कि यह दक्षिण अफ्रीका की 1998 की आइसीसी नॉकआउट ट्रॉफी के बाद पहली वैश्विक खिताबी जीत थी, बल्कि इसलिए भी कि इस जीत ने एक देश के क्रिकेट इतिहास से “चोकर” जैसे कलंक को सदा के लिए मिटा दिया। जब लॉर्ड्स में दक्षिण अफ्रीकी खिलाड़ी जीत के बाद एक-दूसरे से लिपटे, तो वे सिर्फ एक मैच नहीं जीत रहे थे , वे 27 साल के भारी सूखे, बार-बार टूर्नामेंट के अंतिम पलों में बिखरने और नस्लीय आलोचनाओं के लंबे दौर को पीछे छोड़ रहे थे।

दक्षिण अफ्रीका के फाइनल तक पहुंचने का रास्ता आसान नहीं था, क्योंकि कई पूर्व क्रिकेटरों और विश्लेषकों ने आरोप लगाया कि दक्षिण अफ्रीका को आसान विरोधियों से मुकाबले मिले, जबकि भारत और ऑस्ट्रेलिया जैसी टीमें अधिक चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में खेलीं। आलोचकों ने कहा कि उनकी यात्रा आसान थी। लेकिन दक्षिण अफ्रीकी खिलाड़ियों ने इस ‘कमतर मानने’ की मानसिकता को अपनी प्रेरणा बना लिया। आठ टेस्ट मैचों की लगातार जीत ने यह साबित कर दिया कि आंकड़े झूठ नहीं बोलते। दक्षिण अफ्रीका ने अपना हर मुकाबला मेहनत से जीता।

टीम के कप्तान टेम्बा बवुमा इस पूरे अभियान का सबसे चर्चित चेहरा रहे। नस्लीय कोटा प्रणाली को लेकर वे हमेशा विवादों में रहे। कई बार उन्हें ‘कोटा कप्तान’ कहा गया, जैसे मानो उनका चयन केवल रंग के आधार पर हुआ हो। उन्होंने इस आलोचना को बखूबी झेला, चुपचाप अपना खेल बेहतर किया और दमदार लीडर की भूमिका निभाई। डब्लूटीसी चक्र के दौरान वे टीम के टॉप रन स्कोरर में एक रहे। फाइनल में उन्होंने हैमस्ट्रिंग खींचने के बावजूद दूसरी पारी में 66 रन बनाए। उनकी कप्तानी की शैली में कोई नाटकीयता नहीं थी, बस ठोस रणनीति, खिलाड़ियों पर भरोसा और शांत नेतृत्व। उन्होंने इस जीत से साफ संदेश दिया कि अब उन्हें सिर्फ उनके खेल के लिए जाना जाए, रंग के लिए नहीं।

इस चैंपियनशिप के सबसे बड़े नायक बने एडेन मार्करम। टेस्ट करियर की शुरुआत में जिन पर कभी अस्थिरता और गैर-जिम्मेदारी के आरोप लगते थे, उन्होंने लॉर्ड्स में सबसे मुश्किल परिस्थिति में शतकीय पारी खेलकर इतिहास रच दिया। चौथी पारी में 136 रन सिर्फ मैच जिताऊ नहीं थे, वह दक्षिण अफ्रीकी टेस्ट क्रिकेट की सर्वश्रेष्ठ पारियों में शुमार हो गई। केविन पीटरसन ने भी इसे “दक्षिण अफ्रीका की तरफ से खेली गई सर्वश्रेष्ठ टेस्ट पारी” कहा। मार्करम की यह पारी इसलिए और खास बन गई क्योंकि पहली पारी में वे शून्य पर आउट हुए थे। एक ही टेस्ट में 'डक' और 'शतक' दोनों की कहानी उन्होंने खुद लिखी। यह सिर्फ तकनीक का नहीं, मानसिक दृढ़ता का भी कमाल था।

बल्लेबाज़ी में संयम और रणनीति दिखी, तो गेंदबाजी में कगिसो रबाडा की आक्रामकता ने कंगारुओं को झुका दिया। रबाडा ने मैच में कुल 9 विकेट लिए। उनकी रफ्तार और सटीकता ने ऑस्ट्रेलिया की बल्लेबाजी को शुरुआत से ही दबाव में ला दिया। खासकर पहली पारी में उनका पांच विकेट चटकाना मैच का रुख तय करने वाला साबित हुआ। रबाडा इस पूरे टेस्ट चक्र में दुनिया के सबसे भरोसेमंद तेज गेंदबाजाें में से एक बनकर उभरे हैं।

मैच की कहानी अगर आंकड़ों में समेटनी हो, तो ऑस्ट्रेलिया की पहली पारी 212 रन पर सिमटी, जिसमें रबाडा के 5 विकेट अहम थे। जवाब में दक्षिण अफ्रीका 138 रन पर ढेर हो गई और मैच एक बार फिर क्लासिक टेस्ट की तरह संतुलन में आ गया। लेकिन दूसरी पारी में ऑस्ट्रेलिया 207 पर ऑल आउट हो गई और लक्ष्य 282 का सेट हुआ। लॉर्ड्स की धरती पर किसी भी टीम के लिए चौथी पारी में यह कठिन चुनौती रही है। दक्षिण अफ्रीका ने धैर्य, स्किल और संयम से यह लक्ष्य हासिल किया। अंतिम रन विकेटकीपर बैटर काइल वेरयन्ने ने चौका लगाकर लिया और पूरी टीम लॉर्ड्स की ऐतिहासिक बालकनी में इतिहास के साथ खड़ी हो गई।

इस जीत के दो हफ्ते बाद भी दक्षिण अफ्रीका में जश्न थमा नहीं है। लेकिन जो चीज इस जीत को खास बनाती है, वह सिर्फ खिताब नहीं है। यह उस राष्ट्रीय पहचान का पुनर्निर्माण है जो वर्षों तक आत्म-संदेह और वैश्विक आलोचनाओं से घिरी रही। यह जीत उस पीढ़ी के लिए भी है जो हैंसी क्रोनिए, जैक्स कैलिस, एबी डिविलियर्स और डेल स्टेन जैसे दिग्गजों को सिर्फ इसलिए बिना आइसीसी ट्रॉफी के जाते देखती रही क्योंकि आखिरी लम्हों में कुछ टूट जाता था। लेकिन, इस बार कुछ नहीं टूटा। न तकनीक, न हौसला, न संयम। इस बार इतिहास खुद से टूटा और नई कहानी लिखी गई। दक्षिण अफ्रीका अब सिर्फ ‘प्रतिभाशाली लेकिन नाकाम’ देश नहीं है। वह अब ‘वर्ल्ड चैंपियन’ है  और यह टैग उन्हें वर्षों तक गर्व से पहनना है। यह सिर्फ दक्षिण अफ्रीका के लिए जरूरी नहीं था, यह क्रिकेट के लिए जरूरी था। खेल तभी जिंदा रहता है जब उसके चैंपियन बदलते रहते हैं। अगर विजेता हमेशा वही रहें, तो रोमांच मर जाता है। दक्षिण अफ्रीका की यह जीत बताती है कि टॉप पर पहुंचना अब सिर्फ ‘बड़े नामों’ की बपौती नहीं, यह हर उस टीम की पहुंच में है जो साहस, आत्मनिरीक्षण और धैर्य के साथ आगे बढ़े। इस ट्रॉफी ने आइसीसी टूर्नामेंट की नई उम्मीदें, नए नायक और नई प्रतिस्पर्धा को जन्म दिया है। यही क्रिकेट की सबसे बड़ी खूबसूरती है।

 

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