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नक्सलवाद: आदिवासी गोरिल्ला

शीर्ष माओवादी कमान तक पहुंचा था इकलौता आदिवासी
नायक की तरह विदाईः गांव में शोक के लिए उमड़े लोग

माडवी हिडमा आंध्र प्रदेश के अल्लूरी सीताराम राजू जिले में 18 नवंबर को सुरक्षा बलों की कथित मुठभेड़ में मारा गया। हिडमा की पत्नी मडकम राजे उर्फ राजक्का भी मारी गई। हाल में कई बड़े नेताओं की मौत या सरेंडर के बाद उसे आंदोलन की रीढ़ माना जा रहा था। हिडमा और राजे का शव जब उसके गांव पुरवती पहुंचा, तो गांवों के हजारों लोग जुट गए। दोनों का एक ही चिता पर अंतिम संस्कार किया गया।

वह 1980 के दशक में ऐसे दौर में बड़ा हुआ जब आंध्र में बनी पार्टी भाकपा (माले-पीपुल्स वॉर) या पीडब्‍लू ने बस्तर में अपनी जड़ें जमानी शुरू की। वहां ताकतवर और रसूखदार लोगों के घरों पर छापे डालने के लिए हथियारबंद दस्‍ते बनाए, मुख्‍य संगठन के जरिए बड़े आंदोलन खड़े किए और उन घने जंगलों वाले इलाकों में स्‍थानीय प्रशासन के लिए ‘जनताना सरकारें’ या लोगों की सरकारें बनाईं।

हिडमा 1990 के दशक में पीडब्‍लू से जुड़ा था। वह अपने गांव से माओवादियों में शामिल होने वाला पहला व्यक्ति नहीं था, लेकिन वह दूसरों की तुलना में गहराई से जुड़ा। 1997 में, वह पीडब्‍लू का पूर्णकालिक कार्यकर्ता बन गया और अंडरग्राउंड हो गया। पहले बीजापुर-सुकमा बॉर्डर इलाकों में काम करने वाले बासागुड़ा दस्‍ते में। बाद में महाराष्ट्र के गढ़चिरौली और फिर बस्तर में आर्मरी मैन्युफैक्चर डिपार्टमेंट में काम करने के लिए वापस आ गया।

उस समय हथियारबंद दस्‍ते का विस्‍तार तेजी से हो रहा था। 1995 में पीडब्‍लू ने कई दस्‍तों को मिलाकर दंडकारण्य इलाके में अपनी पहली प्लाटून बनाई। 2 दिसंबर 2000 को पीडब्‍लू ने अपनी खुद की फौज पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी (पीएलजीए) का गठन किया। हिडमा तब सिर्फ एक दस्‍ते का मुखिया था। 2004 में पीडब्‍लू के माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर ऑफ इंडिया (एमसीसीआइ) के साथ विलय के बाद पीएलजीए की ताकत बढ़ गई, जिसके बाद भाकपा (माओवादी) बनी।

जैसे-जैसे माओवादियों ने प्लाटून को कंपनी फॉर्मेशन में बदला, वह उनकी कंपनी 2 में प्लाटून कमांडर बन गया। 2006 से 2009 तक वह कंपनी 3 का कमांडर और सेक्रेटरी बना और 2009 में उसने पिछले साल बनी बटालियन 1 के कमांडर का पूर्ण प्रभार संभाला।

वह 2011 में बटालियन का सेक्रेटरी बना, उसी साल उसे भाकपा (माओवादी) की दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी में भी शामिल किया गया था, जो पार्टी की सबसे अहम कमेटियों में एक थी। हिडमा दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी का हिस्सा बनने वाला पहला स्‍थानीय आदिवासी था। बाकी सभी गैर-आदिवासी थे, जो आंध्र से आए थे और उन्होंने वहां आंदोलन खड़ा किया था।

बाद में माओवादियों ने सुरक्षा बलों और मुख्‍यधारा की पार्टियों कुछ वरिष्‍ठ नेताओं पर जो जानलेवा हमले किए, उनमें ज्‍यादातर के लिए बटालियन 1 को दोषी ठहराया गया। यही वजह है कि हिडमा कई दूसरे माओवादी कमांडरों से ज्‍यादा चर्चित हो गया। 2018 में भाकपा (माओवादी) के महासचिव गणपति की उम्र से जुड़ी दिक्कतों की वजह से पद छोड़ने और सेंट्रल मिलिट्री कमीशन के चीफ बारावराज के गणपति की जगह लेने के बाद पीएलजीए में हिडमा की जिम्मेदारी और भी बढ़ गई। इसी वजह से हिडमा का अंत करीब आ रहा था, क्योंकि सुरक्षा बल अब उसे आखिरी बड़ा खतरा मान रहे थे।

 

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