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श्रेय लेने की चुनावी होड़

सुप्रीम कोर्ट से सुशांत सिंह राजपूत की मौत की सीबीआइ जांच को हरी झंडी मिलने के बाद हर पार्टी मामले को भुनाने की फिराक में
सुशांत सिं ह राजपूत के पििता के.के. सिंह से मुलाकात करते राजद नेता तेजस्वी यादव

बॉलीवुड अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत के मामले में पटना पुलिस द्वारा दर्ज प्राथमिकी और नीतीश कुमार सरकार की सीबीआइ जांच की अनुशंसा पर सर्वोच्च न्यायालय ने मुहर लगा दी है। इसके बाद बिहार के सियासी दलों में इसका श्रेय लेने की होड़ मच गई है। सत्तारुढ़ जनता दल-यूनाइटेड जहां इसका श्रेय मुख्यमंत्री को दे रहा है, वहीं मुख्य विपक्षी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल इसके लिए अपने नेता तेजस्वी प्रसाद यादव की पीठ थपथपा रही है। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला तब आया है, जब बिहार में अगले विधानसभा चुनाव जल्द होने के संकेत दिखाई दे रहे हैं। जाहिर है, ऐसे वक्त में इस भावनात्मक मुद्दे की अहमियत की अनदेखी कोई पार्टी नहीं करना चाह रही है।

क्रिकेटर महेंद्र सिंह धोनी की बॉयोपिक में उनका किरदार निभाने वाले 34 वर्षीय सुशांत मुंबई स्थित अपने निवास पर पिछले 14 जून को रहस्यमय ढंग से मृत पाए थे। इसके बाद से ही राज्य और राज्य के बाहर उन्हें और उनके परिवार को न्याय दिलाने मांग जोरदार ढंग से उठती रही है। जनता दल-यू, भारतीय जनता पार्टी और उनके घटक दल, लोक जनशक्ति पार्टी के साथ-साथ राष्ट्रीय जनता दल सहित कई विपक्षी पार्टियों ने भी इसके लिए आवाज बुलंद की थी। सुशांत के पिता, कृष्ण किशोर सिंह ने पटना के राजीव नगर थाने में पिछले महीने प्राथमिकी दर्ज कराई थी। उन्होंने सीबीआइ जांच की भी मांग की थी। इसके बाद नीतीश कुमार सरकार ने केंद्र से इस मामले की सीबीआई जांच कराने की अनुशंसा की थी, जिसे केंद्र ने स्वीकार कर लिया था। 19 अगस्त को सर्वोच्च न्यायालय ने मामले की सुनवाई करते हुए सीबीआई जांच को हरी झंडी दे दी। बिहार में सभी दलों ने उसका स्वागत किया है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने भी सुशांत के पिता द्वारा एफआइआर और बिहार पुलिस की कार्रवाई को विधि सम्मत और सही ठहराया है। उन्होंने कहा, “कुछ लोग इसे राजनीतिक रूप देना चाह रहे थे, जबकि राज्य सरकार का मानना था कि इसका संबंध न्याय से है। मुझे भरोसा है कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद सीबीआइ  यथाशीघ्र इस मामले की जांच करेगी और शीघ्र न्याय मिलेगा।”

सुशांत के परिजनों ने भी नीतीश के प्रति आभार प्रकट किया है। जद-यू नेताओं का मानना है कि अगर नीतीश ने इस मामले में कार्रवाई नहीं की होती, तो मुंबई पुलिस इस केस को खत्म कर देती। राज्य के जल संसाधन मंत्री, संजय कुमार झा के अनुसार, सुशांत के पटना में रहने वाले बुजुर्ग पिता को न्याय दिलाने के लिए मुख्यमंत्री जो कुछ भी कर सकते थे, उन्होंने किया। वे कहते हैं, “बिहार पुलिस एफआइआर दर्ज नहीं करती, जांच को गति नहीं देती, तो मुंबई पुलिस इस मामले को लीपापोती कर खत्म कर देती। मुंबई पुलिस के हर तरह से असहयोग के बाद, सुशांत के परिजनों की अपील पर मुख्यमंत्री ने मामले की सीबीआई जांच की सिफारिश की। इसके बाद सर्वोच्च न्यायालय में वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने बिहार सरकार का पक्ष रखा।”

झा के अनुसार सर्वोच्च न्यायलय द्वारा मामले को सीबीआई को सौंपना और बिहार पुलिस द्वारा दर्ज एफआइआर को सही ठहराना न्याय की जीत है। उनका कहना है “करोड़ों लोगों की भावना यही है कि अब सीबीआई जल्द से जल्द सच सामने लाए और जो भी दोषी हैं, उन्हें सजा मिले।” अपने एक ट्वीट में उन्होंने यह भी कहा कि “सच्चाई सामने लाने की मांग करने वाले दुनिया भर के लाखों लोग, जो सुशांत सिंह राजपूत की रहस्यमय मौत से व्यथित हैं, की ओर से मैं माननीय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा सीबीआई जांच की अनुशंसा करने के लिए कृतज्ञता प्रकट  करता हूं।” उनका कहना है कि “जो कांग्रेस सुशांत सिंह राजपूत मामले में न्याय की मांग कर रही है, उसने करोड़ों प्रशंसकों और बिहारियों का अपमान किया है, सच दबाने की कोशिश की है। दुर्भाग्य से उसी कांग्रेस के साथ बिहार में राजद नेता गठबंधन किए हुए हैं! बिहार की जनता इन्हें कभी माफ नहीं करेगी।” वे कहते हैं, “मामले को रफा-दफा करने की मुंबई पुलिस की कोशिशों से निराश होकर सुशांत के पिता ने मुख्यमंत्री से न्याय की मांग की थी।”

लेकिन राजद इससे इत्तेफाक नहीं रखती। पार्टी का दावा है कि सबसे पहले किसी नेता ने सुशांत सिंह की दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थितियों में मृत्यु पर जनभावना और परिवार की भावनाओं के अनुरूप अपनी 30 जून की प्रेस वार्ता में सीबीआई जांच की मांग की थी तो वह नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ही थे। खुद तेजस्वी कहते हैं कि उन्होंने ही सबसे पहले सुशांत केस में सड़क से लेकर सदन तक सीबीआइ जांच की मांग की थी और उसी का परिणाम था कि 40 दिनों से कुंभकर्णी नींद सोई बिहार सरकार को जागना पड़ा। तेजस्वी कहते हैं, “फिल्म अभिनेता शेखर सुमन इस सिलसिले में मुख्यमंत्री से मिलना चाहते थे, लेकिन उन्हें मिलने का वक्त नहीं मिला। बाद में, वे मुझसे मिले और हमने सीबीआई जांच की मांग की।” तेजस्वी कहते हैं कि सीबीआइ जांच न तो उनकी जीत है और न ही नीतीश सरकार की। “यह तो न्याय और बिहार की जनता की जीत है।” 

राजद का आरोप है कि नीतीश सुशांत की मौत के लगभग डेढ़ महीने बाद तक इस मामले में उदासीन रहे, लेकिन विपक्ष के अभियान और लगातार बढ़ते जनसमर्थन ने राज्य सरकार को सीबीआइ जांच की अनुशंसा करने को मजबूर कर दिया। तेजस्वी ने नीतीश पर आरोप लगाते हुए यह भी कहा कि मुख्यमंत्री एक बार भी सुशांत की मौत के बाद उनके परिवार को सांत्वना देने पटना में उनके घर नहीं गए। दरअसल, तेजस्वी और उनके बड़े भाई, तेजप्रताप यादव उन विपक्षी नेताओं में थे, जिन्होनें सुशांत के घर जाकर उनके परिजनों को सांत्वना दी थी। तेजस्वी ने बाद में न सिर्फ सीबीआइ जांच की मांग की बल्कि यह भी कहा कि राजगीर में बन रहे फिल्म सिटी का नाम दिवंगत अभिनेता के नाम पर किया जाए। हालांकि राज्य के उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी और केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद, जो स्थानीय सांसद भी है, उन वरिष्ठ भाजपा नेताओं में हैं जिन्होंने घटना के बाद सुशांत के पिता से मिलकर उनका ढाढ़स बंधाया। राजनैतिक विश्लेषकों का कहना है, जैसे-जैसे सुशांत के लिए न्याय मुहिम को व्यापक समर्थन मिलने लगा और राष्ट्रीय स्तर पर उनकी मौत पर सवाल उठने लगे, तो नीतीश सरकार हरकत में आई। बाद में हर छोटी और बड़ी पार्टियां इस मुद्दे पर एकजुट हो गईं। लोक जनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष चिराग पासवान ने भी नीतीश और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से सुशांत के परिवार को न्याय दिलाने की मांग की। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का एक घटक दल होने के बावजूद उन्होंने नीतीश सरकार द्वारा सीबीआई जांच की अनुशंसा करने के कदम को “देर आए दुरुस्त आए” कहा।

इस बीच, इस मामले में आलोचना झेल रहे महाराष्ट्र की शिवसेना के नेतृत्व में गठित महाविकास अघाड़ी सरकार का मानना है कि इस मुहिम के पीछे सियासी मंशा है। उनका आरोप है कि सुशांत की मौत के मामले को बिहार को महज इस वजह से तूल दिया जा रहा है ताकि वहां की सत्तारुढ़ गठबंधन को अक्टूबर-नवंबर में होने वाले चुनाव में फायदा पहुंचाया जा सके। लेकिन, क्या सुशांत की मौत से उभरे सवाल के वाकई सियासी मायने हैं और क्या इसका असर वाकई अगले चुनाव में दिखेगा?

सुशांत के पिता से मुलाकात करते केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद

राजनैतिक जानकारों का मानना है कि सुशांत की असमय मृत्यु के बाद हत्या या आत्महत्या जैसे सवाल पर उपजे विवाद ने न सिर्फ बिहार में बल्कि देश के अन्य प्रांतों के साथ विदेशों में भी उनके और उनके परिवार को न्याय दिलाने की मुहिम को ऐसा अभूतपूर्व जनसमर्थन मिला है, जिसके राज्य के चुनाव पर असर डालने की संभावनाओं के इंकार नहीं किया जा सकता। यह एक भावनात्मक मुद्दा है, जिसने आमजन को दलगत भावनाओं से ऊपर उठकर एकजुट किया है। चुनाव विश्लेषकों के अनुसार, सुशांत को न्याय दिलाने की मुहिम को अनदेखी करना चुनाव में जाने वाली अब किसी  भी पार्टी के लिए मुनासिब न होगा। नीतीश सरकार के लिए सुशांत का मुद्दा इसलिए अहम है कि बिहार में लगभग दो-तिहाई मतदाता युवा हैं, जिनमें अधिकतर सोशल मीडिया पर किसी न किसी रूप में सक्रिय हैं।

 सर्वोच्च न्यायलय के निर्णय के कुछ दिन पहले बिहार पुलिस द्वारा सुशांत केस की जांच के लिए एक टीम मुंबई भेजने के कदम पर लोगों का व्यापक समर्थन मिला था। राजनैतिक हलकों में यह भी चर्चा है कि भाजपा महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस को बिहार चुनाव के लिए पार्टी प्रभारी नियुक्त कर रही है ताकि वे सुशांत के मामले पर महागठबंधन खासकर राजद और इसकी प्रमुख सहयोगी पार्टी कांग्रेस को चुनावी मैदान में घेर सकें। महाराष्ट्र में कांग्रेस, सरकार की एक प्रमुख सहयोगी पार्टी है और बिहार में भी कांग्रेस महागठबंधन के साथ है।

उप-मुख्यमंत्री सुशील मोदी का आरोप है कि कांग्रेस महाराष्ट्र की उस गठबंधन का हिस्सा है, जिसने बिहार से गई पुलिस टीम के साथ असहयोगात्मक रवैया अपनाया। मोदी पूछते हैं, “उद्धव ठाकरे कांग्रेस-संपोषित बॉलीवुड माफिया के दबाव में हैं, इसलिए वे जिम्मेदार सभी लोगों को बचाने पर तुले हैं। कांग्रेस बिहार की जनता को क्या मुंह दिखाएगी? महाराष्ट्र में पहले भी बिहार के लोगों से दुर्व्यवहार की शिकायतें मिलती थीं, अब तो उद्धव सरकार ने तो हद कर दी है। लॉकडाउन के दौरान भी महाराष्ट्र से बिहारी मजदूरों की वापसी के समय अड़ंगेबाजी की गई।” बहरहाल, सीबीआइ जांच के जो भी परिणाम भविष्य में आए, सुशांत की मौत की गूंज बिहार के चुनावी गलियों में जरूर सुनाई देने वाली है। 

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