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अंदरखाने

सियासी गलियारे की हलचल
पी. चिदंबरम

सरकार और पीएम को अर्थव्यवस्था की कितनी फिक्र है, यह इस तथ्य से स्पष्ट होता है कि मौद्रिक नीति समिति 30 सितंबर से निष्क्रिय हो जाएगी। क्या सरकार को एहसास है कि हर दो महीने में आर्थिक प्रबंधन के लिए मौद्रिक नीति की समीक्षा आवश्यक है? 

पी. चिदंबरम, पूर्व वित्त मंत्री और वरिष्ठ कांग्रेस नेता

लेख छपवाने की होड़

संसद से पारित कृषि संबंधित विधेयक अब कानून बन गए हैं, लेकिन इसके साथ ही देश भर में किसान नए कानूनों के खिलाफ सड़क पर उतर आए हैं। विपक्ष भी सरकार के खिलाफ आर-पार की लड़ाई के मूड में आ गया है। ऐसे में मोदी सरकार के कई मंत्रियों और भाजपा नेताओं में नए कानूनों के पक्ष में लेख छपवाने की होड़ मच गई है। हालत यह है कि नेता आपस में ही एक-दूसरे से प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं। एक नेता जी तो बीमारी की स्थिति में भी हिसाब-किताब लगाने में लगे हुए हैं कि किसके ज्यादा लेख छपे और कहां छपे। कहीं ऐसा न हो कि लेख के आगे नेता जमीनी हकीकत ही न समझ पाएं।

अब कहां जाएंगे नेताजी

बिहार में जाति की राजनीति करने वाले एक नेताजी इन दिनों काफी परेशान हैं। चुनावी माहौल में भी पूछ नहीं है। उलटे महागठबंधन ने उन्‍हें झटक दिया है। असल में सीटों को लेकर डिमांड इतनी ज्यादा थी कि किचकिच हो गई। महागठबंधन के नेता ने कह दिया कि जहां जाना चाहें, स्‍वतंत्र हैं। फूल वाली पार्टी के गठबंधन में सीधे प्रवेश नहीं है। तीर वाली पार्टी के मुखियाजी से सीधे तौर पर पंगा है। केंद्र में मंत्री भी रहे, मगर तालमेल गड़बड़ाया तो अलग हो कर महागठबंधन में शामिल हुए थे। एनडीए और महागठबंधन के ठुकराने बाद अब मायावती से हाथ मिला चुके हैं। एक दौर था जब उनकी पार्टी ने नरेंद्र मोदी की लहर में तीन सीटें जीती थीं। नेताजी अभी अपने लोगों से कह रहे हैं कि सभी सीटों पर लड़ने को तैयार हैं। जब किसी से तालमेल होगा तब देखा जाएगा। नजर अब छोटी पार्टियों के तीसरे मोर्चे की पहल पर है।

योगी और 2022

उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए तैयारी शुरू कर दी है। इसी कड़ी में दिल्ली की एक प्रमुख पीआर एजेंसी को दो साल के लिए प्रचार-प्रसार का काम सौंपा गया है। खास बात यह है कि अभी तक यह काम एक साल के लिए एजेंसी को सौंपा जाता था, लेकिन इस बार चुनावों को देखते हुए सरकार ने अभी से कमर कस ली है। एजेंसी का काम न सिर्फ सरकार की उपलब्धियों को मीडिया में बेहतर कवरेज दिलाना है, बल्कि वह क्राइसिस मैनेजमेंट में भी सहयोग करेगी। प्रचार-प्रसार में माहिर भाजपा के लिए यह दांव कितना कारगर होगा यह तो वक्त बताएगा लेकिन मुख्यमंत्री पूरी तैयारी में जरूर लग गए हैं। यह भी तय है कि आने वाले दिनों में और भी सरप्राइज मिलेंगे। तो बस इंतजार कीजिए, क्योंकि चुनावी दस्तक है।

मंत्री जी की पूछ

झारखंड में सेहत वाले मंत्री जी का बाजार इन दिनों टाइट है। इस समय वे नेताजी की खूब आवभगत कर रहे हैं। नेताजी यानी वीआइपी कैदी, जो लंबे समय से बीमारी के नाम पर अस्‍पताल के बंगले में स्‍वास्‍थ्‍य लाभ ले रहे हैं। सामान्‍य रूप से उनसे मुलाकात वर्जित है, लेकिन बिहार में चुनाव है तो मुलाकातियों फौज भी लंबी है। मगर अनुमति मिले तब तो मुलाकात हो। सेहत मंत्री का क्‍या है, जब चाहे मिल लिए। लोग मुलाकात के बारे में पूछते हैं तो कह देते हैं कि बस हालचाल लेने गए थे, साथ में आशीर्वाद भी ले लिया। जानकार बताते हैं कि चुनाव को देखते हुए मंत्री जी बड़े संदेशवाहक बने हुए हैं।

कोविड का बहाना

नेता जी की पार्टी की पहचान ही किसान आंदोलनों से रही है। लेकिन उनकी अगुआई में पार्टी, नए कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे आंदोलन में जमीन से गायब है। उनके ही लोग कह रहे हैं, नेता जी जमीन की लड़ाई ट्विटर-फेसबुक पर लड़ रहे हैं। नेता जी के पास भी सफाई है। कहते हैं कि कोविड-19  है, हम लापरवाही नहीं कर सकते। वे यह भी कहते हैं कि महामारी के नाम पर सरकार विरोध का किसी भी हद तक दमन कर सकती है। लगता है, नेता जी जमीनी लड़ाई की परंपरा भूल चुके हैं।

सवाल क्रेडिट का है

झारखंड में आदिवासियों की अलग पहचान के लिए मतगणना कॉलम में अलग धर्म को लेकर राजनीति गर्म है। मांग के पक्ष और विरोध में अलग-अलग तर्क दिए जा रहे हैं। कोई मिशन का एजेंडा बता रहा है तो कोई बड़ी संख्‍या में जातियों की बात कर रहा है। सत्‍ता में सहयोगी पार्टी के प्रमुख ने भी समर्थकों से कहा है कि अगले सत्र के समय प्रस्‍ताव केंद्र को भेजा जाएगा। एक करीबी ने कहा कि प्रस्‍ताव भेजने में दिक्‍कत नहीं थी, मगर दूसरे नेता इसका क्रेडिट ले जाते, इसलिए बाते आगे बढ़ा दी।

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