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आवरण कथा/नजरिया: कुछ नया खोजने के लिए छात्रों को प्रेरित करना होगा

आइआइटी को पारंपरिक पढ़ाई से हटकर अब विकल्पों की तलाश की ओर जाना चाहिए
आइआइटी छात्रों को लकीर से हट कर काम करना होगा

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) के स्नातकों की हमेशा से भारत और विदेश में उच्च मांग रही है। 2003 में अमेरिकी राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार जनरल वेस्ली क्लार्क ने अपने चुनाव अभियान में घोषणा की थी कि आइआइटी की डिग्री वाले किसी भी व्यक्ति को तुरंत अमेरिकी नागरिकता दी जाएगी। माइक्रोसॉफ्ट के संस्थापक बिल गेट्स ने भी कहा था कि सॉफ्टवेयर इंजीनियर के रूप में भर्ती करते समय आइआइटी स्नातक उनकी शीर्ष पसंद होते हैं।

दुर्भाग्यवश, अब स्थिति बदलती हुई दिखाई दे रही है। देश में आइआइटी की संख्या बढ़कर 23 हो गई है, लेकिन छात्रों की उच्च अपेक्षाएं कैंपस प्लेसमेंट के दौरान पूरी नहीं हो रही हैं। यहां तक कि प्रतिष्ठित आइआइटी मुंबई में भी खराब प्लेसमेंट इस वर्ष चर्चा का विषय बना हुआ है। इससे सवाल खड़ा हो रहा है कि आइआइटी क्या अपनी चमक खोते जा रहे हैं?

कुछ साल पहले एक चौंकाने वाली प्रवृत्ति देखी गई थी। जेईई-मेन के लिए क्वालिफाइ करने वाले 65,000 उम्मीदवारों ने जेईई-एडवांस्ड के लिए आवेदन ही नहीं किया, जो एक महत्वपूर्ण बदलाव का संकेत देता है। एक सम्मानित आइआइटी स्नातक और उद्योग प्रमुख एन.आर. नारायणमूर्ति ने कुछ वर्ष पहले कहा था कि 80 फीसदी आइआइटी स्नातक उद्योग मानकों को पूरा नहीं करते  और उद्योग जगत के लिए जरूरी कौशल का ज्यादातर में अभाव होता है। क्या यह सच है?

लेकिन यह सवाल बड़ा है कि आइआइटी स्नातकों को अब वैसी नौकरी के प्रस्ताव क्यों नहीं मिल रहे, जो पहले मिलते थे? क्या इसका कारण यह है कि अब बहुत अधिक इंजीनियर तैयार किए जा रहे हैं, जिससे नौकरी के बाजार पर दबाव बढ़ रहा है? क्या निजी और राज्य द्वारा संचालित दूसरे इंजीनियरिंग कॉलेजों का वर्चस्व बढ़ रहा है या कंपनियां अब आइआइटी छात्रों को प्राथमिकता नहीं दे रही हैं? एक चिंता यह भी है कि क्या आइआइटी स्नातकों के पास वे कौशल हैं जो आज तेजी से बदलते उद्योगों को चाहिए? आइआइटी में बीते वर्षों के दौरान क्या बदला है? इनकी प्रतिष्ठा क्यों घट रही है? चेतावनी के संकेत कई वर्षों से मौजूद थे, लेकिन उन्हें अकसर नजरअंदाज किया गया।

एक बड़ा मुद्दा आइआइटी की प्रवेश परीक्षा खुद है। उससे यह आश्‍वस्‍त नहीं हो पा रहा है कि सबसे योग्य और प्रतिभावान छात्र ही प्रवेश पा सकें। दरअसल, भारत की शिक्षा प्रणाली विभाजित है- जो छात्र शीर्ष स्कूलों और कोचिंग का खर्च उठा सकते हैं उन्हें स्पष्ट लाभ मिलता है जबकि ग्रामीण क्षेत्रों और सरकारी स्कूलों से आने वाले प्रतिभाशाली छात्रों को सीमित संसाधनों के कारण संघर्ष करना पड़ता है। ऐसी स्थिति में प्रतिभाशाली छात्रों का एक बहुत बड़ा तबका आइआइटी तक पहुंच ही नहीं पाता है। जिनके पास बहुत पैसा है, वह तबका विदेश पढ़ने जा रहा है। इसलिए इस मामले में नए सिरे से विचार की आवश्यकता है। 

दूसरी बड़ी समस्या यह है कि जितनी तेजी से नए-नए आइआइटी खुले, उसके अनुसार वहां काबिल प्रोफेसर नहीं बहाल किए गए। अकसर जब हमारी बातचीत उन विद्यार्थियों से होती है जो आइआइटी में पढ़ रहे हैं, तो वे बताते हैं कि ज्यादातर प्रोफेसर वही पुराने नोट्स के साथ क्लास में आते हैं और लगातार उसे ही देखकर बोलते जाते हैं। दुनिया इतनी तेजी से बदल रही है, अब जरूरत है नए-नए कॉन्सेप्ट पढ़ाने की। कुछ नया खोजने के लिए विद्यार्थियों को प्रेरित करना होगा।

समय आ गया है कि आइआइटी परंपरिक पढ़ाई से अलग हटकर विद्यार्थियों के साथ खेत-खलिहान में भी जाए और ऐसे खेत बनाने के लिए उत्साहित करे, जो कई मंजिला हों। उसकी सिंचाई की व्यवस्‍था कैसी हो, उत्पादन दर ज्यादा से ज्यादा कैसे हो, यह सब सोचने का वक्त आ गया है। इसी तरह लकड़ी का विकल्प बनाया जाए ताकि फर्नीचर के लिए जंगल न काटना पड़े। पेट्रोल के बिना चलने वाली गाड़ियां सस्ते से सस्ते भाव में बनना पूरी दुनिया की जरूरत है। आज पूरी दुनिया में ज्यादातर ‘मेड इन चाइना’ सामान मिल रहा है। इतने बड़े देश में क्या कमी है और उसे कैसे दूर किया जाए ताकि पूरी दुनिया में सब कुछ ‘मेड इन इंडिया’ नजर आने लगे? ऐसे और भी नए मसले हो सकते हैं, जिन पर शोध और अनुसंधान से आइआइटी को अपनी साख बहाली में मदद मिल सकती है। अब आइआइटी के प्रोफेसरों को विद्यार्थियों के साथ सोचने और उस पर काम करने काम समय आ गया है। हर साल एआइ में कुछ नया करके पूरी दुनिया को अचंभित कर देने की जिम्मेवारी आइआइटी को लेनी चाहिए। आइआइटी को इतना सशक्त बनाना होगा कि देश का अमीर तबका विदेश पढ़ने जाने के बजाय विदेशी छात्रों के लिए आइआइटी में प्रवेश एक सपना हो जाए।

बहरहाल, जिस दिन आइआइटी अपने छात्रों को अच्छे पैकेज दिलवाने की कोशिश छोड़कर उन्हें वर्ल्ड क्लास बनाने का ठान लेंगे, उस दिन बड़े से बड़े पैकेज के लिए छात्रों के लिए कंपनियों की लंबी लाइन लग जाएगी। बेशक, यह सब सोचना बहुत आसान है लेकिन धरातल पर उतारना उतना ही कठिन।

आनंद कुमार

(लेखक सुपर 30 कोचिंग के संस्थापक हैं। विचार निजी हैं)

 

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